इससे पूर्व, डॉ. अनुप दास, निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना ने संस्थान द्वारा बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में 1000 हेक्टेयर से अधिक धान-परती क्षेत्रों को हरित बनाने में किए कारगर प्रयासों को साझा किया । साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि इन उपायों से दलहन और तिलहन की आपूर्ति की कमी को पूरा करने और किसानों की आय बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। इसके साथ ही, मुख्य अतिथि डॉ. चौधरी ने स्वर्ण रथ (ई-रिक्शा) का उद्घाटन किया और एक प्रदर्शनी का भी अनावरण किया, जिसमें धान-परती क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए नवीन प्रौद्योगिकियों और सतत रणनीतियों को प्रदर्शित किया गया है। कार्यशाला में संस्थान द्वारा संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों, फसल विविधीकरण और सहभागी दृष्टिकोणों पर कई तकनीकी बुलेटिनों का भी विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम में देशभर से 100 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का समन्वय डॉ. राकेश कुमार, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. रचना दूबे आदि ने किया | डॉ. सौरभ कुमार द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
पटना (रजनीश के झा)। पूर्वी क्षेत्रों के अधिकांश किसान धान की कटाई के उपरांत अपर्याप्त सिंचाई सुविधा, मिट्टी में नमी की कमी और उन्नत तकनीकों के समय पर उपलब्ध न होने के कारण अपनी भूमि को परती छोड़ देते हैं, जिसमें फसल सघनता/विविधता की अपार संभावनाएं हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में दिनांक 3 जनवरी 2025 को धान-परती क्षेत्रों में समुचित प्रबंधन हेतु दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ । इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि डॉ. एस. के. चौधरी, उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों, शून्य जुताई/अवशेष प्रबंधन, फसल पोषण एवं खरपतवार प्रबंधन, स्थानीय एवं अस्थानीय जल संरक्षण उपायों को अपनाने पर बल दिया, ताकि मिट्टी की नमी को संरक्षित किया जा सके और किसान रबी फसलों की बुवाई समय पर सुनिश्चित कर सकें ।
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