कितना बेदर्द है ये जमाना,
किसी पर रहम ना ये खाता,
जो मन आये वो कह जाता,
किसी की कुछ न सुनता,
भाई भाई लड़ने लगे हैं,
अब प्यार ना रहा पहले जैसा,
जमाना बहुत बदल गया है ,
पहले जैसा कुछ ना रहा है ,
पड़ोस में रह कर भी कोई,
किसी पड़ोसी को न जाने,
क्या कहूं अब क्या सुनना रह जाना,
देख लो कितना बेदर्द है ये ज़माना।।
कविता जोशी
लामाबगड़, उत्तराखंड
चरखा फीचर्स
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