गांव के सामाजिक कार्यकर्ता वीरमनाथ कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा के प्रभावित होने के कई कारण हैं. सबसे बड़ी वजह इन स्कूलों में कई वर्षों तक शिक्षकों के पद खाली रहते हैं. जिसके कारण स्कूल में मौजूद एक शिक्षक के ऊपर अपने विषय के अतिरिक्त अन्य विषयों को पढ़ाने और समय पर सिलेबस खत्म करने की जिम्मेदारी तो होती ही है साथ में उन्हें ऑफिस का काम भी देखना होता है. बच्चों की उपस्थिति, मिड डे मील और अन्य ज़रूरतों से संबंधित विभागीय कामों को पूरा करने में ही उनका समय निकल जाता है. जिससे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती है. वह कहते हैं कि इन सरकारी स्कूलों में गांव के अधिकतर आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहद कमजोर परिवार के बच्चे ही पढ़ने आते हैं. जो परिवार आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत बेहतर होते हैं वह अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना पसंद करते हैं. वीरमनाथ कहते हैं कि पूरे राज्य के सरकारी स्कूलों के सभी पदों को मिलाकर करीब एक लाख से अधिक पद खाली हैं. जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर जल्द भरने की जरूरत है. इन खाली पदों के कारण शिक्षा कितना प्रभावित हो रही होगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. हालांकि जिस प्रकार से राज्य सरकार इस दिशा में काम कर रही है इससे आशा की जानी चाहिए कि जल्द ही इन कमियों को दूर कर लिया जाएगा. इसी सप्ताह केंद्र सरकार ने पीएम विद्यालक्ष्मी योजना शुरू करने की घोषणा की है. इसके तहत जो भी छात्र अच्छे उच्च शिक्षण संस्थान में दाखिला लेता है, उसे बैंक और वित्तीय संस्थान बिना किसी गारंटी या जमानत के लोन देंगे. इस योजना का मुख्य उद्देश्य आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार के छात्रों को आर्थिक मदद देना है ताकि पैसे की तंगी की वजह से वह उच्च शिक्षा से वंचित न रह जाए. यह लोन पूरी फीस और पढ़ाई से जुड़े दूसरे खर्चों को पूरा करने के लिए होगा. शिक्षा के क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदम मील का पत्थर साबित होगा. लेकिन सबसे पहले प्राथमिक स्तर की शिक्षा को बेहतर बनाने की आवश्यकता है क्योंकि यह शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों का पहला कदम होता है. ऐसे में बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं से लैस कर इस कदम को मज़बूत बनाया जा सकता है.
ममता
अजमेर, राजस्थान
(चरखा फीचर्स)
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