- जो दूसरों के लिए जीता है, वह हमेशा पूजनीय होता : संत गोविन्द जाने
मंगलवार को कथा के आरंभ होने से पूर्व पल्टन एरिया स्थित भगवान गणेश मंदिर से गोदन सरकार सेवा समिति हनुमान मंदिर सीहोर के तत्वाधान में कलश यात्रा निकाली गई थी जो कथा स्थल पर पहुंची। उन्होंने कहा कि मनुष्य के दिनचर्या का पालन यम नियम है। कार्य निष्पादन की कला एवं तौर तरीका ही आसन है। मनुष्य के शरीर में दस प्राण होते हैं। उन प्राणों को सही दिशा देना प्रणाम कहा जाता है। भटकते मन को बस में कर लेना प्रत्येहार मन बस में होने लगे तो परमात्मा को धारण कर लेना धारणा धारणा की स्थिति मजबूत हो जाय तो भगवान के एक-एक अंगों का ध्यान करना ध्यान कहलाता है। अपने इंद्रियों को बस में करने के बाद जब भगवान के एक-एक अंगों का ध्यान होने लगे तो उसमें तल्लीन हो जाना समाधि कहा जाता है। उन्होंने कहा कि लोग छोटी-छोटी बातों को भी बड़ा कर लेते हैं। हम जो यहां पर व्यवहार करेंगे, उसका प्रभाव हमारी पीढ़ियों पर पड़ता है। इसलिए हमेशा द्वेष भाव छोड़कर दुश्मनों को भी मित्र बनाने की क्षमता होनी चाहिए। वैष्णव जन वह होता है जो खाने से पहले विचार करता है। विचार करता है कि गो माता को भोजन के लिए क्या खिलाया जाए। विचार करता है कि मेरी थाली में अच्छा भोजन है, परंतु कई घरों में गरीब के बच्चे रूखी-सूखी या आधी खाकर ही दिन निकाल रहे हैं। जब हमारे मन में करुणा भाव से किसी दूसरे व्यक्तित्व को खाने के बारे में सोचते हैं, तो हमारे अंदर से विष्णु जागृत होता है हमारी कथा सुनने का मार्ग सिद्ध हो जाता है और जीवन सार्थक होता है।
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