सूर्य ही जगत् की आत्मा है। सूर्य से ही पूरी सृष्टि है। यही वजह है कि हर कोई सूर्य के सामने शीश नवाता है। सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति के इस जन्म के साथ कई जन्मों में किएं गएं पाप नष्ट हो जाते है। छठ महोत्सव मात्र एक उत्सव न होकर एक तपस्या है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्रती सूर्य नारायण के समक्ष उनकी प्रसन्नता हेतु कठिन व्रत रख, अत्यंत कठिन नियमों का पालन करते हुए तपस्या करते हैं। यह सृष्टि तप के प्रभाववश ही चल रही है। वैसे भी उगते सूरज को पूरी दुनिया सलाम करती है। अलबत्ता डूबते हुए सूरज व उसके योगदान के वंदन-अभिनन्दन की परंपरा इस्पाती धागों से बुनी भारतीय धर्म-दर्शन की उजली चादर की छांव में ही पुष्पित पल्लवित हो सकती है। इसकी बड़ी वजह है इस उदात्त दर्शन में शिव-शव, जन्म-मृत्यु व उदय-अवसान सबको एक दृष्टि व समान भाव से स्वीकार व अंगीकार करने का माद्दा सहज श्रद्धा के रूप में इसी में समाहित है। देखा जाएं तो सूर्य ही पूरी दुनिया के लिए प्रत्यक्ष देवता है। इनके बिना मानव तो दूर जीव-जंतु और पेड़-पौधों की उत्पत्ति ही संभव नहीं है। चाहे वो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम रहे हो या श्रीकृष्ण, बजरंगबलि से लेकर पांडवों तक ने सर्य की आराधना की थी। पांडवों के वनवास काल में द्रोपदी की प्रार्थना पर पुत्र अर्जुन को भगवान सूर्य ने ही अक्षय पत्र प्रदान किया था। कृष्ण के पोते शाम्ब को कुष्ठ रोग हुआ था तो शाक्य द्वीप से वैद्य बुलाये गये थे जिन्होंने सूर्य की उपासना का मार्ग बताया था. ‘छठ पूरब के उजाड़ को थाम लेने का पर्व है, छठ चंदवा तानने और उस चंदवे के भीतर परिवार के चिरागों को नेह के आंचल की छाया देने का पर्व है। छठ दूरदराज में बसे बहंगीदार को गांव के घाट पर खींच लाने का पर्व है। मतलब साफ है सूर्य की किरणों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा के बिना इकोसिस्टम की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यही वजह है कि सूर्योपासना का पर्व छठ राष्ट्रीय पर्व जैसा बन गया है। जर्मनी, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान सहित पूरी दुनिया में छठ मनाया जाने लगा है
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः।।
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे। भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः।। अर्थात हे सूर्यदेव! आप ब्रह्मा, विष्णु और महेश के ईश हैं। सौर मंडल में आपकी ही द्युति है, वह आपसे ही प्रकाशित है। सर्वभक्षी, रौद्र रूप धारण करने वाली अग्नि आपका ही रूप है और आपके उग्र रूप को नमन है। इस श्लोक द्वारा सूर्य की स्तुति करते हुए श्रीराम उन्हें नमन कर रहे हैं। प्रसंग है कि रावण से युद्ध करते हुए श्रीराम थक गए और उस समय उस युद्ध को देखने आए महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम में नव ऊर्जा का संचार करने के लिए उन्हें सूर्य की स्तुति, आदित्य हृदय स्तोत्र के माध्यम से करने की आज्ञा दी और उसे करने के उपरांत श्रीराम युद्ध में विजयी हुए। सूर्य के कारण ही सृष्टि फल-फूल रही है। जिन पंच महाभूतों- धरती, आकाश, वायु, अग्नि और जल से ब्रह्मांड रचा गया है, उन सबका संचालन सूर्य करते हैं और अग्नि सूर्य का ही अंश है। इस कारण वेद में सूर्य को पहला रुद्र (हिरण्यगर्भ) कहा गया है। यह हिरण्य गर्भ तीनों लोकों (भूः, भुवः और स्वः) में स्थित है। भूः का अर्थ है पृथ्वी लोक, भुवः का अर्थ है अन्तरिक्ष लोक और स्वः का अर्थ है स्वर्ग लोक। सूर्य से ही पृथ्वी पर जीवन है, प्रकाश है। हमारी आत्मा में जो प्रकाश है, वह भी सूर्य का ही प्रतिबिम्ब है। वैदिक ऋषि सूर्य से प्रार्थना करते हैं ‘आप हमारी बुराइयों और पापों को नष्ट करें एवं मंगल का पथ प्रशस्त करें।’ ईशावास्य उपनिषद् में सूर्यदेव की स्तुति पुरुष रूप में की गई है- हे पुष्टि देने वाले, अनोखे नियम वाले, प्रजाओं के पति सूर्यदेव, आपकी किरणों का समूह चारों ओर फैल रहा है, जिस कारण आप प्रकृति ही मालूम पड़ रहे हैं। अपनी किरणों का माया जाल समेटिए, जिससे मैं आपके पुरुष रूप का दर्शन कर पाऊं।
