- अजमेर की दरगाह में सभी की है आस्था, पूजा स्थल अधिनियम, 1991 और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की पालना सुनिश्चित करें|
पीपुल्स यूनियन फिर सिविल लिबर्टीज ने कहा है कि धार्मिक स्थलों का संरक्षण: पूजा स्थल अधिनियम, 1991 स्पष्ट रूप से पूजा स्थल को एक धार्मिक चरित्र से दूसरे में बदलने पर रोक लगाता है। अधिनियम की धारा 4 में यह अनिवार्य किया गया है कि - “पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र 15 अगस्त, 1947 को जिस रूप में था, उसे बनाए रखा जाएगा।” इसी संदर्भ में एम. सिद्दीक (राम जन्मभूमि मंदिर) बनाम सुरेश दास (2019) में, सर्वोच्च न्यायालय ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने और भारत की बहुलवादी विरासत की रक्षा करने में इसकी भूमिका पर जोर दिया।न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अधिनियम संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को दर्शाता है और राजनीतिक या धार्मिक लाभ के लिए ऐतिहासिक दावों के दुरुपयोग को रोकता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि अजमेर की दरगाह के प्रबंधन के संबंध भारत सरकार द्वारा दरगाह ख्वाजा साहब अधिनियम, 1955 लागू है।यह अधिनियम सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को समर्पित अजमेर शरीफ दरगाह को मुस्लिम धार्मिक स्थल के रूपस्पष्ट रूप से चिन्हित करता है। अतः दरगाह के मंदिर होने का दावा भारत सरकार के कानून के विरुद्ध है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज का मानना है कि अल्प संख्यक समुदायों में सुरक्षा की भावना उत्पन्न करना सरकार का मूल दायित्वों में से एक है तथा देश के धर्म निरपेक्ष चरित्र का रक्षा करने का भार भी सरकार का है। केंद्र तथा राज्य सरकार को इस तरह के बेबुनियाद दावे कर समाज में वैमनस्यता उत्पन्न करने वालों के विरुद्ध स्वयं प्रसंज्ञान लेकर, पार्टी बन कार्रवाई करनी चाहिए। संस्था ने सर्वोच्च न्यायालय से भी अपेक्षा की है कि वे निचली अदालतों को निर्देशित करे कि 1991 के अधिनियम के विपरीत जाकर दावे स्वीकार नहीं करें।
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