- पूरा माहौल जय श्रीकृष्ण, बांके बिहारी लाल की जय, हर हर महादेव के जयघोष से वृंदावनमय हो गया
- लाखों आस्थावानों ने की विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला का साक्षात दर्शन
श्रीकृष्ण लीला का शुभारंभ सायंकाल गोधूली बेला में ठीक 4.40 बजे नटवर नागर श्रीकृष्ण सुदामा सहित अपने सखाओं के साथ गेंद खेलते हैं। गेंद खेलते-खेलते अचानक गंगा रुपी यमुना में जा गिरी। सुदामा की गेंद लाने के बहाने नदी में जैसे ही श्रीकृष्ण कूदने की कोशिश करते है उन्हें यह कहकर रोकेने का प्रयास किया जाता है कि कालिया नाग के प्रयोग से यमुना का पानी जहरीला है। बावजूद इसके कालिया नाग पर काबू पाने के लिए लीला को आगे बढ़ाते हुए श्रीकृष्ण कदंब की डाल पर चढ़ते हैं। भक्तों के हृदय की धड़कनें एकाएक थम गयी। पेड़ चढ़ कान्हा ने चहुंओर दर्शन देकर मुरली बजायी और ब्रज विलास के दोहे ‘यह कहि नटवर मदन गोपाला, कूद परे जल में नंदलाला..’ गायन के बीच नंदलाल कदंब की डाल से कालीदह में कूद पड़ते है। भगवान श्रीकृष्ण की बालरुप में मंचन कर रहे बालक के गंगा में छलांग लगाते ही दर्शकों की आंखे खुली की खुली रह जाती है। हर मुख से यही निकलता है बचाओं-बचाओं, लेकिन मां गंगा की गोद में पीपे के संजाल में विशेषज्ञ तैराकों की मदद से इस पांच मिनट में बालक रुपी श्रीकृष्ण को पीपे के अंदर मौजूद कालिया नाग रुपी स्टैच्यू के फन पर श्रीकष्ण को खड़ा किया जाता है, इसके बाद बाहर निकाला जाता है। इसके साथ ही अधीर हुआ लीला स्थल वृंदावन बिहारी लाल व गिरधर नटवर की जय के साथ ही हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठता है। घंट-घड़ियाल, शंखनाद व डमरुओं की थाप व महताबी की जगमग में प्रभु श्रीकृष्ण कालिया नाग को नाथकर उसके फण पर पांव रखे बांसुरी बजाते बाहर निकलते है। चहुंदिशाओं से कपूर की आरती उतारी जाती है और प्रभु श्रद्धालुओं को दर्शन देकर निहाल कर देते हैं। इस अद्भूत क्षण को आंखों में सहेजने को आतुर दर्शनार्थी भाव विह्वल हो गए। तो दुसरी तरफ इन अलौकिक पलों को अपने कैमरों और मोबाइल में कैद करने की होड़ मच जाती है।
इसके पूर्व तक घाटों पर लाखों की भीड़ जमा हो गयी थी। माहौल कुछ इस कदर हो जाता है लगता है काशी के तुलसी घाट नहीं बल्कि वृंदावन के यमुना घाट पर मौजूद है। ऐसा लगता है कि मानो धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। प्रभु श्रीकृष्ण की कालिया नाग के दर्प चूर करने की लीला वस्तुतः नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने का संदेश है जो आज के दौर में और भी प्रासंगिक हो जाता है। एक तरफ गंगा में नाव, बजड़ों पर सवार श्रद्धालुओं समेत घाट पर बैठे लोग घंट-घड़ियाल, शंख ध्वनि के बीच प्रभु छवि की आरती उतारते रहे तो दुसरी तरफ भक्त जयकारे लगाते रहे। इस लीला को देखने के लिए देश कोने-कोने से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी सैलानी पहुंचे थे। इस पल को देख कुछ ऐसा लगता है कि मानो धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। इस लीला की शोभा को शोभायमान करने के लिए परंपरागत रूप से चले आ रहे संस्कृति का निर्वहन करते हुए काशी नरेश के वंशज कुंवर अन्नत नारायण सिंह भी अपने पत्र के साथ पहुंचे थे। महाराज बजड़े से ही लीला झांकी का दर्शन करते है। इस दौरान होने वाले भारी जनसैलाब को नियंत्रित करने के लिए जिला प्रशासन की ओर से पुख्ता इंताजामात भी किए गए थे, जिसमें भारी संख्या में पुलिस बल व पीएससी की तैनाती की गई थी। गोस्वामी तुलसीदास अखाड़ा के अध्यक्ष और संकटमोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वंभरनाथ मिश्र ने बताया कि दुनिया में कहीं भी भगवान श्रीकृष्ण की जल लीला देखने को नहीं मिलती है, लेकिन सिर्फ बनारस में इसका मंचन होता है। इस लीला का शुभारंभ स्वयं संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास ने की है। श्री मिश्र ने बताया कि कालिया नाग ने द्वापर में यमुना को प्रदूषित किया था जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने प्रदूषण मुक्त किया। इसी तरह मां गंगा में दर्जनों नालों व कल कारखानों के मलबे के रूप में बहते कालियनाग का दमन करने में इस लीला का संदेश होता है। बताते है मुगलकाल में भी इस लीला का मंचन थमा नहीं और बादशाह अकबर भी लीला देखने पहुंचे थे।
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