15 राज्यों की 48 विधानसभा सीटों सहित लोकसभा की 2 सीटों पर हुए उपचुनाव में जिस तरह के नतीजे आएं हैं, उससे साफ है आगे होने वाले बिहार व दिल्ली में भी ’बटेंगे तो कटेंगे’ और ’एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ के नारे सुनाई देंगे। मतलब साफ है चाहे वो वायनाड हो या झारखंड, जिस तरह से मुस्लिमों ने वोटिंग में दिलचस्पी दिखायी, उससे ठीक उलट महाराष्ट्र व यूपी के उपचुनाव में दिखा। हालांकि महाराष्ट्र में लाडली बहना व झारखंड में माय योजना ने भी चुनाव को प्रभावित किया है, से इनकार नहीं किया जा सकता। या यूं कहे ’बटेंगे तो कटेंगे’ और ’एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ ने जीत में तुरूप के पत्ते का काम किया है तो महिला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सशक्तिकरण संबंधित योजनाओं का जादू भी सिर चढ़कर बोल रहा है। बता दें, लोकसभा वायनाड सीट के अलावा राजस्थान में 7, पश्चिम बंगाल में 6, असम में 5, पंजाब और बिहार में 4-4 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं कर्नाटक और केरल में 3-3 सीटों पर चुनाव हुए हैं। इसके अलावा उत्तराखंड की केदारनाथ सीट भी शामिल हैं
महाराष्ट्र की कामयाबी झारखंड में भी देखने को मिली. यहां भी महिला केंद्रित योजनाओं का असर देखने को मिला. मइयां सम्मान योजना ने झारखंड की राजनीति में हलचल मचा दी. इस योजना के तहत राज्य सरकार योग्य महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये दे रही थी. हेमंत सरकार इस योजना के 4 किश्त महिलाओं के खाते में ट्रांसफर कर.भी चुकी है. इसके अलावा हेमंत सरकार ने स्कूल जाने वाली लड़कियों को मुफ्त साइकिल, सिंगल मदर को नगद सहायता, बेरोजगार महिलाओं को नगद सहायता देने की भी स्कमें शुरू की है. मइयां सम्मान योजना हेमंत सरकार की गुडविल और राजनीति निष्ठा को बढ़ाने में सफल रही. आदिवासी, गरीब और ग्रामीण इलाकों में इन स्कीम की की जबरदस्त चर्चा रही. चुनाव के नतीजे बताते हैं कि इन स्कीम्स का पूरजोर फायदा हेमंत सरकार को मिला और जेएमएम प्रचंड बहुमत के साथ वापसी करने में सफल रही. मतलब साफ है जैसे-जैसे महिलाएं खुद को निर्णायक मतदाता समूह के रूप में स्थापित कर रही हैं, स्त्रियों के प्रति संवेदनशील शासन प्रणाली पर जोर बढ़ने वाला है, जो न केवल चुनाव परिणामों को प्रभावित करेगा बल्कि भारत में व्यापक राजनीतिक लैंडस्कैप पर भी असर डालेगा. महिलाओं को सशक्त बनाना अब केवल एक सामाजिक अनिवार्यता नहीं रह गई है, यह भारतीय राजनीति में जीत के लिए रणनीतिक साबित हो रही है। उत्तर प्रदेश मे 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि योगी आदित्यनाथ का कद बढ़ा है। क्योकि उनके लिए यह चुनाव जीवन मरण का भी प्रश्न बन गया था. लोकसभा चुनावों में जिस तरह की फजीहत बीजेपी और योगी को सहनी पड़ी थी अब शायद उपचुनावों के परिणाम उस शॉक से पार्टी बाहर निकल सके. योगी ने लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद ही ठान लिया था कि उपचुनावों की सभी सीटें जीतनी हैं और उन्होंने यह कर दिखाया. इसकी बड़ी वजह रही पार्टी की अंदरूनी कलह का असर इन चुनावों में नही्ं दिखना. सभी ने एकजुट होकर जमकर प्रचार किया. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव के अंतिम हफ्ते मे योगी ने 5 दिन में 15 रैली की. योगी सरकार ने नौ सीटों पर सरकार के 30 मंत्रियों की टीम-30 को मैदान में उतारा था. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी सभी नौ सीटों पर एक-एक चुनावी सभा को संबोधित किया. उनका पूरा जोर फूलपुर और मझवां सीट पर रहा है.
उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी उपचुनाव में नौ सीटों पर एक-एक रैली की. दूसरी ओर आरएसएस भी इस बार पूरे जोर शोर के साथ बीजेपी प्रत्याशियों के प्रचार में लगा हुआ था. लोकसभा चुनावों के दौरान आरएसएस की नामौजूदगी का नतीजा रहा कि बीजेपी को बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ा था। अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने बटेंगे कटेंगे के बदले में मुस्लिमों को एकजुट रहने का आह्वान करते हुए इस नारे को खिल्ली समझ कर इसका खूब मजाक उड़ाया. ये केवल अपने कोर वोटर्स को खुश करने के लिए किया गया पर उल्टा पड़ गया. दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ ने लगातार कानून व्यवस्था और बेरोजगारी पर अपने को फोकस रखा. पुलिस की वैकेंसी आई और परीक्षा हुआ उसका रिजल्ट भी आया. छात्रों की मांग पर एक परीक्षा को कैंसल किया गया तो नॉर्मलाइजेश पर रोक भी लगाई गई. योगी आदित्यनाथ तमाम आलोचनाओं के बाद भी बुलडोजर न्याय और एनकाउंट न्याय पर अडिग रहे. जो उनकी यूएसपी बन चुकी है. जाहिर है कि योगी आदित्यनाथ की यही शैली लोगों को पसंद आती है. देखा जाएं तो अखिलेश के ’पीडीए’ पर बीजेपी का ओबीसी फर्स्ट भारी पड़ गया। 2027 में भी योगी की इसी लाइन पर राजनीति आगे बढ़ेगी. अब बीजेपी अपने ओबीसी फर्स्ट फॉर्मूले को और आगे बढ़ाएगी. टिकटों के बंटवारे में अखिलेश ने मुस्लिम कार्ड खेला है तो वहीं बीजेपी ने ओबीसी पर दांव लगा दिया. बीजेपी ने सबसे ज्यादा 5 उम्मीदवार ओबीसी उतारे. जबकि एक दलित और 3 अगड़ी जाति के हैं.जबकि सपा ने सबसे ज्यादा 4 उम्मीदवार मुस्लिम उतारे। इसके अलावा ओबीसी 3, दलित 2 उम्मीदवार रहे। जबकि अगड़ी जाति को एक भी टिकट नहीं दिया। टिकट बंटवारे में यह संदेश गया कि सपा मुस्लिम परस्त पार्टी है. जिस ओबीसी जाति जनगणना को लेकर विपक्ष बीजेपी को घेर रहा है वहां बीजेपी ने ओबीसी पर ही दांव लगा दिया. संदेश गया कि अखिलेश पीडीए में ओबीसी को मुस्लिम से बैलेंस कर रहे हैं. योगी ने कहा, ‘ये जीत डबल इंजन सरकार की सुरक्षा-सुशासन एवं जनकल्याणकारी नीतियों तथा समर्पित कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम का सुफल है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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