ज़माना आगे बढ़ चुका है,
और हम पीछे रह गए हैं,
लोग लोग करते-करते ही,
जाने कितने ईर्ष्या से जल गए,
हीरे की तलाश है सभी को,
अपने अंदर का हीरा खो बैठे,
लोग अपनी खुशियों की खातिर,
अपनों से ही बहुत दूर हो गए,
दुनिया की चाहत में बह रहे हैं,
अंदर से चिंता में मर रहे हैं,
आगे की सोचता कोई नहीं है,
समाज के डर से चुप रह गए हैं,
देखो, ज़माना आगे बढ़ चुका है,
और हम हैं कि पीछे रह गए हैं।।
प्रियांशी
ग्वालदम गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड
चरखा फीचर्स
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें