मधुबनी, 11 नवंबर , (अजय धारी सिंह/रजनीश के झा)। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवोत्थान एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त हो जाता है। चातुर्मास के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होता है, देवोत्थान एकादशी के दिन श्री हरि के जागते ही मिथिला में शहनाई की गूंज सुनाई देने लगेगी, शादी-विवाह सहित अन्य मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। देवोत्थान एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। देवोत्थान एकादशी के दिन व्रत रखकर विधिपूर्वक पूजा करने से घर में धन-धान्य की कभी भी कमी नहीं रहती, साथ ही भगवान् विष्णु की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है। इसके साथ ही तुलसी विवाहोत्सव 13 नवंबर (बुधवार) को मनाया जाएगा।
12 नवंबर (मंगलवार) को इस वर्ष होगा देवोत्थान एकादशी।
जिले के रूपौली ग्राम निवासी ज्योतिषाचार्य पंडित कमल झा ने बताया है कि धर्मशास्त्र में एकादशी व्रत का विशेष महत्त्व है। यह दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। प्रत्येक महीने में दो एकादशी तिथियां आती हैं। एक शुक्ल पक्ष और एक कृष्ण पक्ष में, इसमें कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का महत्त्व सबसे अधिक है। साल में एकादशी का कुल 24 व्रत रखा जाता है। पंचांग के योग अनुसार इस बार देवोत्थान एकादशी 12 नवंबर (मंगलवार) को पड़ा है। एकादशी तिथि का आरंभ 11 नवंबर को अपराह्न के 02:54 के बाद होगा और इसका समापन 12 नवंबर को दिन के 12:37 पर होगा। लेकिन उदया तिथि के मंगलवार को पडने के कारण मिथिला में देवोत्थान एकादशी 12 नवंबर को मनाना शास्त्र सम्मत होगा।
एकादशी तिथि को तुलसी पूजन का है विशेष महत्व है।
ज्योतिषाचार्य पंडित रंजेश्वर झा ने बताया कि शास्त्रों में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कार्तिक माह की द्वादशी तिथि को तुलसी माता और भगवान् शालग्राम का विवाह हुआ था। तदनुसार इस वर्ष देवोत्थान एकादशी 12 नवंबर (मंगलवार) के अगले दिन अर्थात 13 नवंबर (बुधवार) को तुलसी विवाह की तिथि पड़ती है। तदनुसार आम लोग द्वारा तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन मनाएंगे। इस वर्ष कार्त्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 12 नवंबर को मध्याह्न 12:38 बजे से प्रारंभ हो रहा है। जबकि द्वादशी तिथि का समापन 13 नवंबर बुधवार के दिन के पूर्वाह्ण 10:17 बजे में होगा। ऐसे में उदयगामिनी तिथि के 13 नवंबर (बुधवार) पडने के कारण तुलसी विवाहोत्सव 13 नवंबर (बुधवार) को मनाया जाएगा। माता तुलसी को धन की देवी माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। आमतौर पर घरों में सुबह-शाम इस पौधे की पूजा की जाती है। लेकिन तुलसी विवाह के दिन तुलसी की आराधना करने से वैवाहिक जीवन में खुशियों का वास होता है।
जानिए क्या है देवोत्थान एकादशी के व्रत की विधि।
ज्योतिषाचार्य पंडित रंजेश्वर झा ने बताया कि इस वर्ष भी देवोत्थान एकादशी की पूजा का आयोजन सन्ध्यापहर होगा। इस व्रत की दो विधियाँ हैं, पहले विधि में व्रती दिन भर व्रत कर संन्ध्या में भगवान् की पूजा में सम्मिलित होकर, चरणोदक लेकर, एक बार फलाहार कर लेते हैं। गृहस्थों के लिए इसका विधान है। लेकिन नियम इतना ही है कि एक बार बैठकर जो फलाहार करना हो कर लें, बार-बार नहीं, इसमें भी कई विशेष सम्प्रदाय में भेट के चावल का भात दही सैन्धव नमक के साथ खाने की प्रथा है। दूसरी विधि है कि दिन-रात व्रत कर अगले दिन सूर्योदय के बाद पारणा करते हैं। इसका विधान वैष्णव साधु-संतों के लिए किया गया है। आजकल बहुत गृहस्थ भी कथावाचन और प्रवचन से प्रभावित होकर दूसरी विधि यानी दिन-रात व्रत करने की विधि अपनाते जा रहे हैं। लेकिन मिथिला में आमजनों के लिए पहली विधि ही प्रचलित है।
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