विशेष : अटल जी ने जीवन में ‘सत्ता’ का मोह नहीं रखा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 23 दिसंबर 2024

विशेष : अटल जी ने जीवन में ‘सत्ता’ का मोह नहीं रखा

पूर्व प्रधानमंत्री, भाजपा के दिग्गज नेता एवं भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की आज स्वर्ण जयंती है. उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी सोच, बेदाग छवि और राष्ट्र समर्पित जीवन से भारतीय राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी. वे एक ऐसे नेता रहे, जिन्होंने अपनी विचारधारा और सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। खास यह है कि अटल जी के जीवन में सत्ता का तनिक मात्र भी मोह नहीं रहा. उनके नेतृत्व में देश ने सुशासन को चरितार्थ होते देखा. अटल जी ने जहां एक तरफ कुशल संगठनकर्ता के रूप में पार्टी को सींचकर उसे अखिल भारतीय स्वरुप दिया, वहीं दूसरी ओर देश का नेतृत्व करते हुए पोखरण परमाणु परि.क्षण व कारगिल युद्ध जैसे फैसलों से भारत की एक मजबूत छवि दुनिया में बनाई. अटल जी की जन्म जयंती के अवसर पर उन्हें कोटि- कोटि वंदन... वह डा. बीआर अम्बेडकर के विचारों की भविष्योन्मुखी अंतर्दृष्टि से अत्यंत प्रभावित थे। वाजपेयी जी के प्रयास से ही वीपी सिंह सरकार ने भाजपा के समर्थन से डा. भीमराव अम्बेडकर को 31 मार्च, 1990 को भारत रत्न से सम्मानित किया। वाजपेयी जी की इच्छानुसार दिल्ली स्थित 26 अलीपुर रोड, जहां सिरोही, राजस्थान के महाराजा ने डा. अम्बेडकर को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा (1951) देने के पश्चात रहने के लिए आमंत्रित किया था, को संग्रहालय के तौर पर विकसित करने की योजना बनाई गई जिससे लोगों को सामाजिक समता के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। डा. अम्बेडकर ने इसी स्थान पर अपनी अंतिम सांस ली थी। वाजपेयी जी की देखरेख में 14 अक्तूबर, 2003 को निजी संपत्ति के विनिमय विलेख पर हस्ताक्षर किए गए और दिसम्बर, 2003 में विकास कार्य शुरू किया गया। बाद में यू.पी.ए. के कार्यकाल के दौरान इस परियोजना को रोक दिया गया। मोदी सरकार ने इसे 100 करोड़ रुपए की लागत पर डा. अम्बेडकर राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित किया और 13 अप्रैल, 2018 को राष्ट्र को सममर्पित किया


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जी हां, अटल बिहारी वाजपेयी भारत की राजनीति की आकाश गंगा में पांच दशकों तक दैदीप्यमान नक्षत्र की तरह रहे. वाजपेयी आज होते तो अपना 100वां जन्मदिन मना रहे होते. लेकिन वाजपेयी अब कथाओं, कहानियों, किवदंतियों और पॉलिटिकल कॉरिडोर में रचते-बसते और विचरते हैं. 16 अगस्त 2018 को दिल्ली में उनका निधन हो गया था. वाजपेयी की जिंदगी के किस्से ’आदर्श राजनीति, लोकप्रिय नेता, सह््रदय कवि’ पर चर्चा के दौरान जिक्र किए जाते हैं. इस वक्त जब देश में जनादेश एक पार्टी को मिला है और नरेंद्र मोदी इसके केंद्र हैं तो वाजपेयी का नाम इसलिए भी याद किया जाता है, जिन्होंने 1999 में बतौर प्रधानमंत्री वैसे गठबंधन का नेतृत्व किया जिसमें 24 पार्टियां थीं और 81 मंत्री थे. इन दलों की क्षेत्रीय अस्मिताएं थीं, भाषा से जुड़े मुद्दे थे। नदियों के जल बंटवारे को लेकर विवाद था, लेकिन वाजपेयी नाम के विशाल ’वटवृक्ष’ के नीचे सारी पार्टियां, सारी विचारधाराएं एक रहीं. वाजपेयी के व्यक्तित्व करिश्मे ने ’फेविकोल’ का काम किया और इस सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया. वे गठबंधन की सरकार को 5 साल तक चलाने वाले पहले पीएम रहे. वाजपेयी वो स्टेट्समैन थे जिनकी लोकप्रियता ने पार्टी, विचारधारा और देश की सीमाओं को पार कर लिया था. वाजपेयी का विरोध करते वक्त भी विपक्षी उनकी सच्चरित्रता, नैतिक पूंजी, स्वच्छ छवि का अतिक्रमण नहीं कर पाते थे.


