देश में महिलाओं एवं युवतियों का सिर्फ सर्वाइकल कैंसर (बच्चेदानी के मुंह का कैंसर) ही नहीं बल्कि अनल कैंसर (गुदा या मलाशय का कैंसर), वल्वा कैंसर (जननांग की बाहरी सतह का कैंसर), वेजाइनल कैंसर (योनि का कैंसर), पेनाइल कैंसर (पुरुषों के लिंग में कैंसर), ओरल कैविटी कैंसर (मुंह का कैंसर), ऑरोफरींजियल कैंसर (गले का कैंसर), लैरिंगियल कैंसर (वॉइस बॉक्स में कैंसर) से भी मौतें होती है। लेकिन इनमें ह्यूमन पैपिलोमा वायरस, वल्वा और वेजाइना कैंसर से ज्यादा मौते होती है। जबकि पुरुषों में यह पेनाइल कैंसर पैदा करता है. इसके अलावा सीरोटाइप 6 और 11 महिला और पुरुष दोनों के लिंग में मस्से के लिए भी जिम्मेदार है. भारत में, महिलाओं को होने वाले कैंसर के कुल मामले 16.5 फीसदी है। यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 2017 में जारी किए गए एचपीवी केंद्र के आंकड़ों से पता चला है कि हर साल 1,22,844 महिलाएं कैंसर से पीड़ित होती है, और इनमे से 67,477 महिलाओं की मृत्यु हो जाती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक एचपीवी यानि ह्यूमन पेपिलोमा वायरस एक छोटा डीएनए वायरस है, जिसके लगभग 40 प्रकार या सीरोटाइप्स सीधे यौन संपर्क के माध्यम से फैलते हैं. हालांकि एचपीवी सिर्फ महिलाओं में ही नहीं बल्कि पुरुषों में भी कैंसर पैदा करने के लिए बराबर जिम्मेदार है. जहां लड़कियों और महिलाओं को एचपीवी की वजह से सबसे ज्यादा सर्वाइकल होता है. वहीं पुरुषों में यह उनके लिंग यानि पेनिस के कैंसर के अलावा अनल यानि गुदा का कैंसर और कई प्रकार के ऑरोफरींजियल कैंसर जैसे टॉन्सिल, तालू, ग्रसनी और जीभ के एक तिहाई हिस्से के कैंसर के लिए जिम्मेदार है. इसके अलावा ह्यूमन पेपिलोमा वायरस की वजह से महिलाओं में वुल्वा यानि योनि के ऊपर सतह पर कैंसर, योनि कैंसर के भी मामले सामने आते हैं. प्रस्तुत है सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी की सीनियर ऑनकोलॉजिस्ट डाक्टर विभा मिश्रा से बातचीत आधारित एक विस्तृत रिपोर्ट
गाइनोकॉलोजी (एमबीबीएस, डीजीओ, डीएनबी, फीएज फेलो, गाइनियोलॉजिस्ट एवं प्रोफेसर प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ) डॉक्टर विभा मिश्रा का कहना है कि वेजाइनल कैंसर और सर्वाइकल कैंसर को लेकर अक्सर लोग भ्रम में रहते हैं. लेकिन ये दोनों अलग अलग है. वेजाइनल कैंसर को योनि कैंसर भी कहते हैं. वेजाइना बाहर वाले पार्ट को कहते हैं. जबकि सर्विक्स पार्ट में सर्वाइकल कैंसर होता है. योनि कैंसर का अगर समय से पता चल जाए तो रिकवर होने में ज्यादा परेशानी नहीं होती लेकिन अगर ये एडवांस लेवल पर हो तो मरीज को काफी दिक्कत फेस करनी पड़ती है. अगर पहले कभी यूट्रस से जुड़ा कैंसर रहा हो तो भी संभव है कि दोबारा वेजाइना कैंसर हो जाए. अगर शुरुआती लेवल पर है तो 75 फीसदी, अगर फैसला शुरू हो चुका है यानी दूसरे स्टेज पर 51 फीसदी और तीसरे स्टेज या एडवांस स्टेज पर इससे बचने के चांस 18 फीसदी तक रह जाते हैं.
