- जब कभी मित्रता की बात होती है तो कृष्ण और सुदामा की मिसाल दी जाती : कथा व्यास पंडित चेतन उपाध्याय
जारी सात दिवसीय भागवत कथा के अंतिम दिन भागवत भूषण पंडित चेतन उपाध्याय ने कथा में सुदामा प्रसंग और परीक्षित मोक्ष का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि सुदामा जी के पास कृष्ण नाम का धन था। संसार की दृष्टि में गरीब तो थे, लेकिन दरिद्र नहीं थे। अपने जीवन में किसी से कुछ मांगा नहीं। पत्नी सुशीला के बार-बार कहने पर सुदामा अपने मित्र कृष्ण से मिलने गए। भगवान के पास जाकर भी कुछ नहीं मांगा। भगवान अपने स्तर से सब कुछ दे देते हैं। सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता का संदेश दिया। भागवत भूषण पंडित श्री उपाध्याय ने राजा परीक्षित संवाद, शुकदेव जन्म, कपिल संवाद का प्रसंग सुनाया। शुकदेव परीक्षित संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार परीक्षित महाराज वनों में काफी दूर चले गए। उनको प्यास लगी, पास में समीक ऋषि के आश्रम में पहुंचे और बोले ऋषिवर मुझे पानी पिला दो मुझे प्यास लगी है, लेकिन समीक ऋषि समाधि में थे, इसलिए पानी नहीं पिला सके। परीक्षित ने सोचा कि इसने मेरा अपमान किया है मुझे भी इसका अपमान करना चाहिए। उसने पास में से एक मरा हुआ सर्प उठाया और समीक ऋषि के गले में डाल दिया। यह सूचना पास में खेल रहे बच्चों ने समीक ऋषि के पुत्र को दी। ऋषि के पुत्र ने नदी का जल हाथ में लेकर शाप दे डाला जिसने मेरे पिता का अपमान किया है आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प पक्षी आएगा और उसे जलाकर भस्म कर देगा।
समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित है और यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है। देवयोग वश परीक्षित ने आज वही मुकुट पहन रखा था। समीक ऋषि ने यह सूचना जाकर परीक्षित महाराज को दी कि आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प पक्षी तुम्हें जलाकर नष्ट कर देगा। यह सुनकर परीक्षित महाराज दुखी नहीं हुए और अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंपकर गंगा नदी के तट पर पहुंचे। वहां पर बड़े बड़े ऋषि, मुनि देवता आ पहुंचे और अंत मे व्यास नंदन शुकदेव वहां पर पहुंचे। शुकदेव को देखकर सभी ने खड़े होकर शुकदेव का स्वागत किया। शुकदेव इस संसार में भागवत का ज्ञान देने के लिए ही प्रकट हुए हैं। शुकदेव का जन्म विचित्र तरीके से हुआ, कहते हैं बारह वर्ष तक मां के गर्भ में शुकदेव जी रहे। एक बार शुकदेव जी पर देवलोक की अप्सरा रंभा आकर्षित हो गई और उनसे प्रणय निवेदन किया। शुकदेव ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। जब वह बहुत कोशिश कर चुकी, तो शुकदेव ने पूछा, आप मेरा ध्यान क्यों आकर्षित कर रही हैं। मैं तो उस सार्थक रस को पा चुका हूं, जिससे क्षण भर हटने से जीवन निरर्थक होने लगता है। मैं उस रस को छोडकऱ जीवन को निरर्थक बनाना नहीं चाहता।
29 जनवरी से नर्मदा महापुराण की कथा
आगामी 29 जनवरी से शहर के ब्रह्मपुरी कालोनी में कथा व्यास पंडित चेतन उपाध्याय की कथा नर्मदा महापुराण का आयोजन किया जाएगा।
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