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वाजपेयी जी राजनीति के साथ-साथ साहित्य में भी खूब रुचि रखते थे. उनकी कई कविताएं लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. वाजपेयी की कविताएं प्रेरणा का काम करती हैं. अटल जी अपनी कविताओं के जरिए संसद में जब चर्चा करते थे तब हास्य-विनोद का माहौल बन जाता था. कविताओं के जरिए वे कई बार बहुत ही गंभीर बात भी कह जाते थे. 1957 वो दौर था जब पंडित नेहरू न सिर्फ भारत के बल्कि एशिया के नायकों में शामिल थे. पंडित जी की छवि उस नेता के रूप में थी जो तीसरी दुनिया के देश रहे भारत के लिए करिश्माई नेतृत्व लेकर आया था. इस दौर में कांग्रेस को चुनौती देना आसान नहीं था। तीन सीटों से लड़ रहे वाजपेयी लखनऊ-मथुरा से हार गए. लेकिन बलरामपुर की जनता को ’दीपक’ की टिमटिमाहट में उम्मीद की लौ दिखी थी. इस चुनाव में वाजपेयी को 1 लाख 18 हजार 380 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के हैदर हुसैन को 1 लाख 8 हजार 568 वोट मिले. इस तरह वाजपेयी लगभग 8 हजार वोटों से चुनाव जीते. मतलब साफ है बलरामपुर के मतदाताओं ने भविष्य के भारत के प्रधानमंत्री का चुनाव किया था. इस जीत के साथ नवयुवक वाजपेयी ने संसद की ओर प्रस्थान किया. संसदीय राजनीति की उनकी ये यात्रा 1957 से 2009 तक जारी रही. मई 1996 में बीजेपी अस्तित्व में आने के 16 साल के बाद देश में सबसे ज्यादा सीट हासिल करने वाली पार्टी बनकर उभरी थी. 164 सीटों के साथ अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री तो बन गए लेकिन सिर्फ 13 दिनों के लिए. बीजेपी की हिन्दुत्व वाली पॉलिटिक्स के चलते वो बहुमत परीक्षण के दौरान जरुरी सहयोगी नहीं जुटा पाई।


