“ राम नाम मणि दीप धरी डीह देहरी द्वार तुलसी भीतर बाहिरेहु जो चाहत उजियार ”
यदि अंतस और बाह्य भी को उजियार करना है तो राम नाम के मणि दीप को जिह्वा पर धारण करना चाहिए । दरवाजे की देहरी पर दिए को रखना चाहिए । भोजपुरी भाषा के लोक जीवन का यह एक सुंदर रूपक है। सिताब दियारा की भूमि बिहार और उत्तर प्रदेश के सिवान पर स्थित है, दोनों ओर इसके विस्तृत भोजपुरी क्षेत्र हैं। यहां से उठी बातें पश्चिमी बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के भोजपुरी क्षेत्रों में नई चेतना हिंदी पैदा करेंगी।हिंदी तो देश के राजकाज की भाषा है ही। वह भी उद्भासी होगी, समृद्ध होगी। कविवर केदारनाथ सिंह का गांव चकिया पास ही है । उन्होंने केदारनाथ सिंह को उद्धृत करते हुए कहा,
“ हिंदी मेरा देश है और भोजपुरी मेरा घर । घर से निकलता हूं तो देश में पहुंचता हूं ।…
प्रो सदानंद शाही ने कहा घर अंधियार रहते देश प्रकाशित नहीं हो सकता।
तिब्बती अध्ययन केंद्र सारनाथ से आए प्रो राम सुधार सिंह ने कहा की लोक साहित्य को समृद्ध करने में जनपदीय बोलियां का बहुत योगदान है । लोकगीत, लोकनाट्य, लोक कथाएं आदि सभी विधाओं को जनपदीय बोलियां ने आदिकाल से सजाया और संवारा है । जिस भाषा को दूसरी भाषा के शब्दों को ग्रहण करने की अधिक शक्ति होती है वह समृद्ध होती है । भोजपुरी सभी क्षेत्रों से आई अभिव्यक्तियों को स्वीकार कर आगे बढ़ रही है । यह अपने बल पर बिना किसी सरकारी सहायता के विश्व की सबसे तेजी से विकसित होने वाली भाषा है । सरकारी संरक्षण मिलते ही इसका स्वरूप खिल उठेगा । संविधान में इसे अवश्य स्थान दिया जाना चाहिए। समागम में शिरकत करने वाले स्थानीय सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ,विधायक सी एन गुप्ता , विधान पार्षद डॉ वीरेंद्र नारायण यादव और बलिया के पूर्व सांसद वीरेंद्र सिंह 'मस्त' ने कहा कि वे भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दिए जाने की बात हर प्लेटफार्म पर उठाते रहे हैं और पुनः उठाएंगे। डॉ वीरेंद्र नारायण यादव ने कहा की बिहार सरकार के दोनों सदनों द्वारा भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दिए जाने संबंधी प्रस्ताव को पारित कर केंद्र सरकार को पूर्व में प्रेषित किया गया है। इसे पुनः स्मरण के रूप में फिर से भिजवाने का वे शीघ्र ही प्रयास करेंगे। भोजपुरी समागम के मुख्य संयोजक प्रो पृथ्वीराज सिंह ने अपने बीज वक्तव्य में इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा की समागम भोजपुरी भाषा की उन्नति इसके संवैधानिक मान्यता के साथ-साथ भोजपुरी जनपद की सभी प्रासंगिक समस्याओं और विषयों पर विमर्श का पक्षधर है । केवल मात्र भोजपुरी की बात उठाने से अपने पड़ोस की अन्य भाषाओं और बोलियां से संवाद सीमित होने का खतरा हो सकता है । इसलिए पड़ोसी अन्य भाषाओं और बोलियां से भी आवाजाही और संवाद का भोजपुरी समागम पक्षधर है।
वर्ष 2024 के आयोजन की मुख्य विशेषताओं के बारे में उन्होंने बताया कि इस बार काठमांडू के फोटो जर्नलिस्ट नवीन बराल आए । उनकी टीम ने तिब्बत में सरयू के उद्गम नाम मयूरमुख से सिताब दियारा में गंगा से मिलन तक की यात्रा की थी। यह यात्रा 2018 में की गई थी जिसमें बीबीसी के संवाददाता रमेश भुसाल, नेपाल के नदी योद्धा मेघ अले और एक भू वैज्ञानिक थे। भारत में इस यात्रा को आगे बढ़ाया था बहराइच के प्रगतिशील किसान ध्रुव कुमार ने । नबीन बराल के साथ ध्रुव कुमार भी आए थे । नवीन बराल ने सरयू उद्गम मयूर मुख के चित्र के साथ संपूर्ण यात्रा