सर्य की बहन है छठ माता
छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। छठ को सूर्य देवता की बहन माना जाता है। छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति व धन-धान्य से संपन्न करती हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है। छठ पर्व सूर्य की ऊर्जा की महत्ता के साथ जल और जीवन के संवेदनशील रिश्ते को पुष्ट करता है। पूजा के दौरान महिलाएं अपने गीतों के माध्यम से भगवान भास्कर और छठी मइया के कृत्यों का बखान करती हैं। गीत गाने की यह परंपरा सीधे तौर पर हमारी संस्कृति और सभ्यता की पहचान है। उपनिषद् काल की यह प्रार्थना सूर्य षष्ठी पूजा में साकार हो जाती है। गौर करने की बात यह है कि, सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सूर्य अपनी किरणें समेट लेते हैं। इस पूजा में पुरुष रूप में सूर्य को दीनानाथ एवं स्त्री रूप में छठी मैया कह कर सम्बोधित किया जाता है। छठ को लेकर कई पौराणिक कहानियां कही-बताई जाती हैं। जैसे ये, ‘कृष्ण के बेटे शाम्ब को अपने शरीर-बल पर बड़ा अभिमान था। कठोर तप से कृशकाय ऋषि दुर्वासा कृष्ण से मिलने पहुंचे, तो शाम्ब को हंसी आई कि देह है या कांटा। तो शाम्ब को ऋषिमुख से श्राप मिला- जा, तेरे शरीर को कुष्ठ खाये। शाम्ब को रोग लगा, दवा काम न आयी, तो किसी ने सूर्याराधन की बात बतायी। शाम्ब रोगमुक्त हुआ और तभी से काया को निरोगी रखने के लिए सूर्यपूजा मतलब छठपूजा की रीत चली।’ दूसरी कथा यह भी है कि लंका-विजय और वनवास के दिन बिता कर राम जिस दिन अयोध्या लौटे उस दिन अयोध्या नगरी में दीये जले, पटाखे फूटे, दीवाली हुई। वापसी के छठवें दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को रामराज की स्थापना हुई। राम और सीता ने उपवास किया, सूर्य की पूजा की, सप्तमी को विधिपूर्वक पारण करके सबका आशीर्वाद लिया और तभी से रामराज स्थापना का यह पर्व छठ अस्तित्व में आया।
लोकगीतों से है छठ की महत्ता
छठ पंडित जी की ‘पोथी‘ से नहीं, पंडिताइन के ‘अंचरा’ से जुड़ा है। कर्मकांड से नहीं, बल्कि लोकगीतों से जुड़ा है जिसमें न जाने कब से एक सुग्गा केले के घौंद पर मंडरा रहा है। छठ हर जाति-समुदाय के लोग मनाते हैं। छठ-गीतों में ‘छठी मइया’ के अलावा जिसे सर्वाधिक संबोधित किया गया है, वे हैं ‘दीनानाथ’। दीनों के ये नाथ सूर्य हैं। बड़े भरोसे के नाथ, निर्बल के बल! क्योंकि उन्हें पूजने में निर्धन से निर्धन व्यक्ति को भी केवल एक अंजुरी जल की जरूरत होती है। सूर्य प्रत्यक्ष अनुभव के देव हैं। उनके दर्शन और स्पर्श को मनुष्य अनुभूत करता है। उनसे निरंतर ऊर्जा पाता है। उनके उगने और डूबने से जीवन का क्रिया-व्यापार निर्धारित होता आया है। रात काटना मुश्किल रहता आया है, क्योंकि किसी भी विपदा का निदान सूरज उगने पर ही संभव होता दिखता रहा है। यही वजह रही है कि भारत जैसे आध्यात्मिक देश में डूबते सूरज की भी पूजा होती है। हालांकि समाज में कहावत तो यह है कि सब उगते सूरज को ही पूजते हैं, लेकिन छठ जैसे व्रत में डूबते सूरज का महात्म्य बहुत है। छठ पर्व के समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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