डॉ विभा मिश्रा का कहना है कि ह्यूमन पेपिलोमा वायरस या एचपीवी का इंफेक्शन है। यह एक यौन संचारित वायरस है और यह सर्वाइकल कैंसर के लिए भी कारक होता है। अगर योनि का इंट्रएजिलोलियल सीवीएआईएन है। यह कैंसर की पूर्व स्टेज हो सकती है। मरीज को यदि सर्वाइकल कैंसर है तो ध्रूमपान से खतरा और बढ़ जाता है। जहां तक इसके लक्षण का सवाल है तो यह कैंसर हमेशा लक्षण प्रकट नहीं करता है। हो सकता है यह तब तक मरीज को पता ना चले जब तक चिकित्सक नियर्ति जांच के दौरान असामान्य कोशिकाओं को न देख लें। संभोग के बाद योनि से रक्तस्राव, रजोनिवृत्ति के बाद योनि से रक्तस्राव, योनि से आने वाला पानी खूनवाला या दुर्गंधयुक्त हो, संभोग के दौरान दर्द, पेशाब करते समय दर्द होना व पेल्विक दर्द इसके लक्षण हो सकते हैं। पेल्विक परीक्षण, पैपस्मीयर, काल्पोस्कोपी, व बायोस्पी इसके परीक्षण में मदद करते हैं। योनि कैंसर के चरण को जानने के लिए सीटी स्कैन, एमआरआई व पीईटी स्कैन कर सकते हैं। सिस्टोस्केपी व प्राक्टोस्कोपी से इसके पेशाब की थैली व मलाशय तक क्रमशः फैलाव को जानते हैं। इन जाटों के द्वारा इसके स्टेज को जाना जाता है कि वह चार चरणों में से कहां तक फैल चुका है। योनि कैंसर का उपचार, कैंसर के प्रकार, कैंसर के कारण व उम्र पर निर्भर करता है। लेजर सर्जरी और सामयिक उपचार का प्रयोग प्री कैंसर कोशिकाओं के इलाज के लिए किया जाता है। आक्रामक योनि कैंसर के लिए अक्सर सर्जरी, विकिरण और कीमोथेरेपी की भी आवश्यकता होती है। योनि कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए मरीज को नियमित रूप से पैल्विक जांच और जैसे अन्य जांच कराना चाहिए। साथ ही एचपीवी की वैक्सीन लगवाएं। यह सर्वाइकल कैंसर बचाने में भी मदद करती है। इसमें भारत सरकार कम दरों पर वैक्सिन उपलब्ध करवाने के लिए प्रयासरत है। धूम्रपान न करें। धूम्रपान से योनि कैंसर सहित अन्य कैंसर का भी खतरा बढ़ जाता है।
घातक हो सकती है लापरवाही
कैंसर के अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि योनि बाहरी जननांगों को गर्भाशय से जोड़ने वाली एक मांसपेशियों की ट्यूब होती है। कैंसर वैजाइना की आंतरिक सतह वाली कोशिकाओं में होता है, जो धीरे-धीरे खतरनाक रूप ले लेता है और दूसरे अंगों तक भी फैलने लगता है। वेजाइनल सिस्ट योनि की लाइन में गांठ के रूप में होती है। योनि के आसपास की यह गांठ सामान्य तौर पर तीन प्रकार की होती है। जिसे योनि समावेशन सिस्ट, गार्टनर डक्ट सिस्ट और बर्थोलिन सिस्ट के नाम से जाना जाता है। योनि कैंसर के कई प्रकार होते है, लेकिन स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा स्क्वैमस योनि की आंतरिक लाइनिंग में मौजूद पतली व चपटी कोशिकाएं होती है, जिसमें कैंसर पनपता है। यह वैजाइना से शुरू होकर फेफड़ों, लिवर या हड्डियों में फैल सकता है। जबकि एडेनोकार्किनोमा ग्लैंड्युलर कोशिकाएं योनि की आंतरिक लाइनिंग में मौजूद श्लेम से बनती हैं, जिसमें एडेनोकार्किनोमा कैंसर होता है। यह वैजाइना के अलावा फेफड़ों और लिम्फ नोड्स में फैल सकता है। खास यह है कि योनि के कैंसर के चार चरण होते है। पहले चरण में ट्यूमर योनि के बाहरी भागों में नहीं फैलाता। दूसरे चरण में यह योनि से बाहर पेल्विस एरिया में फैलना शुरू हो जाता है। तीसरे चरण में कैंसर पेल्विस के लिम्फ नोड्स तक फैल जाता है। इसके अलावा चौथे चरण में कैंसर ब्लैडर, मलाशय और पेल्विस के बाकी एरिया में फैलना शुरू हो जाता है। इसके बाद वह शरीर के बाकी हिस्सों में फैलना शुरू हो जाता है। ऐसे में अगर वेजाइना से पानी जैसा डिस्चार्ज होना, यूरिन पास करते समय तेज दर्द, बार-बार पेशाब आना, कब्ज की समस्या, श्रोणि में दर्द होना, पेड़ू यानी पेल्विक में दर्द, वेजाइना की दीवार पर ऊपर की ओर गांठ का दिखना, टैम्पोन डालते समय दर्द का होना, सेक्सुअल इंटरकोर्स में परेशानी, असामान्य रूप से ब्लिडिंग (फिजिकल रिलेशन या मेनोपॉज के बाद), वेजाइना से पानी जैसा निकलना, अनियमित पीरिड्स, पेट के निचले हिस्से में दर्द, योनि में खुलजी, वेजाइन में कोई गांठ होना, पेशाब में जलन के साथ ही इनग्रोन हेयर, स्किन टैग के अलावा दाद व योनी में मस्से की समस्या भी कैंसर के लक्षण हो सकते है। लेकिन वेजाइनल सिस्ट से कैंसर का खतरा अधिक होता है। या यूं कहे वेजाइना में गांठ की समस्या जानलेवा हो सकती है। इससे पेशाब करने में दर्द, स्किन कलर में बदलाव या पेल्विक पेन जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। अगर मरीज ऐसे ही किसी लक्षण का सामना कर रही हैं तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें। क्योंकि ये गांठ कैंसर का रूप ले सकती है। 60 से अधिक उम्र में इसका खतरा बढ़ जाता है। सर्वाइकल कैंसर और एचपीवी के कारण होने वाली वेजाइनल इन्ट्रापिथेलिअल नीओप्लेसिआ में इसका खतरा रहता है। एक से अधिक लोगों के साथ संबंध बनाना, शराब, सिगरेट अधिक लेना, एचआईवी संक्रमण से ग्रस्त होना। जब भी कोई डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल के टच में आना या कम उम्र में संबंध बनाना आदि से भी कैंसर होने का खतरा बना रहता है।बचाव के उपाय
ज़्यादातर योनि सिस्ट आकर में बेहद छोटे होते है जिस वजह से किसी भी तरह के इलाज की जरूरत नही होती है। लेकिन अगर वेजाइना में सिस्ट का आकार में बढ़ने लगे और वह दर्द का कारण बन रहा है तो यह एक गंभीर समस्या हो सकती है। साथ ही ऐसे समय में इसका इलाज जरूरी है। इस तरह के योनि सिस्ट का नियमित तौर पर परीक्षण करके उसमें परिवर्तन और आकार में वृद्धि की जांच की जाती है। यदि सिस्ट बड़ी हो जाती है या किसी तरह का गंभीर लक्षण दिखाई देता है, तो डॉक्टर सिस्ट को हटाने के लिए सर्जरी की सलाह देते है। विशेषज्ञों का कहना है कि 80 फीसदी एचपीवी संक्रमण से ग्रस्त होते हैं, जो इस कैंसर का जोखिम बढ़ाता है। ऐसे में सबसे पहले तो एचपीवी इंजेक्शन लगवाएं। कम उम्र और एक से अधिक लोगों के साथ संबंध बनाने से बचें। इसके अलावा संबंध बनाते समय सेफ्टी का ध्यान जरूर रखें। धूम्रपान वैजाइनल कैंसर होने की सम्भावना को 100 फीसदी बढ़ा देता है। