सीहोर : शिव महापुराण में आज मनाया जाएगा भगवान गणेश का विवाह उत्सव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 11 जनवरी 2025

सीहोर : शिव महापुराण में आज मनाया जाएगा भगवान गणेश का विवाह उत्सव

  • भगवान गणेश और कार्तिकेय के जन्म प्रसंग के बारे में विस्तार से वर्णन

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सीहोर। शहर के प्राचीन करोली माता मंदिर में जारी सात दिवसीय संगीतमय शिव महापुराण में कथा वाचक पंडित राहुल कृष्ण आचार्य ने भगवान गणेश और कार्तिकेय के जन्म प्रसंग के बारे में विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि भगवान शंकर और पार्वती ने गणेश और कार्तिक की परीक्षा ली। जिसमें पूरे ब्रह्मांड का चक्कर काटने वाले को प्रथम पूज्य का पद देने की बात कही। प्रतियोगिता में दोनों ही ब्रह्मांड का चक्कर काटने निकले तो कार्तिक मोर पर सवार हो पूरे ब्रह्मांड का चक्कर काटने लगे और भगवान गणेश ने माता-पिता की परिक्रमा कर ली। इस परिक्रमा के बाद जब कार्तिकेय अपने माता-पिता के पास पहुंचे तो देखा कि गणेश पहले ही मौजूद थे। आचार्य ने कहा कि गणेश के इस मातृ एवं पितृ भक्ति को देख भगवान शंकर और पार्वती ने किसी भी कार्य को करने के पहले भगवान गणेश की पहली पूजा का वरदान दिया। कथा वाचक पंडित राहुल ने कहा कि भगवान की भक्ति के अनेक उदाहरण हमारे धार्मिक ग्रंथों में मौजूद है। भक्त प्रहलाद, हनुमान जी, मीरा और शबरी आदि शामिल है। जिन्होंने अपनी भक्ति के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त किया और। उन्होंने शबरी प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि शबरी ने गुरु का कहा पूर्ण मनोयोग से निभाया, फलस्वरूप गुरु के कहे अनुसार शबरी के इष्ट श्रीराम सीताजी की खोज में उसी रास्ते से गुजरे जिस पर सारा जीवन शबरी आंखें लगाई रहीं।


 कहा जाता है कि शबरी की जब शादी होने वाली थी उस समय विवाह समारोह में कई जीवों की बलि होने की सूचना पर वो व्यथित हो गईं वे इतने जीवों की हत्या का पाप अपने सिर नहीं लेना चाहती थीं। उन्होंने उसी रात अपना घर छोड़ दिया और ऋषिमुनियों के आश्रम के लिए चल पड़ीं। मातंग ऋषि ने उन्हें अपनाया और गुरुदीक्षा दी। शबरी ने अपनी गुरुभक्ति से गुरु के हृदय में स्थान बना लिया। गुरु ने उन्हें आशीर्वाद दिया और बताया कि उनके ईष्ट भगवान राम इसी मार्ग से गुजरेंगे, तुम प्रतीक्षा करना। शबरी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह रोज आश्रम के मार्ग की सफाई करती और कंद मूल रख कर श्रीराम का इंतजार करती थी। इस तरह अब शबरी बूढी हो गईं थीं लेकिन उन्होंने भगवान श्रीराम से मिलने की आस नहीं छोड़ी थी. उन्हें पूरा विश्वास था कि उनके गुरु ने कहा है तो उनकी वाणी जरूर सत्य होगी। भगवान राम इसी मार्ग से गुजरेंगे और उसकी मुक्ति हो जाएगी। शबरी ने पूरी उम्र श्रीराम की प्रतीक्षा की. उनकी प्रतीक्षा पूरी हुई श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ सीता की खोज करते हुए मातंग ऋषि के आश्रम पहुंचे। शबरी उन्हें पहचान लिया और उनका स्वागत किया। शबरी ने भगवान को सभी कंदमूल फल अर्पण किये लेकिन बेर अर्पण करने में उन्हें संकोच हो रहा था। उन्हें डर था कि उनके भगवान को कहीं खट्टे बेर न मिल जाँए इसलिए उन्होंने उसे चखना शुरू किया और मीठे फल श्रीराम को देने लगीं और खट्टे फल फेंकने लगीं। राम भी शबरी के बेर प्रेम से खाने लगे, लक्षमण यह देख कर अचंभित थे कि शबरी के जूठे बेर श्रीराम प्रेम से खा रहे थे। श्रीराम शबरी की सरलता पर मोहित थे। शबरी की भक्ति आज भी निश्चल प्रेम की कहानी कहती है। कहते हैं माता शबरी को उसी समय मुक्ति मिल गई। 

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