- शिव महापुराण की कथा मानव जाति को सुख समृद्धि आनंद देने वाली : कथा व्यास पंडित राहुल कृष्ण आचार्य
इस मौके पर उन्होंने पहले दिन की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था जो अत्यंत दुर्बल, रस बेचने वाला और वैदिक धर्म से विमुख था। वह कोई धार्मिक कार्य नहीं करता था और सदैव धन कमाने में ही लगा रहता था। उसके ऊपर जो भी विश्वास करता था वह उसे मुर्ख बना देता था। ऐसा कोई भी नहीं था जिसे उसने धोखा न दिया हो। यहां तक कि वह अपने भाई बहनों के साथ भी छल करता था। उसका धन कभी भी किसी भी धर्म के काम में नहीं लगा एक दिन ईश्वर की कृपा से वह घूमते घूमते प्रयागराज में जा पहुंचा वहां उसने एक शिवालय देखा जहां बहुत से साधु महात्मा इक_े हुए थे और वह भी उस शिवालय में ठहर गया। लेकिन उस शिवालय में उसे बुखार आ गया। उसका शरीर ज्वर की पीड़ा में तड़पने लगा। वही एक ब्राह्मण शिवपुराण की कथा सुना रहे थे। बुखार में पड़ा हुआ देवराज उस ब्राह्मण के मुख से शिव कथा को लगातार सुनता रहा। 1 महीने के बाद उसे उस बुखार ने इतना पीड़ित कर दिया कि उसके प्राण छूट गए यानी कि उसकी मृत्यु हो गई। जब उसकी मृत्यु हुई तो यमराज के दूत आए और उसे अपने पाश में बांधकर बलपूर्वक यमलोक ले जाने लगे। जब यमराज के दूत उसे रस्सी में बांधकर बलपूर्वक ले जाने लगे उसी समय उसने देखा कि शिवलोक से महादेव के पार्षद भी वहां आ गए थे। उनके हाथ में त्रिशूल था। उनके समस्त शरीर में भस्म लगी हुई थी और बड़ी-बड़ी रुद्राक्ष की माला उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थी। उन्हें क्रोध आया और वह यमपुरी यमराज के दूतों को मारपीट कर, धमकाकर उसकी आत्मा को छुड़ा लिया। जब महादेव के दूत उसे यमपुरी से निकालकर कैलाश पर्वत को ले जाने के लिए तैयार हुए तो उस समय यमपुरी में बड़ा भारी हाहाकार मच गया। उस शोर-शराबे को सुनकर धर्मराज अपने भवन के बाहर आए और उन्होंने उन शिव के दूतों को देखकर उनका पूजन किया और अपने ज्ञान दृष्टि से सारा वृत्तांत जान लिया।
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