देखा जाए तो बांग्लादेश के मामले पर मोदी सरकार से हिंदू समाज जिस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद कर रहा था वह नहीं दिखा। यह अलग बात है कि पीएम भले ही सामने नहीं आए हों लेकिन केन्द्र ने बंग्लादेश को संकेत में बता दिया है कि मामले पर भारत की आंखें बंद नहीं है। जबकि आरएसएस ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को लेकर चिंता जाहिर की है। साथ केंद्र सरकार से सख्त कदम उठाने की अपील की है। कांग्रेस ने भी मुद्दे पर अपना पक्ष सामने रख दिया है। लेकिन देखा जाए तो बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को लेकर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी राजनीति से लेकर कूटनीति के मामलों में एक कदम आगे निकल गईं है। ममता बनर्जी जब सांसद थी तब भी बंगाल में वाममोर्चा के शासन के दौरान बंगाल में अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा उठा चुकी है। लेकिन ममता बनर्जी की सरकार बनने के बाद भी बंगाल में अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा उठता रहा है। वैसे देखा जाए तो भाजपा के केन्द्रीय नेताओं के मुकाबले में बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर लगातार अत्याचार के मामले पर बंगाल भाजपा के नेता भी लगभग मौन ही है। लेकिन बंगाल में नेता प्रतिपक्ष व भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी जोरदार तौर पर उक्त मामले पर विरोध व्यक्त कर रहें हैं और बांग्लादेश को चेता भी रहे है। हलांकि अब जाकर बांग्लादेश ने यह माना कि शेख हसीना सरकार के अपदस्थ होने के बाद देश में अल्पसंख्यकों विशेषकर हिंदुओं पर हिंसा की 88 घटनाएं हुई हैं। अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि, इन घटनाओं में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पांच अगस्त से 22 अक्टूबर के दौरान अल्पसंख्यकों से संबंधित घटनाओं को लेकर कुल 88 मामले दर्ज किए गए। उन्होंने कहा कि मामलें और गिरफ्तारियां और बढ़ सकती है, क्योंकि कई क्षेत्रों में हिंसा की नई घटनाएं सामने आई हैं। देखा जाए तो दरअसल, बांग्लादेश में हो रहे अल्पसंख्य हिन्दू उत्पीड़न कोई नई बात नहीं हैं। वहां कोई भी सरकार हो निशाने पर हिन्दू महेशा रहे है। बात बांग्लादेश में तत्कालीन घटना की करें तो इस्कॉन के सन्यासी चिन्मय कृष्ण दास के गिरफ्तारी से शुरु हुई। पहले इन्हें राष्ट्रद्रोह के आरोप मे फिर इनके सहयोगियों को हिरासत में लिया गया है। यहां तक कि जेल में इन साधुओं को बाहर से भोजन उपलब्ध कराने के नाते भी गिरफ्तारियां हुई है, क्योंकि अपने भोजन संबंधित नियमों के नाते ये कुछ भी और कही का भी खाना नहीं खा सकते हैं। फिर जब हिन्दू समाज ने विरोध शुरु किया तो उनके उपर हमलें शुरु हो गए और हिंदू समुदाय को आज वहां यातना झेलनी पड़ रही है। बहरहाल दो देशों को सामने रख कर अगर सरल शब्दों में राजनीति व कूटनीति की बात करे तो कहा जा सकता है कि राजनीति में कब क्या बदल जाए कोई कह नहीं सकता। यहां कुछ भी दावे के साथ स्थायी नहीं होता है। लेकिन कूटनीति की बात करे तो कहा जा सकता है कि जब बात देश व उससे जुड़े लोग और मुद्दों की बात हो तो वहां राजनीति नहीं की जा सकती बरन वहां कूटनीति ज्यादतर कारगर होती है। देखा जाए तो उपरोक्त मुद्दे पर ममता बनर्जी एक कदम आगे निकली दिख रहीं है।
जगदीश यादव
( लेखक वरीय पत्रकार है)।
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