गांव की आशा कार्यकर्ता गोदावरी देवी कहती हैं कि वास्तव में हमारे गांव में कंप्यूटर सेंटर नहीं है जिसका प्रभाव किशोरियों के विकास पर पड़ रहा है. आत्मनिर्भर बनने के उनके सपने अधूरे रह जा रहे हैं और अवसरों की डोर हाथ से फिसल जा रही है. वह सलाह देते हुए कहती हैं कि यदि गांव में कंप्यूटर सेंटर खुलता है तो किशोरियां अपनी पढ़ाई के साथ साथ बचे हुए समय का सदुपयोग करते हुए कंप्यूटर सीख सकती हैं. इसका उदाहरण देते हुए गोदावरी देवी कहती हैं कि हाई स्कूल और 12वीं के पेपर होने के बाद किशोरियों के पास 3 महीने का समय होता है. उन दिनों में वह परीक्षाफल का इंतज़ार कर रही होती हैं. ऐसे में यदि गांव में कंप्यूटर सेंटर होता तो यह किशोरियों इन तीन महीनों का उपयोग इस महत्वपूर्ण तकनीक को सीखने में लगा सकती हैं. इस संबंध में गांव की सामाजिक कार्यकर्ता नीलम ग्रेंडी कहती हैं कि 12वीं के बाद भी सरकारी और निजी सेक्टरों में नौकरी के द्वार खुल जाते हैं. लेकिन इन सभी नौकरियों में आवेदकों से कंप्यूटर की जानकारी अनिवार्य रूप से मांगी जाती है. ऐसे में कंप्यूटर तक किशोरियों की पहुंच नहीं होने के कारण वह इसमें दक्ष नहीं हो पाती हैं. इसके अतिरिक्त कई बार वह नौकरी के लिए यदि आवेदन भी करना चाहें तो इसके लिए उन्हें गरुड़ जाना पड़ता है क्योंकि अब सभी कार्य ऑनलाइन हो गए हैं. वह कहती हैं कि सरकार की डिजिटलीकरण योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में CSC (कॉमन सर्विस सेंटर) खोलने का लक्ष्य है. ऐसे में पिंगलो गांव इसका लाभार्थी बन सकता है.
वहीं स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से भी इस दिशा में पहल कर गांव में कंप्यूटर सेंटर खोल कर किशोरियों को इसकी ट्रेनिंग दी जा सकती है. इस संबंध में वह दिल्ली स्थित गैर लाभकारी संस्था चरखा का उदाहरण देते हुए बताती हैं कि किशोरी सशक्तिकरण की दिशा में इस संस्था की ओर से गरुड़ ब्लॉक के 6 गांव जखेड़ा, गनीगांव, चोरसो, लमचूला, रौलियाना और सैलानी गांव में 'दिशा ग्रह' नाम से कंप्यूटर सेंटर खोले गए हैं, जहां करीब 62 ग्रामीण किशोरियां गांव में ही रहकर कंप्यूटर के बुनियादी कौशल सीख रही हैं. वहीं कपकोट ब्लॉक स्थित बैसानी और चौरा गांव में भी इस संस्था की ओर से 'दिशा ग्रह' के माध्यम से करीब 30 किशोरियां कंप्यूटर चलाना सीख रही हैं. जिससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ रहा है. वास्तव में, डिजिटल साक्षरता का प्रसार केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि एक अधिकार है. पिंगलों और उसके जैसे अन्य गांवों में इसे प्राथमिकता देने से न केवल किशोरियों का भविष्य बेहतर होगा, बल्कि यह पूरे समाज को आत्मनिर्भरता और प्रगति की दिशा में अग्रसर करेगा। किशोरियों के भविष्य को संवारने के लिए डिजिटल साक्षरता को प्राथमिकता देना समय की मांग भी है. यह न केवल उनके करियर की संभावनाओं को बढ़ाएगा, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भी सशक्त करेगा। यदि समय रहते इस दिशा में कदम उठाए गए, तो यह पहल ग्रामीण समाज को साक्षर और सशक्त बनाने में सहायक सिद्ध होगा। वहीं गुंजन और रितिका जैसी अन्य किशोरियों के लिए भी इस आधुनिक तकनीक तक पहुंच आसान हो जाएगी और वह भी अपने सपनों को पंख दे सकेंगी.
महिमा जोशी
कपकोट, उत्तराखंड
(चरखा फीचर्स)
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