भोपाल : दीया उम्मीद का जलता है रात भर फिर भी.... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 11 नवंबर 2024

भोपाल : दीया उम्मीद का जलता है रात भर फिर भी....

Kavi-goshthi-bhopal
भोपाल। अब सदियां पत्थर की होगी, अब दुनिया पत्थर की होगी लक्ष्मीकांत जी ने जैसे ही यह पंक्तियां पढ़ीं, श्रोताओं ने तालियां बजा कर स्वागत किया। अवसर था हिंदी भवन में सम्पन्न काव्य गोष्ठी का, जिसे निर्भया साहित्यिक, सामाजिक महिला कल्याण संस्थान् द्वारा आयोजित किया गया। काव्य गोष्ठी में राजधानी के साथ ही सीहोर, झारखंड, शहडोल एवं रायपुर छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों की उपस्थिति में कवयित्री वीणा जी को ’निर्भया साहित्य सम्मान् से सम्मानित किया गया। कवयित्री प्रमिला मीता ने सभी स्वागत किया तथा सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर काव्य गोष्ठी का शुभारंभ किया। सुरेश सीहोरी ने पढ़ा ‘‘मेरी खुद्दारी मुझे सताने के काम आई,’’ प्रियेश जी ने पढ़ा ‘‘हमें कर्तव्य दे देना, हमें अधिकार दे देना, हमारा हक हमारी जिंदगी में प्यार दे देना’’ दीपक जी ने कहा-‘‘ये रहबर हमारे नहीं तय करेंगे, हमें क्या है तय करना हमीं तय करेंगे,’’ प्रतिभा जी ने कहा-‘‘द्वार- द्वार दीपक जले,कहते हैं मुस्काय, जगमग जग कर दें चलो, तिमिर ठहर नहिं पाय।’’ आविद काज़मी ने पढ़ा-‘‘माँ को छोड़ आए आश्रम में मगर, फिर भी गैरत की बात करते हैं,’’ राजेन्द्र राही ने पढ़ा-‘‘ओ अहिंसा के पुजारी सच है आजादी मिली है, पर बताओ धूप पश्चिम की अभी तक क्यों खिली है।’’


कमलेश वर्मा ने पढ़ा-‘‘जानाँ के दिलरुबा के मुहब्बत के दिलनशीं, कोई हमें बताएँ के क्या क्या कहें उसे।’’ प्रदीप जी ने पढ़ा-‘‘दुश्मनी करता रहा दोस्त मेरा बनकर जो, आज क्या सोच के वो मुझसे वफ़ा माँगे है।’’ सविता सुरजी ने पढ़ा-‘‘जीवन का अनुराग लिखूँगी, प्रेम विरह और त्याग लिखूंगी, कभी मन अति आल्हादित होगा फिर कविता का सार लिखूँगी।’’ गौरव गर्वित जी ने पढ़ा-‘‘मिरे हाथों की रेखाएंँ मुक़द्दर हो नहीं सकती, मिरी किस्मत लिखी जाएगी अब पैरों के छालों से।’’ शिवराज सिंह आजाद ने पढ़ा-‘‘जिंदगी तो बस सफर होती है, मौत लेकिन सबका घर होती है।’’ दिनेश जी ने पढ़ा-‘‘दर्द के मेरे दिल पर निशां छोड़कर, जा रहे हैं अकेले कहाँ छोड़कर।’’ अनिता श्री ने पढ़ा-‘‘जीवन के सफर में कल सच्चा इंसान मिले, सारे सद्गुण उसके अपने में समा लेना।’’ प्रमिला मीता ने पढ़ा-‘‘सुहानी भोर लगती है,शरद का आगमन जब से, गुलाबी ठंड भाती है,शरद का आगमन जब से।’’ प्रियंका प्रियांजलि ने पढ़ा-‘‘झीने घूंघट पर से मैंने उसकी छाया देखी थी।’’ सूर्य प्रकाश जी ने पढ़ा-‘‘कहने को यूँ तो हमको हँसाती है जिंदगी, लेकिन तभी सभी खूँ रुलाती है जिंदगी।’’ रेनू श्रीजी ने पढ़ा- ‘‘फिर मचा शहर में है कोहराम देखिए।’’ कृष्ण देव जी ने पढ़ा-‘‘निर्भया हो पग बढ़े अब रास्ते के पत्थरों मुझको डराना छोड़ दो।’’ राजेश राही ने पढ़ा-‘‘साँसे तन की देखिए कितनी है अनमोल, जिन्दा डूबे मृत नहीं अपनी आँखें खोल।’’ राजेश जी ने पढ़ा -‘‘ये बच्चे किसके हैं भुखमरी गरीबी।’’ नीता जी ने पढ़ा-‘‘जरा-सा सँवरने को जी चाहता है, सँवरकर बिखरने को जी चाहता है।’’ सुरेश आकाश ने पढ़ा-‘‘अपने दुखों का दादरा गाया नहीं गया, दुनिया का दर्द हमसे पचाया नहीं गया’’ वृंदावन सरल ने कहा-‘‘दर्द में भी मुस्कुराना चाहिए, ये हुनर हम सबको आना चाहिए।’’ प्रेमचंद प्रेम ने पढ़ा-‘‘हर एक शाम भी होती नहीं सहर फिर भी, दीया उम्मीद का जलता है रात भर फिर भी।’’ बिहारीलाल अनुज ने पढ़ा-‘‘धूप का जीवन से सनातन नाता है।’’ व्ही के श्रीवास्तव ने पढ़ा-‘‘जिंदगी सिर्फ बातों से नहीं चलती, जिंदगी जज्बातों से नहीं चलती।’’ वीणा विद्या ने पढ़ा-‘‘गुड़िया पुरानी हुई, बिटिया सयानी हुई।’’ पुरुषोत्तम जी ने पढ़ा-‘‘दूर होगा सघन तम बस एक दीपक है जलाना, रश्मियों के पुँज बिखरे बस एक दीपक है जलाना।’’ अशोक व्यग्र ने अध्यक्षीय उद्बोधन के साथ नयनों पर सुंदर गीत प्रस्तुत किया । कवि अशोक निर्मल ने सबका आभार व्यक्त किया।

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