विश्व गुरु बनने की राह पर निकले भारत के सामने नए साल 2025 में कई चुनौतियां खड़ी है। लेकिन उम्मीद का नया सवेरा भी है। इन सब के बीच देश विकास की डगर पर निरंतर बढ़ता जा रहा है। हमारे आत्मविश्वास से भरे कदमों पर दुनिया का भरोसा भी बढ़ा है। आगे का सफर कठिन है, पर आगे बढ़ाने के लिए अगले 12 महीना में कई मील के पत्थरों को पार करना होगा। अंतरिक्ष से लेकर तकनीकी तक के क्षेत्र में सफलताएं उज्जवल भविष्य की उम्मीदों पर खरा उतरना होगा। मतलब साफ है सुबह जब आपके हाथों में अखबार होगा तो नए वर्ष का आगाज हो चुका होगा। उत्साह और उमंग के माहौल के बीच चुनौतियों को बयां नहीं किया जा सकता। चिकित्सा इकाई के आईसीयू में मरीज की भर्ती को लेकर जारी केंद्र सरकार की गाइडलाइन भी यही संदेश दे रही है। भारत में मरीजों की संख्या के हिसाब से अस्पताल ही नहीं है। इस हालत में आईसीयू बेड की कमी पर आश्चर्य नहीं है। ऐसे में लोगों को भी नए सवेरे के साथ नई उम्मीद जगी है। उम्मीद है नई सौगातो की और परेशानियों को दूर करने की, जो वर्षों से लोगों को साल रही है। पहले भी समस्याओं को दूर करने के लाख जतन किए गए, लेकिन वह भी वास्तविकता से परे रहा। अब हर कोई यही चाह रहा है कि हर सख्श का जीवन सुगम, सरल, सहज हो। इसके लिए कदम-कदम पर बदलाव हो। अधूरे प्रोजेक्टों को रफ्तार मिले। शिक्षा, चिकित्सा के क्षेत्र में नवाचार के साथ मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो। फील गुड के साथ शहरी होने की झलक भी दिखे। उम्मींद ही नहीं विश्वास है नए साल में देश में विकास की गति रफृतार पकड़ेगा
मतलब साफ है हर साल की तरह 2024 भी उचार-चढ़ाव से भरा रहा। साल 2024 खत्म होने के साथ सुबह जब अखबार हाथ में होगा तो नया साल 2025 दस्तक दे चुका होगा। नए साल में भले ही काफी कुछ नया होने वाला हो, लेकिन साल 2024 कई महत्वपूर्ण घटनाओं का इतिहास बना है. इस साल कई बड़ी घटनाएं हुई हैं, जो इतिहास में याद रखी जाएंगी. चाहे बात अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा की हो या फिर जम्मू-कश्मीर .में हुए विधानसभा चुनाव की या इसरो ने अंतरिक्ष में एक और छलांग लगाई हो. राजनीति में उठापटक के बीच नरेन्द्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो, अमेठी में राहुल गांधी की वापसी, आबकारी नीति घोटाले के कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल जाना पड़ा और उनके इस्तीफे के बाद आतिशी ने मुख्यमंत्री पद संभाला। प्रियंका गांधी का चुनावी डेब्यू भी कमाल का रहा. प्रियंका गांधी वाड्रा अपने भाई राहुल गांधी के छोड़े हुए सीट वायनाड से उपचुनाव में जीत हासिल कर पहली बार संसद पहुंचीं. दूसरी तरफ हरियाणा विधानसभा चुनाव में सबसे चौंकाने वाले परिणाम रहा. इतना ही नहीं झारखंड विधानसभा चुनाव में भी हेमंत सोरेन जेल जाने के वाबजूद जीते.
दूसरी तरफ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति ने शानदार जीत दर्ज. वहीं ओडिशा में भी बड़ा फेरबदल हो गया. विधानसभा चुनाव में राजनीति के महानायक कहे जाने वाले नवीन पटनायक की पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. दशकों से सत्ता में रहे नवीन पटनायक को सरकार से हाथ धोना पड़ा. एक दशक बाद और अनुच्छेद 370 का दर्जा हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में पहला चुनाव हुआ. इस विधानसभा चुनाव में जम्मू कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर चुनाव लड़ा और जीते. उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बनें. बीत रहा यह साल संविधान वर्ष के रूप में याद किया जाएगा. इसलिए नहीं कि इस वर्ष संविधान निर्माण की 75 वीं वर्षगांठ मनायी गयी. इसलिए भी नहीं कि संसद में इस अवसर पर दो दिन की विशेष चर्चा हुई. इन सरकारी रस्मों और संसद की बहसों से समाज के मानस पर कोई असर नहीं पड़ता. अगर यह साल संविधान वर्ष बना, तो इसलिए कि पहली बाहर संविधान राजनीति का मुद्दा बना. संविधान पर राजनीति होना भारत गणराज्य के लिए एक शुभ घटना है. उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले वर्ष में यह बहस थमेगी नहीं, संविधान को लेकर हो रही राजनीति और गहरी होगी. यह बात थोड़ी अटपटी लग सकती है. लोकतांत्रिक राजनीति के क्षय की वजह से हमारी भाषा में उलटबांसी बस गयी है और हम अक्सर कह देते हैं कि किसी अच्छे या पवित्र मुद्दे को राजनीति में न घसीटा जाए. सच यह है कि लोकतंत्र में जिस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं होगा, उसे कोई तवज्जो ही नहीं मिलेगी. जब तक महिला की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर राजनीतिक जद्दोजहद नहीं होगी, तब तक इन सवालों पर कोई सरकार गंभीरता से काम नहीं करेगी.
