दिसंबर तक 4000 रुपये सस्ती होगी चांदी, सोने में आएगी 6000 की गिरावट। वर्तमान में डॉलर के मुकाबले रुपया 84.41 के स्तर पर है, जबकि डॉलर इंडेक्स बढ़कर 106.86 पर जा पहुंचा है। सर्राफा बाजारों में दीवाली से अब तक 10 ग्राम 24 कैरेट सोना 5000 रुपये तो चांदी 12000 रुपये किलो सस्ती हुई है। ऐसे में कारपेट सहित अन्य वस्तुओं के इक्सपोर्ट करने वाले निर्यातकों को डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट से फायदा होता है, क्योंकि उन्हें डालर में भुगतान मिलता है। देखा जाएं तो भारत में डॉलर की कीमत बढ़ने के कारण कई चीजों का असर होता है। अगर डॉलर की कीमत बढ़ती है, तो आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं, जिससे महंगाई बढ़ती है। इसका असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है, क्योंकि विदेशी वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा, अगर रुपये की कीमत लगातार गिरती रहती है, तो इसका असर भारतीय कंपनियों और कारोबारों पर भी पड़ता है, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करते हैं। इस स्थिति में वे महंगे विदेशी कच्चे माल का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है और यह भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकता है। आने वाले समय में रुपये के कमजोर होने या मजबूत होने के कई कारण हो सकते हैं। इसके लिए भारत के विदेशी मुद्रा भंडार, आयात-निर्यात के आंकड़े, वैश्विक आर्थिक स्थिति और अमेरिका की ब्याज दरों में परिवर्तन जैसे तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना एक जटिल और परस्पर जुड़े हुए कारणों का परिणाम है। इससे सिर्फ मुद्रा बाजार पर असर नहीं पड़ता, बल्कि आम आदमी की आर्थिक स्थिति पर भी प्रभाव डालता है। भारत को अपनी मुद्रा की स्थिरता बनाए रखने के लिए व्यापार घाटे को नियंत्रित करना, विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करना और घरेलू उत्पादन को बढ़ाना जरूरी होगा
जानकारों की मानें तो दिसंबर तक सोने के की कीमत में 3000 से 4000 रुपये प्रति 10 ग्राम की कमी आ सकती है। वहीं, चांदी की बात करें तो चांदी की कीमत में 5000 से 6000 रुपये प्रति किग्रा की गिरावट देखने को मिल सकती है। खास यह है कि ट्रंप की जीत से अमरीका में अगले महीने वाली फेडपल रिजर्व की मीटिंग ब्याज दर में कटौती की संभावना पर भी सवालिया निशान लग गया है। इसके चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोना 2600 डॉलर प्रति औंस के नीचे आकर 2590 डॉलर तक लुढ़क गया। पहले से ही विदेशी निवेशकों की बिकवाली का दबाव झेल रहा भारतीय शेयर बाजार भी डॉलर के मजबूत होने और ग्लोबल बाजारों में आई गिरावट से बुधवार को 821 अंक टूटकर 78.675 बंद हुआ। निफ्टी भी 1 प्रतिशत से अधिक लुढ़ककर 23.833 अंक पर रहा। इससे निवेशकों के 5.60 लाख करोड़ डूब गए।
डॉलर के मुकाबले रुपए में हो रही लगातार गिरावट से इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल्स व नॉन-इलेक्ट्रिकल्स मशीनरी, फार्मा, केमिकल्स जैसे सेक्टर में मैन्युफैक्चरिंग लागत बढ़ने की आशंका गहरा रही है। क्योंकि इन सेक्टर में निर्माण से जुड़े अधिकतर कच्चे माल का आयात करना पड़ता है। रुपए में कमजोरी से पहले की तुलना में अब आयात के लिए अधिक कीमत चुकानी होगी। दूसरी तरफ, पेट्रोलियम व खाद का आयात बिल बढ़ने से सरकार पर वित्तीय दबाव भी बढ़ेगा। सरकार खाद का आयात करके उसे काफी कम दाम पर किसानों को देती है। वैसे ही गैस सिलेंडर से लेकर ऊर्जा के कई अन्य माध्यम पर भी सरकार सब्सिडी देती है और आयात बिल बढ़ने से सरकार पर बोझ बढ़ेगा। इससे निपटने के लिए सरकार अन्य मद के खर्च में कटौती कर सकती है। कच्चे माल की कीमत बढ़ने से उत्पादित वस्तुओं की कुल लागत बढ़ जाएगी और वह वस्तु घरेलू बाजार में महंगी हो सकती है क्योंकि निर्माता एक समय तक ही लागत में बढ़ोतरी को बर्दाश्त कर सकता है। मैन्युफैक्चरिंग लागत बढ़ने से विदेशी बाजार में भी इन वस्तुओं की प्रतिस्पर्धा क्षमता घटेगी और निर्यात प्रभावित होगा।
विदेश में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता पर बढ़ेगा बोझ
रुपए में गिरावट से विदेश में पढ़ रहे बच्चों के माता-पिता पर आर्थिक बोझ बढ़ जाएगा। वे अपने बच्चों को मुख्य रूप से डालर में खर्च भेजते हैं और डालर में मजबूती से उन्हें पहले के मुकाबले अधिक भुगतान करना पड़ेगा। हालांकि उन परिवारों को रुपए में कमजोरी का फायदा मिलेगा जिन्हें विदेश से उनके रिश्तेदार पैसे भेजते हैं।
डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है?
