सीहोर : आज किया जाएगा भगवान श्रीराम का विवाह महोत्सव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 16 दिसंबर 2024

सीहोर : आज किया जाएगा भगवान श्रीराम का विवाह महोत्सव

  • व्यक्ति को बिना गुरु की कृपा के कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता : महंत उद्वव दास महाराज

Ram-vivah-sehore
सीहोर। गुरु गृह गये पढ़न रघुराई, अल्पकाल विद्या सब पाई, व्यक्ति को बिना गुरु की कृपा के कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। गुरु शरण में जाने से ही मुक्ति का द्वार खुलता है। सद्गति पाने के लिए गुरु के चरण रज प्राप्त होना परमावश्यक है। बाल मन पर माता, पिता और गुरु की कृपा का प्रभाव अधिक होता है। यही कारण है कि बाल अवस्था में पिता दसरथ ने अपने पुत्रों को गुरु के सानिध्य में भेजा था। उक्त विचार शहर के सीवन नदी के घाट पर गंगेश्वर महादेव, शनि मंदिर परिसर में जारी संगीतमय नौ दिवसीय श्रीराम कथा में महंत उद्धवदास महाराज ने कहे।  श्रीराम कथा के दौरान उन्होंने भगवान श्रीराम की बाल लीलाओं का भावपूर्ण वर्णन किया। इस मौके पर उन्होंने जटायु और राजा दशरथ के प्रसंग के बारे में भी श्रद्धालुओं को विस्तार से बताया। महंत उद्ववदास महाराज ने कहा कि श्रीराम कथा यह जगत में मंगल प्रदान करती है धन प्रदान करती है धर्म शांति है और परमात्मा के पावन धाम तक पहुंचने में मदद करती है। जीव का जीवन मानस का दर्पण है यदि जीव इसी विश्वास के साथ रामकथा का श्रवण करें तो निश्चित ही यह उसके लिए फलदाई होगा। कथा जीवन के चित्त को निर्मल बना देती है। यह जीव के जीवन को सहज बनाती है। उन्होंने भक्तों से आग्रह करते हुए कहा कि देश की आत्मा बच्चे हैं और संस्कारवान नागरिकों के लिए आप अपने बच्चों को कथा सुनने के लिए प्रेरित करें।


भोलेभण्डारी सहित विभिन्न देवता अवध में आए

उन्होंने भगवान राम की बाल लीलाओं के बारे में विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि भगवान सदाशिव ने केवल सती के शरीर का ही त्याग नहीं किया वरन् श्रीराम की सेवा के लिए स्वयं के शरीर का भी त्याग कर दिया। वानररूप हनुमान बनकर भगवान शंकर ने श्रीरामजी व उनके परिवार की ऐसी सेवा की, आज भी कर रहे हैं और भविष्य में भी अनन्तकाल तक करते रहेंगे, कि सभी को अपना ऋ णी बना लिया। जब श्रीराम ने दशरथनन्दन के रूप में कौसल्या के अंक में जन्म लिया तो अयोध्या के जन-जन में नित नूतन उत्साह छा गया। अयोध्यापुरी में नित नूतन महोत्सव होने लगे। अथाह अतिथियों का सैलाब अयोध्या की ओर उमड़ पड़ा। श्रीरामलला के दर्शन के लिए भोलेभण्डारी सहित विभिन्न देवता अवध में आए। ब्रह्मा आदि देवता तो भगवान का दर्शन-स्तुति कर वापस लौट गए; किन्तु शंकरजी का मन अपने आराध्य श्रीराम की शिशु क्रीड़ा की झांकी में ऐसा उलझा कि वे अवध की गलियों में विविध वेष बनाकर घूमने लगे। कभी वे राजा दशरथ के राजद्वार पर प्रभु-गुन गाने वाले गायक के रूप में, तो कभी भिक्षा मांगने वाले साधु के रूप में उपस्थित हो जाते थे। कभी भगवान के अवतारों की कथा सुनाने के बहाने प्रकाण्ड विद्वान बनकर राजमहल में पहुंच जाते। वे काकभुशुण्डिजी के साथ बहुत समय तक अयोध्या की गलियों में घूम-घूमकर आनन्द लूटते रहे। एक दिन शंकरजी काकभुशुण्डि को बालक बनाकर और स्वयं त्रिकालदर्शी वृद्ध ज्योतिषी का वेष धारणकर शिशुओं का फलादेश बताने के बहाने अयोध्या के रनिवास में प्रवेश कर गए।

कोई टिप्पणी नहीं: