सीहोर : नौ दिवसीय श्रीराम कथा में उत्साह के साथ मनाया गया भगवान श्रीराम का विवाहोत्सव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

सीहोर : नौ दिवसीय श्रीराम कथा में उत्साह के साथ मनाया गया भगवान श्रीराम का विवाहोत्सव

  • आज भगवान श्रीराम के वनवास का किया जाएगा वर्णन

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सीहोर। शहर के सीवन नदी के घाट पर गंगेश्वर महादेव, शनि मंदिर परिसर में जारी संगीतमय नौ दिवसीय श्रीराम कथा का आयोजन किया जा रहा है। मंगलवार को श्री राम कथा के दौरान भगवान श्री राम का विवाह उत्सव मनाया गया। जैसे ही प्रभु राम के विवाह का प्रसंग सुनाया चारो तरफ आओ सखियों मिल गाओ बधाई राम की बारात जनकपुर आई। कथा में प्रभु राम व शिव की महिमा का वर्णन करते महंत उद्ववदास महाराज ने कहा कि राम जी का विवाह आदर्श हैं और शिव भगवान का विवाह सादगी और विश्वास का प्रतीक है। माता सीता ने जैसे प्रभुराम को वर माला डाली वैसे ही देवतागण उन पर फूलों की वर्षा करने लगे। कथा में श्री राम और सीता जी की झांकी सजाई गई। श्रद्धालुओं ने श्री राम और सीता के पैर पखारने और बधाई गीत पर जमकर आनंद प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह आज भी आदर्श है। उन्होंने श्रीराम कथा में भगवान श्रीराम कथा का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि तब राजा दशरथ बारात लेकर जनकपुरी आए जहां पर राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न चारों पुत्रों का विवाह संपन्न कराया जाता है। कथा में भगवान राम और सीता जी की सुंदर वर्णन किया गया। जहां पर कथा आयोजनकर्त एवं क्षेत्रवासियों द्वारा भगवान राम जानकी के पैर पखारे और मंगल गीत गाए गए। सीता स्वयंवर पर प्रत्यंचा चढ़ाना कोई सरल कार्य नहीं था। राम ने जनकपुर के स्वयंवर में अपनी अदभुत वीरता दिखाई और जिस धनुष को राजा महाराजा हिला नही सकें उस धनुष को उठाकर रामजी ने सीता से विवाह किया। माता सीता ने रामजी के गले में वर माला डालकर उन्हे पति के रूप में स्वीकार किया। राम कथा में सीता की विदाई हुई।


ससुराल में कैसे रहना है इसकी सीख दी

महंत उद्ववदास ने कहाकि जनकपुर से जब सीताजी की विदाई हुई तब उनके माता-पिता ने उन्हें ससुराल में कैसे रहना है इसकी सीख दी। प्रत्येक माता-पिता को अपनी पुत्री के विवाह के समय ऐसी ही सीख देनी चाहिए। कन्या को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिये जिससे ससुराल व मायका दोनों कुल कलंकित हो। माता सीता ने पूरे जीवन अपने माता पिता की सीख का पालन किया। कर्म का फल कोई परमात्मा नहीं देता। व्यक्ति जो करता है, वही उसे मिलता है। अच्छे कर्म करता है तो अच्छा फल मिल जाता है, बुरे कर्म करता है तो बुरा फल मिल जाता है। पक्का हुआ आम कभी कड़वा नहीं हो सकता वो सदैव मीठा ही रहता है। इसी प्रकार से अच्छे कर्म का फल हमेशा सुखदायी होता है। इसलिए हमें सर्वदा अच्छे कर्म, श्रेष्ठ कर्म, उत्तम कर्म जिसमें आत्मा को सुख हो, आत्मा की मुक्ति हो और सर्वजन के लिए हितकारी हो। ऐसा श्रेष्ठ कर्म सदैव करना चाहिए। आत्मा स्वयं कर्ता है, स्वयं भोगता है। आत्मा स्वयं मित्र और स्वयं शत्रु है। 

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