मंच के संरक्षक मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के क्रूर रूप को भगवान काल भैरव के नाम से जाना जाता है। शिव महापुराण के अनुसार जब भगवान महेश, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा अपनी श्रेष्ठता और पराक्रम के बारे में चर्चा कर रहे थे, तो भगवान शिव भगवान ब्रह्मा द्वारा कहे गए झूठ के कारण क्रोधित हो गए। इसके परिणाम के रूप में, भगवान कालभैरव ने क्रोध में भगवान ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया। इसलिए इसी तिथि पर शिवजी के क्रोध से कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। दारुक नामक अनुसार ने जब ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त किया कि मेरी मृत्यु सिर्फ किसी स्त्री से हो तो बाद में उसका वध करने के लिए माता पार्वती का एक रूप देवी काली प्रकट हुई। असुर को भस्म करने के बाद मां काली का क्रोध शांत ही नहीं हो रहा था तब उस क्रोध को शांत करने के लिए शिवजी बीच में आए परंतु शिवजी के 52 टुकड़े हो गए, वही 52 भैरव कहलाए, तब 52 भैरव ने मिलकर भगवती के क्रोध को शांत करने के लिए विभिन्न मुद्राओं में नृत्य किया तब भगवती का क्रोध शांत हो गया। इसके बाद भैरवजी को काशी का आधिपत्य दे दिया तथा भैरव और उनके भक्तों को काल के भय से मुक्त कर दिया तभी से वे भैरव, कालभैरव भी कहलाए। काले रंग के कुत्ते को काल भैरव की सवारी माना जाता है, हिंदू मान्यता के अनुसार काले कुत्ते को रोटी खिलाने से काल भैरव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति आकस्मिक मृत्यु के भय से दूर रहता है। उन्होंने बताया कि ऐसा कहा जाता है कि जो लोग काल भैरव, समय के देवता का अनुसरण करते हैं और इस प्रार्थना का जाप करते हैं, वे अपने समय का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने में सक्षम होते हैं। अष्टकम का जाप करने से व्यक्ति को विकर्षणों, आलस्य और विलंब को दूर करने में मदद मिलती है और साथ ही कार्यों को दिव्य समय के साथ संरेखित करने में भी मदद मिलती है।
सीहोर। शहर के विश्रामघाट मां चौसट योगिनी मरीह माता मंदिर में हर साल की तरह इस साल भी काल भैरव प्रकटोत्सव का आयोजन किया गया। इस मौके पर मंदिर के व्यवस्थापक गोविन्द मेवाड़ा, रोहित मेवाड़ा, जिला संस्कार मंच के संयोजक जितेन्द्र तिवारी, मनोज दीक्षित मामा, अखिल भारतीय चंद्रवंशी खाती समाज के रामपाल वर्मा, धर्मेन्द्र माहेश्वरी, राहुल माहेश्वरी सहित अन्य ने आस्था और उत्साह के साथ पहले दिन मंदिर में स्थित काल भैरव का अभिषेक किया और चौला चढ़ाया, अब रविवार को दूसरे दिन प्रसादी आदि का वितरण किया जाएगा। हर साल मंदिर में चारों नवरात्रि पर देवी की आराधना की जाती है। मंदिर में भैरव के अलावा चौसट योगिनी माताओं को विराजमान किया गया है।
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