वहीं सलाहपुर गांव की 35 वर्षीय निर्मला देवी कहती हैं कि कचरा फेंकने का कोई निश्चित स्थान नहीं होने के कारण लोग जहां तहां खुले में घर का कचरा फेंक देते हैं. जिससे निकलने वाली बदबू पूरे गांव के वातावरण को दूषित कर रही है. इसके कारण लोग पहले की अपेक्षा अधिक बीमार हो रहे हैं. विशेषकर इसका सबसे बुरा प्रभाव छोटे बच्चों की सेहत पर पड़ रहा है. वह कहती हैं कि सरकार की ओर से गांव में कचरा उठाने वाली गाड़ी की व्यवस्था है, लेकिन नियमित रूप से गाड़ी के नहीं आने से लोग खुले में कचरा फेंक देते हैं. निर्मला कहती हैं कि पहले की तुलना में गांव अधिक विकसित हो गया है. पक्की सड़कें बन गई हैं. बिजली की व्यवस्था सुधर गई है. जल जीवन मिशन के तहत पीने का साफ़ पानी उपलब्ध हो रहा है. लेकिन दूसरी ओर कचरा निपटान के मामले में लोग और भी अधिक पिछड़ते जा रहे हैं. जिसके लिए समाज को ही पहल करनी होगी. वहीं समाजसेवी कैलाश कहते हैं कि कुछ साल पहले इस चीज को सुधारने और गांव में जन जागरूकता अभियान चलाने के उद्देश्य से मानव श्रृंखला भी बनाई गई थी. लेकिन इसका कोई विशेष लाभ नहीं हुआ. अभी तो हालत ऐसी हो गई है कि पहले की अपेक्षा गांव में और अधिक कचरा फैलने लगा है. जिससे बीमारी फैलाने वाले मक्खी और मच्छर बढ़ते जा रहे हैं. जो स्वास्थ्य के दृष्टि से चिंता का विषय है. कैलाश बताते हैं कि राज्य सरकार की ओर से प्रत्येक जिला में एक वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित किया गया है. मुजफ्फरपुर ज़िले का कचड़ा निपटापन के लिए मड़वन प्रखंड के रौतिनियां गांव में प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित किया गया है. जिस पर सुचारू रूप से काम जारी है. विज्ञान में रुचि रखने वाली निलामबरी गुप्ता कहती हैं कि पहले गांव के लोग प्रकृति से जुड़े थे और वैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग करते हुए कचरे के निस्तारण की व्यवस्था करते थे. यहां तक कि भोजन पकाने वाली लकड़ी को जलाने के बाद उसके बचे हुए राख को खेतों में इस्तेमाल किया जाता था क्योंकि इसमे प्रमुख रूप से कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और सल्फर होता है जो हमारे खेत या फसल के लिए आवश्यक माइक्रोन्यूट्रिएंट (सूक्ष्म तत्व) प्रदान करती है. लेकिन अब लोग इसे फेंक देते हैं.
एक आंकड़े के अनुसार बिहार में प्रतिदिन 6500 से 6800 मीट्रिक टन कचरा निकलता है. लेकिन इनमें से मात्र 11 फीसदी की ही प्रोसेसिंग हो पाती है. बाकी कचरा लैंडफिल में चला जाता है, जिसके चलते शहर से लेकर गांव तक कूड़े के ढ़ेर लगते जा रहे हैं. हालांकि जुलाई 2024 में प्रकाशित खबर के अनुसार लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के दूसरे चरण में ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस और तरल अपशिष्ट (कचरा) प्रबंधन के लिए 5489 ग्राम पंचायतों के 74326 वार्डों में कार्य प्रारंभ हो चुका है. इसके अलावा इस वित्तीय वर्ष में शेष 2534 ग्राम पंचायतों के 35 हजार वार्डों में ठोस कचरा प्रबंधन की व्यवस्था की जानी है. इसके लिए वित्तीय वर्ष 2024-25 में कुल 40 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे. राज्य के 8053 ग्राम पंचायतों के एक लाख नौ हजार 332 वार्डों से कचरा उठाया जाना है. पंचायती राज विभाग द्वारा हर वार्ड में ठोस व तरल कचरा उठाव की व्यवस्था करने की तैयारी की है. गांवों में भी शहर की भांति साफ रखने और उसके परिवहन की व्यवस्था की गयी है. अभी तक राज्य भर में गांवों से कचरा उठाव और परिवहन के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर 5584 इ-रिक्शा और 76345 पैडल रिक्शा का उपयोग किया जा रहा है. ठोस कचरा का समुचित निष्पादन के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाई का निर्माण किया जा रहा है. राज्य में अभी तक 4018 ग्राम पंचायतों में वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट का निर्माण किया जा चुका है. गांवों में प्लास्टिक से खेतों को नुकसान हो रहा है. इसे ध्यान में रखते हुए प्लास्टिक का भी प्रबंधन की व्यवस्था की जा रही है. विभाग द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट के निपटारे के लिए प्रखंड व अनुमंडल स्तर पर अब तक 133 प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन निर्माण केंद्र का निर्माण किया जा चुका है. सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास सराहनीय है. इससे सतत विकास के लक्ष्य को समय रहते प्राप्त करने में भी आसानी होगी. लेकिन केवल प्रशासनिक स्तर पर उठाये जाने वाले क़दमों से स्वच्छता लाना मुमकिन नहीं है. इसे सफल बनाने के लिए सामाजिक स्तर पर जागरूकता फैलाने की भी आवश्यकता है. नए साल में हम जीवन के कई नए संकल्प लेते हैं. इस नए साल गांव को कचरा मुक्त बनाने का संकल्प लें.
पल्लवी भारती
मुजफ्फरपुर, बिहार
(चरखा फीचर्स)
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