डॉलर की कीमत सिर्फ रुपये के मुकाबले ही नहीं बढ़ रही है. डॉलर की कीमत दुनियाभर की सभी करेंसी के मुकाबले बढ़ी है. अगर आप दुनिया के टॉप अर्थव्यवस्था वाले देशों से तुलना करेंगे तो देखेंगे कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत उतनी नहीं गिरी है जितनी बाकी देशों की गिरी है. यूरो डॉलर के मुकाबले पिछले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. कुछ दिनों पहले एक यूरो की कीमत लगभग एक डॉलर हो गई थी. जो कि 2009 के आसपास 1.5 डॉलर थी. साल 2022 के पहले 6 महीने में ही यूरो की कीमत डॉलर के मुकाबले 11 फीसदी, येन की कीमत 19 फीसदी और पाउंड की कीमत 13 फीसदी गिरी है. इसी समय के भारतीय रुपये में करीब 6 फीसदी की गिरावट आई है. यानी भारतीय रुपया यूरो, पाउंड और येन के मुकाबले कम गिरा है.
डॉलर क्यों मजबूत हो रहा है?
रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया में अस्थिरता आई. डिमांड-सप्लाई की चेन बिगड़ी. निवेशकों ने डर की वजह से दुनियाभर के बाज़रों से पैसा निकाला और सुरक्षित जगहों पर निवेश किया. अमेरिकी निवेशकों ने भी भारत, यूरोप और दुनिया के बाकी हिस्सों से पैसा निकाला.अमेरिका महंगाई नियंत्रित करने के लिए ऐतिहासिक रूप से ब्याज दरें बढ़ा रहा है. फेडरल रिजर्व ने कहा था कि वो तीन तीमाही में ब्याज दरें 1.5 फीसदी से 1.75 फीसदी तक बढ़ाएगा. ब्याज़ दर बढ़ने की वजह से भी निवेशक पैसा वापस अमेरिका में निवेश कर रहे हैं. 2020 के आर्थिक मंदी के समय अमेरिका ने लोगों के खाते मे सीधे कैश ट्रांसफर किया था, ये पैसा अमेरिकी लोगों ने दुनिया के बाकी देशों में निवेश भी किया था, अब ये पैसा भी वापस अमेरिका लौट रहा है.
शादियों के सीजन में सोना और चांदी
शादी-विवाह के सीजन में सोने-चांदी की खरीदारी बढ़ जाती है।ऐसे में फेस्टिव या वेडिंग सीजन हो तो खरीदारी के साथ-साथ कीमतें भी बढ़ती हैं, लेकिन डॉलर की मजबूती दोनों की कीमतों में गिरावट जारी हैं शादी की शॉपिंग के लिए सोना व चांदी दोनों सस्ता हो गया है जब से डोनाल्ड ट्रंप को जीत हासिल हुई है, तब से डॉलर इंडेक्स में लगातार मजबूती देखने को मिल रही है. जिसका असर इंटरनेशनल मार्केट से लेकर डॉमेस्टिक मार्केट तक में देखने को मिल रहा है. लोकल मार्केट की बात करें तो गोल्ड की कीमतें 5 सितंबर के बाद से 4.44 फीसदी तक टूट चुकी हैं. वहीं दूसरी ओर इंटरनेशनल मार्केट में गोल्ड के दाम 5 फीसदी तक टूट चुके हैं. जानकारों का अनुमान है कि डॉलर इंडेक्स साल के अंत तक 107 का लेवल छू सकता है. इसका मतलब है कि इंटरनेशनल मार्केट में गोल्ड की कीमतों में और ज्यादा दबाव देखने को मिलेगा और इंटरनेशनल मार्केट में गोल्ड 2300 डॉलर तक पर देखने को मिल सकता है. हाल के दिनों में सोने और चांदी की कीमत में गिरावट का दौर शुरू हो गया है। सोने की कीमत रिकॉर्ड हाई से करीब 3000 रुपये प्रति 10 ग्राम और चांदी की कीमत करीब 6000 रुपये सस्ती हो चुकी है। बता दें कि दिवाली से पहले सोने का भाव 82,000 प्रति 10 ग्राम के करीब पहुंच चुका था। अब वह घटकर 79 हजार हो गया है। वहीं, चांदी की कीमत 1 लाख रुपये प्रति किलोग्राम हो गई थी। अब चांदी की कीमत गिरकर 94,000 रुपये प्रति किग्रा पर आ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि सोने और चांदी की कीमत में गिरावट का यह दौर आगे भी जारी रहेगा। आने वाले दिनों में सोने और चांदी में और बड़ी गिरावट देखने को मिलेगी। उनका कहना है कि ट्रंप की जीत के बाद से डॉलर इंडेक्स में मजबूती लौटी है। इसका असर दोनों कीमती धातु पर हो रहा है, जिसके चलते दोनों की कीमत में गिरावट आ रही है। दिसंबर तक सोने के की कीमत में 3000 से 4000 रुपये प्रति 10 ग्राम की कमी आ सकती है। वहीं, चांदी की बात करें तो चांदी की कीमत में 5000 से 6000 रुपये प्रति किग्रा की गिरावट देखने को मिल सकती है। चांदी की भाव 90 हजार के नीचे देखने को मिलेगा। वहीं, चांदी की कीमत 72 से 73 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के आसपास पहुंच सकती है गोल्ड की कीमतों का सबसे बड़ा दुश्मन डॉलर बना हुआ है. मौजूदा समय में डॉलर इंडेक्स 105.71 के लेवल पर कारोबार करता हुआ दिखाई दे रहा है, कारोबारी सत्र के दौरान इंडेक्स 105.75 के लेवल पर पहुंच गया था. ऐसे में अनुमान है कि जल्द ही डॉलर इंडेक्स अपने 52 हफ्तों के हाई के लेवल को भी पार कर सकता है. जोकि 106.52 है.
