- जीवन में आपके सामने आने वाली हर स्थिति किसी न किसी कर्म का परिणाम : पंडित राघव मिश्रा
सीहोर। कर्म का फल कब मिलता है कर्म का फल, हर पल हमे मिलते रहता है, क्यों की एक एक सांसों में हमारे साथ जो घटना घटित हो रही है, वह हमारे कर्मों का परिणाम ही है। कर्म के कारण ही हम सांस ले पा रहे हैं, तो किसी की सांस अभी अभी खत्म हो चुकी होती है। कर्म हमारी काया तो उसका फल हमारी परछाई है, दोनो सदा साथ साथ ही रहते हैं। जीवन में आपके सामने आने वाली हर स्थिति किसी न किसी कर्म का परिणाम है। उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में जारी सात दिवसीय शिव महापुराण के पांचवे दिवस कथा व्यास पंडित राघव मिश्रा ने कही। उन्होंने कहा कि हम छल, कपट कर कितनी संपत्ति कर ले, लेकिन वो मेहनत की कमाई के आगे ठहर नहीं पाती है। इसलिए कभी किसी के साथ गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए। शुक्रवार को शिव महापुराण के दौरान पंडित श्री मिश्रा ने भगवान गणेश की बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन किया। इसके अलावा भगवान शंकर और माता पार्वती के द्वारा बड़ी संख्या में दीपदान का प्रसंग बताया। अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के सानिध्य में इन दिनों कुबेरेश्वरधाम पर श्री हरिहर मिलन महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इसके अंतर्गत सुबह दस बजे से शिव महापुराण और दोपहर में भागवत कथा का आयोजन किया जाता है और उसके पश्चात रात्रि को बाबा की महा आरती की जाती है।शिव महापुराण कथा के पांचवें दिन कथा व्यास पंडित राघव मिश्रा ने कहा कि भक्ति किसी भी अवस्था में हो सकती है। इसके लिए आयु बचपन की हो जा 55 की कोई फर्क नहीं पड़ता है। भक्ति के बिना जीवन अधूरा है, लाखों योनियों में सबसे सुंदर शरीर मनुष्य का है, भगवान के आशीर्वाद के बिना मनुष्य जीवन प्राप्त नहीं होता भगवान शिव का संपूर्ण चरित्र परोपकार की प्रेरणा देता है। भगवान शिव जैसा दयालु करुणा के सागर कोई और देवता नहीं है। चंचुला नाम की स्त्री को जब संत का संग मिला वह शिव धाम की अनुगामिनी बनी। एक घड़ी के सत्संग की तुलना स्वर्ग की समस्त संपदा से की गई है। भगवान शिव भी सत्संग का महत्व मां पार्वती को बताते हुए कहते हैं कि उसकी विद्या, धन, बल, भाग्य सब कुछ निरर्थक है जिसे जीवन में संत की प्राप्ति नहीं हुई। परंतु वास्तव में सत्संग कहते किसे हैं। सत्संग दो शब्दों के जोड़ से मिलकर बना यह शब्द हमें सत्य यानि परमात्मा और संग अर्थात् मिलन की ओर इंगित करता है।
सहज भाव से विचार करे और आचरण करे
पंडित श्री मिश्रा ने परमात्मा से मिलन के लिए संत एक मध्यस्थ है, इसलिए हमें जीवन में पूर्ण संत की खोज में अग्रसर होना चाहिए, जो हमारा मिलाप परमात्मा से करवा दे। सच्चा संत वही है, जो सहज भाव से विचार करे और आचरण करे। जब उसका मान हो, तब उसे अभिमान न हो और कभी उसका अपमान हो जाए, तो उसे अहंकार नहीं करना चाहिए। हर हाल में उसकी वाणी मधुर, व्यवहार संयमशील और चरित्र प्रभावशाली होना चाहिए। संत शब्द का अर्थ ही है, सज्जन और धार्मिक व्यक्ति। सच्चा संत सभी के प्रति निरपेक्ष और समान भाव रखता है, क्योंकि सच्चा संत, हर इंसान में भगवान को ही देखता है, उसकी नजर में हर व्यक्ति में भगवान वास करते हैं, इसलिए उस पर किसी भी तरह के व्यवहार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सच्चा संत वही है, जिसने अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया हो और वह हर तरह की कामना से मुक्त हो।
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