इन सबके बीच दुखद पहलु यह रहा कि इस साल देश के कई दिग्गज व्यक्तियों ने हमें अलविदा कह दिया. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया. वहीं मशहूर हस्तियों में उद्योगपति रतन टाटा, शशि रुइया, राजनीतिज्ञ सुशील कुमार मोदी तक शामिल हैं जो दुनिया को अलविदा कह चुके है. इसके अलावा साल 2024 में आए प्राकृतिक आपदा ने भी भारी नुकसान पहुंचाया. इस साल कई स्थानों को कुदरत के कहर का सामना करना पड़ा. जनवरी में आए टोक्यो में 7.8 तीव्रता का भूकंप ने पूरे शहर को हिला कर रख दिया. इस घटना में कई लोग बेघर हो गए. हजारों की जान चली गई. जून 2024 तक कई देशों में मंकीपॉक्स के लाखों मामले दर्ज किए गए. मंकीपॉक्स के कारण लगभग 208 लोगों की मौत हो गई. वहीं जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र स्तर में वृद्धि और प्राकृतिक आपदाओं ने अपना कहर बरपाया. साल 2024 में कई देशों में युद्ध और संघर्ष जारी रहे. यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष भी जारी है, जिसमें हजारों लोग मारे गए. सीरिया और यमन हो या इजरायल और हमास, इनके बीच भी युद्ध जारी है. बात करें फिल्मों की तो लोगों ने बॉलीवुड की हॉरर फिल्मों को काफी पसंद किया. वहीं दर्शकों के बीच साउथ सिनेमा का काफी क्रेज बढ़ा है. साउथ कुछ ऐसी फिल्में भी आई जो बॉलीवुड पर भारी पड़ रही हैं. तो दुसरी तरफ मनु भाकर ने पेरिस 2024 ओलंपिक में महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा यानी शूटिंग में कांस्य पदक जीती।ै जबकि भारतीय ग्रैंडमास्टर डी गुकेश ने हाल ही में ऐसा करनामा कर डाला, जो आजतक कोई नहीं कर पाया. पेरिस ओलंपिक 2024 में जेवलिन थ्रो में सिल्वर मेडल जीतकर एथलिट नीरज चोपड़ा ने देश का नाम रोशन किया.
आज से 25 वर्ष पहले संविधान निर्माण की रजत जयंती के वक्त अधिकांश नागरिकों को 26 नवंबर का ठीक से पता भी नहीं था. इस उदासीनता का फायदा उठाकर सरकार ने संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन कर दिया था. हालांकि उस आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वेंकटचलैया के कारण इस आयोग द्वारा संविधान के मूल ढांचे से छेड़खानी करने की कोई कोशिश नहीं हुई, लेकिन एक दरवाजा खुल गया था. इस लिहाज से 2024 में संविधान का राजनीति के अखाड़े में उछलना एक ऐसी घटना है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए. निःसंदेह इस वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण घटना लोकसभा के चुनाव थे. यह कहना तो अतिशयोक्ति होगी कि मतदाताओं की नजर में इस चुनाव का सबसे प्रमुख मुद्दा संविधान था. लेकिन इसमें शक नहीं कि संविधान के सवाल ने चुनाव से पहले की रणनीति, चुनाव के दौरान हुए प्रचार और चुनाव के बाद हुए विश्लेषण और बहसों को एक सूत्र में बांधने का काम किया. आज भाजपा इस बात पर जितनी भी मिट्टी डाले, सच यह है कि इस चुनाव में उसका इरादा ‘चार सौ पार’ या उसके इर्द-गिर्द पहुंचकर संविधान में कुछ ऐसे संशोधन करना था, जो महज संशोधन नहीं होते, बल्कि आपातकाल में हुए संविधान के 42वें संशोधन की तर्ज पर संविधान के पुनर्लेखन जैसे होते. ऐसे किसी संशोधन के माध्यम से भाजपा भारतीय राजनीति में अपने वर्चस्व को एक स्थायी रूप देना चाहती थी. इसमें भी शक नहीं कि संविधान बचाने के नारे ने इंडिया गठबंधन के बिखरे हुए प्रचार को एक धार दी. इस वर्ष हुए चुनाव में संविधान के सवाल ने मतदाताओं के उस बड़े हिस्से विपक्ष के साथ खड़े होने का कारण दिया, जो अपनी जिंदगी से जुड़े अनेक मुद्दों को लेकर परेशान था. हो सकता है कि अपने वोट को संविधान से जोड़ने वाले मतदाताओं की संख्या बहुत कम रही हो, लेकिन भाजपा को लगे अप्रत्याशित धक्के के विश्लेषण में यही कारक सबसे ऊपर उभर कर आया. अगर 2004 का चुनाव ‘इंडिया शाइनिंग’ के खारिज होने के लिए याद किया जाएगा, तो 2024 को संविधान बदलने के प्रस्ताव को खारिज किए जाने के रूप में याद रखा जाएगा.