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अटल बिहारी वाजपेयी राजनेता बनने से पहले पत्रकार थे. वह देश-समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा से पत्रकारिता में आए थे. अटल बिहारी राजनीति में कैसे आए इसके पीछे एक प्रेरणादायक कहानी है. देश के महानतम प्रधानमंत्रियों में से एक और महान राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी एक अच्छे पत्रकार भी थे. असल में, अपने करियर के शुरुआती दौर में वे और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी दोनों पत्रकार थे. अटल बिहारी राजनीति में कैसे आए इसके पीछे एक प्रेरणादायक कहानी है. एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए जीवन का शुरुआती सफर आसान नहीं था. 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा  ग्वालियर के ही विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी. उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया. उन्होंने राष्ट्रधर्म, पॉन्चजन्य और वीर अर्जुन जैसे अखबारों-पत्रिकाओं का संपादन किया. वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे और इस संगठन की विचारधारा (राष्ट्रवाद या दक्षिणपंथ) के असर से ही उनमें देश के प्रति कुछ करने, सामाजिक कार्य करने की भावना मजबूत हुई. इसके लि उन्हें पत्रकारिता एक बेहतर रास्ता समझ में आया और वे पत्रकार बन गए. उनके पत्रकार से राजनेता बनने का जो जीवन में मोड़ आया, वह एक महत्वपूर्ण घटना से जुड़ा है. इसके बारे में खुद अटल बिहारी ने वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह को एक इंटरव्यू में बताया था. इसके बाद वाजपेयी राजनीति में आ गए. वह साल 1957 में वह पहली बार सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे. उनके कार्यकाल में सुशासन एक ऐसी धरोहर बनी, जिसे भारत की प्राचीन संस्कृति और लोकाचार से आत्मसात किया गया है। बौद्ध धर्म के गण संघ, भगवान बासवेश्वकर द्वारा 11वीं शताब्दी ईस्वी में स्थापित अनुभव मंडप, चाणक्य के अर्थशास्त्र, सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान नगर योजना, मौर्य सम्राट अशोक की धरोहर के और अन्य माध्यमों से पुनः संचित प्रजातांत्रिक मूल्य बेहतर सुशासन हेतु विरासत में मिले ज्ञान भंडार हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती को मनाने हेतु सुशासन दिवस के अवसर पर, यह अत्यावश्यक है कि हम स्वतंत्र भारत में सर्वोत्तम सुशासन उपायों को संस्थागत बनाने में उनकी असाधारण भूमिका पर प्रकाश डालें और उसे आज के संदर्भ में ग्रहण करें।


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उनकी सादगी का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि बलरामपुर में वाजपेयी का मुकाबला कांग्रेस के हैदर हुसैन से था. जनसंघ का चुनाव चिह्न दीपक था. पार्टी ने बड़ी उम्मीदों से जनसंघ को बलरामपुर में दीपक जलाने की जिम्मेदारी दी थी. वाजपेयी ने अपना मैराथन प्रचार अभियान शुरू किया. ये मतदान 24 फरवरी से 9 जून के बीच हुआ. यूपी में कई जगह बारिश हो रही थी. वाजपेयी का प्रचार वाहन जीप अक्सर गांवों, शहरों और मोहल्लों की कच्ची सड़कों पर खराब हो जाता था. वाजपेयी जी ने 16 साल पहले 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले एक इंटरव्यू में इन जीपों की कहानी बताई थी. तब वाजपेयी ने कहा था कि ये चुनाव अच्छी तरह से याद है. उन्होंने कहा था “हमारे पास दो जीपें थीं...एक पार्टी ने दी थी...एक किराए पर ली थी... और कोई साधन नहीं था, कार्यकर्ता जरूर थे.“अतीत की यादों में खोये, चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए वाजपेयी ने उस इंटरव्यू में उन दिनों को याद करते हुए कहा था, “जिस दिन मतदान हो रहा था, उस दिन मेरी जीप जंगल में कहीं खराब हो गई, तो मतदान की समाप्ति तक मैं पहुंच नहीं सका, लेकिन मैं चुनाव जीत गया.“ वाजपेयी ज्यादातर पैदल चलते और लोगों से मिलते. जनसंघ कार्यकर्ता साइकिलों पर 50-50 का समूह बनाकर निकलते. अटल जी ने जी-तोड़ मेहनत की. जनसंपर्क अभियान चलाया. लोगों से घर-घर जाकर वोट मांगे. जनसंघ ने वाजपेयी जी को जो जीप दी थी वो हर किमी -दो किमी चलकर बंद हो जाया करती थी. फिर उसे धक्का लगाया जाता था, तब जाकर जीप चलती थी. एक बार वाजपेयी जी की बलरामपुर सदर विधानसभा क्षेत्र के सिंघाही गांव में चुनावी सभा थी. वाजपेयी अपनी लकी जीप पर खेतों के रास्ते यहां के लिए निकले. लेकिन जीप धोखा दे गई. कार्यकर्ता जीप को धक्का लगाने लगे. वाजपेयी जी झेंप गए और नीचे तरकर खुद भी जीप को धक्का लगाया. बड़ी मशक्कत के बाद जीप स्टार्ट हुई.