रुपया अभी और कमजोर हेगा
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. वो 2025 की 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. इसी के साथ ट्रंप का दूसरा कार्यकाल शुरू हो जाएगा. ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति बनना भारत के लिहाज से अच्छा माना जा रहा है. हालांकि, ट्रंप 2.0 में भारतीय रुपया कमजोर हो सकता है. हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की एक रिपोर्ट आई है. इस रिपोर्ट में ट्रंप की वापसी पर भारत और दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर को लेकर अनुमान लगाया है. रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि ट्रंप 2.0 में रुपया 8 से 10 फीसदी तक टूट सकता है. अगर ऐसा हुआ तो रुपया सबसे निचले स्तर पर पहुंच जाएगा. एसबीआई की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि ट्रंप 2.0 में एक डॉलर की तुलना में रुपये का भाव गिर सकता है. हालांकि, कुछ समय बाद रुपये में मजबूती की उम्मीद भी जताई गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में रुपया 11 फीसदी तक कमजोर हुआ था. अब दूसरे कार्यकाल में रुपया 8 से 10 फीसदी कमजोर होने का अनुमान लगगया है. एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि ओबामा के दूसरे कार्यकाल यानी 2012 से 2016 के बीच रुपया लगभग 29 फीसदी तक कमजोर हो गया था. ट्रंप के पहले कार्यकाल में इसमें 11 फीसदी की गिरावट आई थी. बाइडेन सरकार में अब तक रुपया 14.5 फीसदी तक कमजोर हो चुका है. बाइडेन सरकार की तुलना में ट्रंप के पहले कार्यकाल में रुपया कम कमजोर हुआ था. और दूसरे कार्यकाल में ये 10 फीसदी तक कमजोर हो सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक, बाइडेन सरकार में एक डॉलर की औसत कीमत 79.3 रुपये रही. अभी एक डॉलर का भाव 84 रुपये से ज्यादा है. ट्रंप के पहले कार्यकाल में एवरेज एक्सचेंज रेट 69.2 रुपये था. दूसरे कार्यकाल में ये 87 से 92 रुपये तक पहुंच सकता है.
रुपया कमजोर कैसे होता है?
डॉलर की तुलना में अगर किसी भी मुद्रा का मूल्य घटता है तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना या कमजोर होना कहा जाता है. अंग्रेजी में इसे ’करेंसी डेप्रिसिएशन’ कहते हैं. रुपये की कीमत कैसे घटती-बढ़ती है, ये पूरा खेल अंतरराष्ट्रीय कारोबार से जुड़ा हुआ है. होता ये है कि हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है. चूंकि दुनियाभर में अमेरिकी डॉलर का एक.तरफा राज है, इसलिए विदेशी मुद्रा भंडार में अमेरिकी डॉलर ज्यादा होता है. दुनिया में 85 फीसदी कारोबार डॉलर से ही होता है. तेल भी डॉलर से ही खरीदा जाता ह.डॉलर की तुलना में रुपये को मजबूत बनाए रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर को रखना बहुत जरूरी है. आरबीआई के मुताबिक, 1 नवंबर 2024 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 589.84 अरब डॉलर था. अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में उतना डॉलर है, जितना अमेरिका के भंडार में रुपया है, तो रुपये की कीमत स्थिर रहेगी. अगर डॉलर कम हुआ तो रुपया कमजोर होगा और डॉलर ज्यादा हुआ तो रुपया मजबूत होगा.
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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