न विचारों को अपने दिमाग से अलविदा कर दें जो अंदर से आपकों सशक्त और मजबूत बनने से रोकते है। आपकी सफलता में आपकी मानसिक इच्छाशक्ति का बेहद महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए यह बेहद जरुरी है कि आप उन विचारों को तरजीह दें जो आपकों अंदर से मजबूत बनाते हैं, न कि उन विचारों को जो आपकों कमजोर व निरीह इंसान के रुप में पेश करते हों। दुसरी जरुरी बात अक्सर हम किसी अनहोनी को लेकर बेवजह डरते रहते है। आप अपने अंदर के उस डर को खत्म करें। जिंदगी में जो होना होगा, वो होकर रहेगा। अनहोनी के डर से बैठने के बजाय आप एक छोटा सा कदम अपनी मंजिल की ओर उठाएं। जिंदगी में हर समय हर बात को लेकर पछताने की प्रवृत्ति को दूर कर दें। आपकों उस समय जो उचित लगा आपने किया। अब इस बात को लेकर बाद में पछताने से आप अपना मूड और वक्त दोनों ही खराब करेंगे। इसके साथ ही आपके जीवन में कुछ भी हुआ हो, उसे लेकर दुसरों पर दोषारोपझा करना बंद कर दें। जीवन में जो परिस्थितियां आती है, उन्हें स्वीकार करें, न कि उन परिस्थितियों के लिए और लोगों को दोषी देनें बैठ जाएं। लोगों को हमेसा अपने पास रखने और उन्हें बदलने की अपनी आदत को गुडबॉय कर दें। दुसरों की जिंदगी बदलने से अच्छा है कि आप अपनी जिंदगी के बारे में ज्यादा ध्यान दें। अपने अंदर और ज्यादा वाली प्रवृत्ति को खत्म करें। उपर वाले से जितना मिला है उसमें खुश और संतुष्ट रहने की कोशिश करें।
जीएं तो ऐसे जैसे वह आखिरी पल हो और सीखें तो ऐसे जैसे बरसों जीना हो, राष्टपिता महात्मा गांधी के ये विचार सिखाते है कि हर एक पल को उसकी सार्थकता में जीना चाहिए, क्योंकि समय किसी का इंतजार नहीं करता। जो लोग इसकी कीमत पहचानते है समय उनकी कद्र करता है। जो नहीं पहचान पाते समय उनके हाथ से रेत की तरह फिसल जाता है और पीछे छोड़ जाता है पछतावा। ठीक उसी तरह जैसे नदी बहती है तो वह लौटकर नहीं आती, दिन-रात बीत जाते है, जुबान से निकली शब्द और कमान से निकले तीर वापस नहीं लौटते, उसी तरह गया वक्त भी कभी नहीं लौटता। अच्छा होता है तो यादों में बसा रहता है, बुरा हो तो दर्द बनकर सीने में सुलगता है। कहते है अतीत कभी लौटता नहीं और भविष्य को किसी ने देखा नहीं, मगर वर्तमान हमारे हाथ में है, जिसे हम जैसा चाहें बना सकते है। अक्सर लोग चिंता में डूबे रहते है कि कल क्या होगा? सच तो यह है कि चिंता से किसी समस्या का हल नहीं होता। वक्त का सही इस्तेमाल करने से ही कुछ हासिल होता है। कल क्या हुआ और कल क्या होगा इसके बजाए यह सोचे कि आज क्या कर रहे है। आत्ममुग्ध होना गलत है मगर खुद को दुसरों के पैमाने से नापना भी गलत है। इसलिए दुसरों की चिंता किए बगैर आप क्या सोचते है और आपकी धारणा क्या है इस पर विचार करें तो बेहतर होगा। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अपने अंतर्मन की आवाज पर चलने का साहस दिखाएं। वहीं से सच्ची सलाह मिल सकती है बाकि तो बात की बाते हैं। इसके लिए प्रकृति सबसे सटीक उदाहरण है। हर दिन नीत समय पर सुबह होती है। दरवाजों-खिड़कियों से आती धूप की लकीर बताती है कि दिन का शुभारंभ हो चुका है। पंछी चहचहाते हुए घोसले से बाहर भोजना का प्रबंध करने निकल पड़ते है। पूरी कायनात अपने इशारों से इंसान को समय का मूल्य समझाती है। यदि समय का तालमेल थोड़ा भी गड़बड़ हो जाएं तो पृथ्वी पर हलचल मच जाती है और लोग अनहोनी की आशंका से डर जाते है। प्रकृति का यह अनुशासन इंसान सीख जाएं तो उसका जीवन सार्थक हो जाय। यानी वक्त का सम्मान तभी हो सकता है जब जीवन में अनुशासन हों।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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