स्वतंत्रता के बाद, सुशासन का मुद्दा शासन संबंधी सुधारों का केन्द्र बिन्दु रहा, परन्तु ऐसा केवल बातचीत के स्तर पर ही होता रहा। संविधान सभा के वाद-विवाद में या योजना आयोग जैसी संस्थाओं में, विधिवत रूप से तैयार की गई नीति परिचर्चा केवल कागजों में ही सिमटी रही और इन्हें कार्यान्वित करने हेतु कारगर उपाय नहीं किए जा सके। अटल बिहारी वाजपेयी के दूरदर्शी नेतृत्व और राजनीतिक कौशल के साथ, हमारा देश ऐतिहासिक सुशासन प्रयासों का साक्षी बना जिनसे जनता के जीवन में समृद्धि आई। लोकसभा सदस्य के रूप में दस कार्यकाल और राज्यसभा सदस्य के रूप में दो कार्यकाल पूरे करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने सांसद के रूप में अपनी कार्यावधि के दौरान सुशासन की बारीकियों पर प्रकाश डाला। नेता, प्रतिपक्ष के रूप में उनकी तर्कसंगत दलीलों और रचनात्मक समालोचनाओं में कल्याण-केन्द्रित सुशासन तंत्र के लिए प्रेरित करने का बल था। प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, उनकी जनोन्मुखी पहलें नए भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित हुईं। उनके द्वारा किसानों के जीवन में सुधार लाने के लिए प्रारंभ किए गए किसान क्रैडिट कार्ड, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के द्वारा अवसरंचनात्म्क संवर्धन, नदियों को आपस में जोडऩे तथा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के कार्यक्रम की अवधारणा तैयार करना, सर्व शिक्षा अभियान के माध्य्म से शैक्षिक सुधार, पृथक जनजातीय कार्य मंत्रालय का गठन आदि ऐसे कुछ उपाय हैं जिन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग को प्रभावित किया। अर्द्ध-न्यायिक केन्द्रीय विद्युत विनियामक आयोग की स्थापना की गई और विद्युत क्षेत्र में वर्षों पुराने विद्युत अधिनियम में संशोधन किया गया ताकि विनियामक रूपरेखा में सुधार किया जा सके।


