कविता : बेदर्द जमाना - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 24 नवंबर 2024

कविता : बेदर्द जमाना

कितना बेदर्द है ये जमाना,

किसी पर रहम ना ये खाता,

जो मन आये वो कह जाता,

किसी की कुछ न सुनता,

भाई भाई लड़ने लगे हैं,

अब प्यार ना रहा पहले जैसा,

जमाना बहुत बदल गया है ,

पहले जैसा कुछ ना रहा है ,

पड़ोस में रह कर भी कोई,

किसी पड़ोसी को न जाने,

क्या कहूं अब क्या सुनना रह जाना,

देख लो कितना बेदर्द है ये ज़माना।।




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कविता जोशी

लामाबगड़, उत्तराखंड

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