- कलियुग में भगवान शिव की पूजा अर्चना से हमारा कल्याण होता : कथा व्यास राहुल कृष्ण आचार्य
उन्होंने कहा कि महादेव ने जिस स्थान पर कामदेव को भस्म किया उसी स्थान पर नारद तप करने लगे। तप से कामदेव के भयभीत होने पर नारद को अभिमान हो गया कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर ली। भगवान विष्णु ने माया के द्वारा विश्व मोहिनी स्वयंवर में नारद को आसक्त देखकर वानर रूप दे दिया। जिससे कुपित होकर उन्होंने विष्णु जी को शाप दिया। विष्णु के अवतार भगवार राम को सीता वियोग में वानरों व भालुओं संग 14 वर्ष का जीवन यापन करना पड़ा। आचार्य ने बताया कि मानव जीवन के कल्याण के लिए पुराण में नारद भक्ति क्रमश श्रवण, कीर्तन, स्मरण, वंदना, पूजन और आत्म निवेदन का मार्ग है। शिव भक्ति से जीवन में यश, बल, बुद्धि, विद्या और दीर्घ आयु के साथ ही सुख समृद्धि भी प्राप्ति होती है। उन्होंने नारद मोह का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि भगवान विष्णु ने नारद ऋषि के मन में उपजे अहंकार को मिटाने के लिए यह माया रची। भगवान ने अपनी माया से सुन्दर राज्य का निर्माण व उस राज्य के राजा शीलनिधि के रूप में अपनी कन्या के स्वयम्बर की घोषणा की। नारद को भी उस सुन्दर कन्या को प्राप्त करने की लालसा जग गई। नारदजी भगवान श्री हरि विष्णु के पास उनके रूप को प्राप्त करने हेतु गये। भगवान हरि ने उन्हें हरि (बानर) का रूप दे दिया। गुरुवार को दोपहर में कथा के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती का वर्णन के अलावा रात्रि को खटू श्याम भजन संध्या का आयोजन किया जाएगा।
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