इस कार्यक्रम में कई प्रमुख कृषि विशेषज्ञों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थानों के निदेशकों ने भाग लिया, जिनमें डॉ. जे. एस. मिश्रा, निदेशक, भा.कृ.अनु.प – खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर; डॉ. ए. सारंगी, निदेशक, भा.कृ.अनु.प – भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर; डॉ. एन.जी. पाटिल, निदेशक, भा.कृ.अनु.प – राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो, नागपुर; डॉ. सुनील कुमार, निदेशक, भा.कृ.अनु.प –भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम; डॉ. प्रदीप डे, निदेशक, भा.कृ.अनु.प-अटारी, कोलकाता; डॉ. आर. के जाट, बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया और डॉ. एस. पी. पूनिया, अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र आदि मौजूद थे।
इस कार्यक्रम में संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास ने मॉडल के बारे में बताते हुए कहा कि मल्चिंग, कृषि-बागवानी प्रणाली, केंचुआ खाद, सौर ऊर्जा अनुप्रयोग जैसी उन्नत पद्धतियां इस मॉडल का अभिन्न अंग हैं, जो दीर्घकालिक स्थिरता और कुशल जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करती हैं। डॉ. दास ने जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में कृषि संसाधनों के उचित प्रबंधन एवं जल के दक्षतापूर्वक उपयोग वाले इस मॉडल के महत्व को रेखांकित | उद्घाटन के दौरान, भूमि और जल प्रबंधन विभाग के प्रमुख डॉ. आशुतोष उपाध्याय ने मॉडल के प्रमुख घटकों पर प्रकाश डाला, जिसमें मिश्रित मछली पालन, बत्तख पालन, मशरूम उत्पादन और कृषि-जलीय भूमि विन्यास के माध्यम से फसल विविधीकरण आदि शामिल हैं। इस नवीन मॉडल का विकास डॉ. अनुप दास के नेतृत्व में डॉ. आशुतोष उपाध्याय, डॉ. अजय कुमार, डॉ. अकरम अहमद, डॉ. आरती कुमारी, डॉ. पवन जीत, डॉ. सुरेंद्र अहिरवाल, डॉ. शिवानी, डॉ. तन्मय कोले, डॉ. एम.के. त्रिपाठी, डॉ. वेद प्रकाश, डॉ. रचना दुबे, डॉ. अभिषेक कुमार और डॉ. अभिषेक दुबे सहित वैज्ञानिकों की एक टीम के सहयोगात्मक प्रयास से किया गया।
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