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि जिन महिलाओं में स्त्री रोग संबंधी पहले कोई समस्या रही हो, उनमें भी वैजाइनल कैंसर का खतरा होने की संभावना अधिक है। इसके अलावा साड़ी पहनने का तरीका भी बन सकता है कैंसर का कारण। अक्सर देखा गया है कि महिलाएं पेटीकोट या साड़ी ज्यादा कसकर बांधती है, जो घातक हो सकता है। कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों में इस कैंसर का जोखिम अधिक होता है। जिन महिलाओं की हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी होती है, उनमें योनि कैंसर होने की संभावना अधिक होती है। यदि महिला को पहले कभी सर्वाइकल कैंसर हुआ है और उस महिला ने किसी प्रकार का इलाज कराया है, तो यह योनि कैंसर के लिए एक बहुत ही उच्च जोखिम पैदा करता है। यदि किसी महिला का पूर्व में रेडिएशन थेरेपी से इलाज हुआ है, तो यह कभी-कभी योनि कैंसर होने की संभावना को बढ़ा सकता है। यदि कोई महिला योनि पेसरी का उपयोग करती है, जैसे कि पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स के दौरान, तो ये योनि कैंसर होने की संभावना को बढ़ाता है।
कैंसर का परीक्षण
वेजाइना कैंसर का टेस्ट होता हैं इसमें पैल्विक परीक्षण, पैप स्मीयर कॉल्पोस्कोपी (गर्भाशय ग्रीवा का परीक्षण), बायोप्सी द्वारा किया जाता है। इसमें डॉक्टर्स आपकी हिस्ट्री के बारे में पूछते हैं, जिसके आधार पर परीक्षण किया जाता है। कैंसर की पुष्टि होने के बाद कुछ और टेस्ट किए जाते हैं।
योनि के कैंसर का इलाज
अगर शुरूआती चरण में इसके संकेत पहचान लिया जाए तो इलाज संभव होता है। मगर, योनि के बाहर कैंसर फैलने पर इसका ट्रीटमेंट मुश्किल हो जाता है। स्थिति के हिसाब से छोटे ट्यूमर या घावों को हटाने के लिए सर्जरी की जाती है। पूरे कैंसर को हटाने के लिए सर्जरी द्वारा योनि का एक भाग निकाल दिया जाता है। कई मामलों में डॉक्टर्स गर्भाशय, अंडाशय और आसपास के लिम्फ नोड्स को निकालने की सलाह भी देते हैं। अगर कैंसर पेल्विस यानि श्रोणि में फैल जाए तो डॉक्टर सर्जरी द्वारा मूत्राशय, अंडाशय, गर्भाशय, योनि, मलाशय और कोलन के निचले हिस्से को भी निकाल सकते हैं। इसके अलावा विकिरण और कीमोथेरेपी द्वारा भी इसका इलाज किया जाता है। विकिरण थेरेपी में एक्स-रे जैसी उच्च-ऊर्जा वाली बीम का यूज करके कैंसर कोशिकाओं को मारा जाता है। वहीं कीमोथेरेपी में रसायनों का इस्तेमाल करके कोशिकाओं को खत्म किया जाता है।
पेनिस कैंसर
भारत में बीते कुछ सालों में लिंग में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे मामलों में मरीजों की जान बचाने के लिए डॉक्टर सर्जरी के जरिए पेनिस को काटकर अलग कर रहे हैं। बीते एक दशक में देश में 6500 से ज्यादा ऐसी सर्जरी की जा चुकी हैं। इसे पेनाइल कैंसर कहा जाता है, ये एक दुर्लभ बीमारी है। पेनिस में होने की वजह से इस कैंसर के बारे में लोग बहुत खुलकर बात भी नहीं कर पाते हैं। लेकिन अब ये काफी गंभीर परेशानी बन रहा है। भारत में प्रति 1,00,000 पुरुषों पर 2.1 की उच्चतम की दर