का चित्र व विवरण पर्देपर प्रस्तुत किया । और उनके बाद बहराइच से आए ध्रुव कुमार ने सरयू के कटान और किसानों के विस्थापन और उनके वैकल्पिक रोजगार सृजन और जैविक खेती से संबंधित अपने कार्यों का वर्णन किया । ध्रुव कुमार जी पिछले 25 वर्षों से किसानों के विस्थापन और वैकल्पिक रोजगार पर कार्य करते रहे हैं । समागम के लिए नवीन बराल द्वारा दिए गए सरयू के उद्गम की तस्वीर को शीशे में फ्रेम कराकर आगंतुक अतिथियों को स्मृति चिन्ह के रूप में दिया गया । सरयू के उद्गम का इस प्रकार समागम के पटल से देश में पहली बार प्रकाशन किया गया । यह एक अनूठी उपलब्धि भोजपुरी समागम 2024 की है। इसके पूर्व सरयू का उद्गम एक अबूझ पहली की तरह लोक में था । इसके उद्गम का कोई भी चित्र सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध नहीं था ।दिनांक 8.12.24 को भी भोजनपूर्व सत्र में जैविक खेती, मृदा एवं जलवायु परिवर्तन विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर शिव शंकर राय जी ने अपने अध्ययनों को रखा । तकनीकी विश्वविद्यालय में यह उनकी विशेषज्ञता का विषय है। इसी सत्र में जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार गुप्ता ने भी अपने विचार रखा । इस सत्र का बीज वक्तव्य पत्रकार और गांधीवादी चिंतक श्री मोहन सिंह ने दिया ।
8 दिसंबर को ही साहित्यिक सत्र में देश भर के ख्यातिलब्ध भोजपुरी लेखक और विद्वान शामिल हुए । अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष बृजभूषण मिश्रा, महामंत्री प्रो जयकांत सिंह ' जय' आदि ने भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता और इसके शास्त्रीय भाषा के रूप में दावेदारी के भी पक्ष में अपने विचारों को रखा। इस सत्र का बीज वक्तव्य रखते हुए प्रो पृथ्वीराज सिंह ने कहा कि भारत सरकार ने इस वर्ष पांच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा की मान्यता दी है। वे हैं उड़िया ,मराठी, बंगला, पाली और प्राकृत। इस प्रकार देश कुल 11 भाषाएं शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त कर चुकी हैं । इन भाषाओं को जिन मानदंडों के आधार पर मान्यता दी गई है वे हैं
प्राचीनता - भाषा 1500 से 2000 वर्ष पुरानी होनी चाहिए ।
उसकी समृद्ध साहित्यिक विरासत हो, मौलिक साहित्य हो जिसमें अनुवाद से ली गई बातें ना हो
और उस साहित्य में समाज के लिए दिशा बोधक तत्व हों और उसका प्रभाव जनपद के जीवन पर हो ।
मुख्य संयोजक प्रो पृथ्वी राज सिंह ने हजारी प्रसाद द्विवेदी की पुस्तक “नाथ सिद्धों की रचनाएं, किताबघर, 2023 को संदर्भित करते हुए कहा कि भोजपुरी साहित्य की परंपरा सिद्ध और नाथ संतों से शुरू होती है और इसका काल 8वीं से 12वीं शताब्दी तक बताया जाता है। ये संत भोजपुरी जनपद में विचरण करते थे और लोक भाषा में अपने शिक्षाओं को प्रकाशित करते थे। उनके वचनों में गहन दार्शनिक आध्यात्मिक चिंतन है और तत्कालीन समाज के साथ-साथ आज का समाज भी उनसे काफी प्रभावित और लाभान्वित हुआ है। गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गोरखनाथ ,जालंधर नाथ ,कबीर दास आदि संतों की वाणियों का व्यापक प्रभाव आज भी हमारे समाज में देखने को मिलता है। मुख्य संयोजक प्रो पृथ्वीराज सिंह ने कहा कि इस दिशा में विश्वविद्यालयों में व्यापक शोधकर, तार्किक आधार तैयार आधार पर दस्तावेज तैयार कर केंद्र सरकार को भोजपुरी के शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता के लिए भेजा जाना चाहिए।
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