मई, 1998 में, पोखरण, राजस्थान में उनकी राष्ट्रीय शासन कार्यसूची के भाग के रूप में किए गए परमाणु परीक्षणों के कारण भारत का नाम परमाणु शक्ति संपन्न देशों में शामिल हो गया। कश्मीर की जटिल समस्या का समाधान करने के लिए वाजपेयी जी के मानवता, शांति और कश्मीरी लोगों के आत्मसम्मान को कायम रखने हेतु प्रसिद्ध सिद्धांत ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत‘ में उनकी लोकप्रिय बौद्धिकता प्रतिबिंबित होती है। अटल जी, आपसी सामंजस्य में विश्वास रखने वाले यथार्थवादी राजनेता थे और यह तथ्य इस बात से प्रकट होता है कि वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में से शांतिपूर्ण रूप से क्रमशः छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड नामक तीन नए राज्यों की स्थापना की गई। यह सरकार को जनता के निकट ले जाकर सुशासन स्थापित करने का एक सुविचारित प्रयास था। वह डा. बी.आर. अम्बेडकर के विचारों की भविष्योन्मुखी अंतर्दृष्टि से अत्यंत प्रभावित थे। अटल बिहारी वाजपेयी जी और लाल कृष्ण अडवानी जी के प्रयास से ही वी.पी. सिंह सरकार ने भाजपा के समर्थन से डा. भीमराव अम्बेडकर को 31 मार्च, 1990 को भारत रत्न से सम्मानित किया। अटल बिहारी वाजपेयी जी की इच्छानुसार दिल्ली स्थित 26 अलीपुर रोड, जहां सिरोही, राजस्थान के महाराजा ने डा. अम्बेडकर को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा (1951) देने के पश्चात रहने के लिए आमंत्रित किया था, को संग्रहालय के तौर पर विकसित करने की योजना बनाई गई जिससे लोगों को सामाजिक समता के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। डा. अम्बेडकर ने इसी स्थान पर अपनी अंतिम सांस ली थी। शहरी विकास मंत्रालय द्वारा वाजपेयी जी की देखरेख में 14 अक्तूबर, 2003 को निजी संपत्ति के विनिमय विलेख पर हस्ताक्षर किए गए और दिसम्बर, 2003 में विकास कार्य शुरू किया गया। बाद में यू.पी.ए. के कार्यकाल के दौरान इस परियोजना को रोक दिया गया। मोदी सरकार ने इसे 100 करोड़ रुपए की लागत पर डा. अम्बेडकर राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित किया और 13 अप्रैल, 2018 को राष्ट्र को सममर्पित किया।


अटल बिहारी वाजपेयी ने 21वीं शताब्दी के प्रारंभ होते ही कई पहलों के साथ सुशासन अभियान को शुरू कर दिया था। अब इस अभियान को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और नए भारत (न्यू इंडिया) को 21वीं शताब्दी का वैश्विक नेता बनाने के लिए इसे तेज गति के साथ आगे बढ़ाया है। डीबीटी, जेएएम ट्रिनिटी, फेसलैस टैक्सेशन जैसी प्रौद्योगिक युक्तियों और इन्हीं के समान अन्य कार्य योजनाओं को कार्यान्वित करने से विवेकाधीन संसाधनों के कम उपयोग की संभावना बनी है, जिसके फलस्वरूप ऐसी संस्थाओं में लोगों का विश्वास बढ़ा है। जहां किसान क्रैडिट कार्डों का दायरा बढ़ा है वहीं कृषि से संबंधित कार्यकलापों का निगमीकरण हुआ है। भारतमाला, सागरमाला, राष्ट्रीय परिसंपत्ति, नैशनल एसैट मोनेटाइनेशन पाइपलाइन, कृषि अवसंरचना निधि और पी.एम.जी.एस.वाई. चरण के विस्तारण के कारण निर्माण क्षेत्र को अत्यधिक बढ़ावा मिला है। शिक्षा सुधारों पर अटल जी ने निर्णायक पहल की थी, जिन्हें पीएम मोदी आगे बढ़ा रहे हैं। उनका कथन ‘सत्य का संघर्ष सत्ता से-न्याय लड़ता निरंकुशता से’ उनके समग्र जीवनकाल में उत्कृष्ट लोकतंत्र का आदर्श वाक्य रहा है। उन्होंने संपूर्ण विश्व के समक्ष सुशासन के महत्व का प्रदर्शन किया था। ऐसे सुशासन का जो लोगों के कल्याण के लिए सभी बाधाओं के खिलाफ लड़ने के लिए सच्चाई, शक्ति और साहस के मूल सिद्धांतों पर आधारित है। अटल जी का दृढ़ विश्वास था कि राष्ट्र को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले अपने नागरिकों को सशक्त बनाना जरूरी है और इस संबंध में उन्होंने भारत में शिक्षा परिदृश्य को विकसित करने के अपने प्रयासों को मूर्त रूप दिया। अटल जी अब भी सबकी यादों में हैं। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में हुए कार्यों को लेकर वे जीवंत हैं।


 




Suresh-gandhi


सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

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