से ये कैंसर हो रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 2012 और 2023 के बीच पेनाइल कैंसर के 21,000 मामले दर्ज किए गए। इसकी वजह से 4,000 से अधिक मौतें हुईं और पिछले दस वर्षों में 6,500 से ज्यादा सर्जरी कर पेनिस अलग किए गए। देखा जाए तो हर दो ऐसे ऑपरेशन बीते दस साल में डॉक्टरों ने किए हैं। पेनाइल कैंसर के लक्षण अक्सर लिंग पर घाव से शुरू होते हैं जो ठीक नहीं होता है और तेज गंध वाला स्राव होता है। कुछ लोगों को रक्तस्राव और लिंग का रंग भी बदल जाता है। शुरुआत में कैंसर का पता चलने पर घाव के सर्जिकल तरीके से हटाकर, रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी जैसे उपचारों के माध्यम से ठीक होने की उच्च संभावना होती है। अगर शुरुआती दौर में इलाज ना किए तो फिर लिंग और अंडकोष का आंशिक या पूरी तरह हटाना आवश्यक हो सकता है। ओरल सेक्स का प्रयोग भी जानलेवा बन सकता है। ओरल सेक्स करने वाले युवाओं को कैंसर अपनी गिरफ्त में ले रहा है। ओरल सेक्स (मुख मैथुन) के कारण युवाओं को मुख का कैंसर हो रहा है। पहले इस कैंसर का प्रमुख कारण तंबाखू व गुड़ाखू हुआ करता था। कैंसर के इस नए कारण ने विशेषज्ञों की नींद उड़ा दी है। कैंसर अस्पताल के कैंसर यूनिट में इलाज के लिए आने वाले कई मरीज ओरल कैंसर से ग्रस्त हैं। इनमें से अधिकतर की उम्र 20 से 35 साल है। ये युवा ओरल सेक्स करते हैं। ओरल सेक्स के कारण एचपीवी (ह्यूमन पेपिलोमा वायरस) नामक नया वायरस पैदा हो रहा है। यही वायरस मुंह के कैंसर के लिए जिम्मेदार है। एचपीवी के कारण महिलाओं को सर्वाइकल व एनल केनाल का कैंसर आम है। अब युवाओं में मुंह का कैंसर हो रहा है। इन युवाओं में युवक व युवतियां दोनों शामिल हैं। कैंसर विशेषज्ञों का कहना है कि यह संख्या काफी कम है। हकीकत में यह संख्या ज्यादा हो सकती है। अधिकतर युवा शर्म व झिझक के कारण अस्पताल नहीं पहुंचते। जागरूकता के कारण कुछ युवा अस्पताल पहुंचकर अपना इलाज करवाते हैं। पीसीआर बॉयो केमिकल टेस्ट से एचपीवी की पहचान की जा सकती है। जिंस व कैंसर सेल को टेस्ट कर एचपीवी की पहचान की जाती है। इस टेस्ट में एचपीवी पॉजीटिव आने से बीमारी की पुष्टि होती है। तंबाखू में मौजूद निकोटिन जैसे 4000 अन्य हाइड्रो कार्बन यानी केमिकल से मुंह का कैंसर होता है। जबकि एचपीवी वायरस से होने वाली बीमारी है। दोनों कारणों में यही मुख्य अंतर है। 50 से ज्यादा उम्र वालों में स्जोग्रेन सिंड्रोम का खतरा ज्यादा होता है। क्योंकि लोगों की उम्र बढ़ने के साथ एक्सोक्राइन ग्लैंड स्लो काम करता है.महिलाओं में पुरुषों की तुलना में स्जोग्रेन सिंड्रोम विकसित होने की संभावना 10 गुना अधिक होती है. सूखी आंखें, सूखा मुंह, खाना निगलने में कठिनाई, गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स और एसोफैगिटिस, पेट में दर्द और दस्त, अग्नाशयशोथ, अवशोषण में कमी, लिम्फोमा लक्षण हो सकता है.
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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