सीहोर : कुबेरेश्वरधाम पर जारी सात दिवसीय भागवत कथा का समापन, उमड़ा आस्था का सैलाब - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 18 नवंबर 2024

सीहोर : कुबेरेश्वरधाम पर जारी सात दिवसीय भागवत कथा का समापन, उमड़ा आस्था का सैलाब

  • जब धरती पर अधिक पापाचार बढ़ता है तो, परमात्मा अवतरित होते : कथा व्यास पंडित शिवम मिश्रा

Kubereshwar-dham-sehore
सीहोर। भागवत कहती है कि आपका कोई सगा व्यक्ति भी यदि अधर्म के मार्ग पर चलता है तो उसे सजा देने से कोई पाप नहीं लगता। भगवान कृष्ण ने अपने अत्याचारी और अधर्मी मामा कंस को मार कर धर्म की रक्षा की। कंस ने अपनी प्रजा पर अत्यधिक अत्याचार किए। जब धरती पर अधिक पापाचार बढ़ता है तो, परमात्मा अवतरित होते है। श्री कृष्ण ने अधर्मी मामा कंस को मोक्ष प्रदान किया। मनुष्य को अहंकार नहीं करना चाहिए। उद्धव को अपने ज्ञान का अहंकार हो गया था, तब श्रीकृष्ण ने उद्धव को गोपियों के पास भेजा, जहां उसका अहंकार चूर हो गया। उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में जारी सात दिवसीय भागवत कथा के अंतिम दिन कथा व्यास पंडित शिवम मिश्रा ने कहे। कथा के विश्राम दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा, कथा व्यास पंडित राघव मिश्रा सहित अन्य ने आरती की।


जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती

विश्राम दिवस पर पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि भगवान अपने भक्तों की पुकार सुनते है, मित्रता भी एक भक्ति की तरह होनी चाहिए, मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है। उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को रोककर गले लगा लिया।


आप जैसा सुनेंगे देखेंगे वैसा ही आपको फल मिलेगा

पंडित श्री मिश्रा ने भागवत के प्रसंगों को सुनने पर अवश्य फल मिलता है। आप जैसा सुनेंगे देखेंगे वैसा ही आपको फल मिलेगा। रुक्मणि विवाह की कथा सुनाते हुए कहा कि रुक्मिणी के भाई रूक्मि ने रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ निश्चित किया था, लेकिन रुक्मिणी ने संकल्प लिया था कि मैं शिशुपाल को नहीं केवल गोपाल का पति के रूप में वरण करूंगी। उन्होंनें कहा कि शिशुपाल असत्य मार्गी है और द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण सत्य मार्गी इसलिए मैं असत्य को नहीं सत्य को अपनाऊंगी। अत भगवान द्वारकाधीश ने रुक्मिणी के सत्य संकल्प को पूर्ण किया और उन्हें पत्नी के रूप में वरण करके प्रधान पटरानी का स्थान दिया। 

कोई टिप्पणी नहीं: