सीरिया में तख्तापलट के बाद राष्ट्रपति बशर अल-असद को भागना पड़ा। सीरिया में पिछले 11 दिनों से विद्रोही गुटों और सेना के बीच कब्जे के लिए चली निर्णायक लड़ाई में के बाद सीरियाई सरकार के 50 साल के शासन का आश्चर्यजनक और दुख अंत ठीक बांग्लादेश की तर्ज पर हुआ। दोनों ही मुस्लिम देश है और दोनों देशों में तख्तापलट के बाद देश पर एक तरह से कब्जा चरमपंथी गुट के हाथों हो गया। जैस दृश्य श्रीलंका में तख्तापलट के बाद देखा गया था, ठीक वैसा ही नजारा बांग्लादेश और अब सीरिया में दिखा। तख्तापलट करने वालों ने श्रीलंका और बांग्लादेश की तरह जहां राष्ट्रपति भवन में कब्जा कर लूटपाट किए गये । जिस तरह से बांग्लादेश में हसीना सरकार के तख्तापलट के दौरान बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति पर चढ़कर प्रदर्शनकारियों ने रौंदा और बुलडोजर से तोड़ दिया। ठीक सीरिया में भी ऐसा ही हुुआ। सीरिया में विद्रोही लड़ाकों का समर्थन कर रहे प्रदर्शनकारियों ने वहां की राजधानी और उसके आसपास बशर अल असद के पिता और पूर्व राष्ट्रपति हाफिज अल असद की मूर्तियों को गिरा दिया। मूर्ति को नष्ट करने के दौरान जश्न में गोलियां चलाई गईं और धार्मिक नारे लगाए गए। विद्रोही लड़ाकों ने बशर अल असद के पिता और पूर्व राष्ट्रपति हाफिज अल असद की मूर्ति से अलग होकर गिरे उनके सिर को लातें मारी सिर को लातों से कुचला भी। देखा जाए तो श्रीलंका, बांग्लादेश और अब सीरिया में जो देखें गए उनमे समानता रही है। वैसे देखा जाए तो बांग्लादेश में जिस शेख हसीना की सरकार को जिस विद्रोह की आग में जलाकर जबरन तख्तापलट किया गया। बांग्लादेश में शेख हसीना पर लगातार तानाशाही से लेकर मनमानी के आरोप भी लगते रहे हैं। बता दे कि, 1970 में सीरिया में तख्तापलट के जरिए सत्ता हथियाने वाले हाफिज अल-असद ने प्रधानमंत्री के तौर पर शुरुआत की और फिर 2000 में अपनी मृत्यु तक सीरिया के राष्ट्रपति बने रहे। तीन दशक के शासन ने सीरिया को स्थिरता का युग दिया और इसे मध्य पूर्व में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया। बाद में उनके बेटे बशर अल असद उनका उत्तराधिकारी बना और दो दशकों से ज़्यादा समय तक सीरिया पर शासन किया। इसके बाद एक बड़े विद्रोह ने उनके शासन को उखाड़ फेंका। अगर देखा जाए तो वर्ष 2010 में, ‘अरब विद्रोह’, जिसे ‘अरब स्प्रिंग’ कहा जाता है, से विरोध की चिंगारी सुलगी जो बाद में कई देशों में फैल गई और इसके परिणामस्वरूप कई देशों के शासनों में बदलाव आया। सीरिया भी इससे अछूता नहीं रहा। मिले आंकड़ों की बात करे तो सीरिया में 2011 से सुलगी विद्रोह की चिंगारी में अब तक पांच लाख से अधिक लोग मारे गए हैं। एक करोड़ 20 लाख लोगों को अपने घर से पलायन करने को मजबूर होना पड़ा। इनमें से लगभग 50 लाख लोग अब या तो शरणार्थी हैं या फिर वे विदेश में शरण चाह रहे हैं। बहरहाल चाहे जो भी हो सीरिया में उपजे हालात पर भारत सतर्क है। भारत और सीरिया के रिश्ते ऐतिहासिक रहे हैं। अमेरिका, रूस, तुर्की, जॉर्डन समेत कई और मुल्कों ने भी स्थिति को लेकर चिंता जताई है। वैसे यह समझा व माना जाता था कि बशर अल-असद ने रूस, ईरान और ईरानी समर्थित मिलिशिया की मदद से सीरिया के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण करके सीरिया में पूर्ण पैमाने पर युद्ध को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया था। लेकिन कट्टरपंथी विद्रोही लड़ाकों ने असद परिवार की सत्ता का दुखद अंत किया। सीरिया में असद सरकार के तख्ता पलट करने में कट्टरपंथी विद्रोही गुट का नाम एक नम्बर पर आता है उस हयात तहरीर अल-शाम का गठन (एचटीएस) अल-नसरा फ्रंट के नाम से हुआ था। गठन के अगले साल ही एचटीएस आतंकी संगठन अल-क़ायदा का हो गया। हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन और कई अन्य देश अब भी एचटीएस को अल-कायदा का ही सहयोगी मानते हैं और अक्सर उसे अल-नसरा फ्रंट ही कहते हैं। आखिर कर कई गुटों की कथित मदद से एचटीएस ने अपने खास लक्ष्य असद सरकार का तख़्तापलट तो कर दिया है लेकिन इससे जुड़ा लक्ष्य एक इस्लामी सरकार की स्थापना बाकी है और यह हो सकता है कि, कुछ दिनों में हो जाए तो हैरत की बात नहीं होगी।
जगदीश यादव
(लेखक वरीय पत्रकार हैं.)
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