- विश्वास और श्रद्धा का प्रतीक भगवान शिव और पार्वती विवाह-पंडित शिवम मिश्रा
मंगलवार को भागवत कथा के दूसरे दिन पंडित शिवम मिश्रा ने भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए माता ने अनेक सालों तक कठिन तप किया था। इसी भक्ति और तप के प्रभाव से मां पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त किया। भगवान की प्राप्ति के लिए ज्ञान और बुद्धि की नहीं भाव की शुद्धि की आवश्यकता होती है। पूर्व जन्मों के पाप का ही प्रभाव होता है कि कथा बीच में छूट जाती है। भगवान की कथा मन से नहीं सुनने से जीवन में धार्मिकता नहीं आ पाती। कथा सुनने से चित्त पिघलता है और पिघला चित ही भगवान को अपने में बसा सकता है। श्री शुक देव द्वारा चुपके से अमर कथा सुन लेने के कारण जब भोले बाबा शंकर ने उन्हें मारने के लिए दौड़ाया तो वह एक ब्राह्मणी के गर्भ में छुप गए। कई वर्षों बाद व्यास के निवेदन पर भगवान शंकर इस पुत्र के ज्ञानवान होने का वरदान देकर चले गए। भागवत कथा का श्रवण करने से हमारे पापों का अंत होता है, भागवत वही अमर कथा है, जिसे भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाया था। कथा सुनना भी सबके भाग्य में नहीं होता है, जब भगवान भोलेनाथ से माता पार्वती ने अमर कथा सुनाने की प्रार्थना की तो बाबा भोलेनाथ ने कहा कि जाओ पहले यह देखकर आओ की कैलाश पर तुम्हारे या मेरे अलावा कोई और तो नहीं है। क्योंकि, यह कथा सबके नसीब में नहीं होती है। माता ने पूरे कैलाश पर नजर दौड़ाई, लेकिन उनकी नजर शुक के अपरिपक्व अंडों पर नहीं पड़ी। भगवान शंकर ने पार्वती को जो अमर कथा सुनाई वह भागवत कथा ही थी। लेकिन, कथा के बीच ही माता पार्वती को नींद आ गई और शुक ने पूरी कथा सुन ली। दूसरे दिन भागवत कथा में अमर कथा व शुकदेव के जन्म का वृतांत विस्तार से सुनाया।
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