सीहोर : सात दिवसीय शिव महापुराण में सती चरित्र का वर्णन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

गुरुवार, 9 जनवरी 2025

सीहोर : सात दिवसीय शिव महापुराण में सती चरित्र का वर्णन

  • भगवान शिव ने जगत के कल्याण के लिए किया विवाह : कथा वाचक पंडित राहुल कृष्ण आचार्य

Shiv-maha-puran-sehore
सीहोर। भगवान शंकर की लीला अपरंपार है, मां पार्वती की महिमा का वर्णन करने में शास्त्र भी थक जाते हैं। शास्त्रों में भगवान शिव और मां पार्वती को श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक बताया गया है। घनीभूत श्रद्धा के प्रतिबिम्ब भोले शंकर और भगवती पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने ही तारका सुर का वध कर संसार को असुर के अत्याचार से मुक्त कराया था। शिव की समाधि को मन्मथ के माध्यम भंग किया गया ताकि श्रद्धा के साथ विश्वास का विवाह हो सके। उक्त विचार शहर के करोली माता मंदिर में जारी सात दिवसीय शिव महापुराण के दौरान कथा वाचक पंडित राहुल कृष्ण आचार्य ने कहे। इसके अलावा शबरी और भगवान श्रीराम और भरत का प्रसंग बताया गया। शुक्रवार को कार्तिकेय गणेश जन्मोत्सव का विस्तार से वर्णन किया जाएगा।


उन्होंने शिव एवं सती के विवाह के बारे में बताया की भगवान शिव के विवाह के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने सबसे पहले सती से विवाह किया था। भगवान शिव का यह विवाह बड़ी जटिल परिस्थितियों में हुआ था। सती के पिता दक्ष भगवान शिव से अपने पुत्री का विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन ब्रह्मा जी के कहने पर यह विवाह सम्पन्न हो गया। एक दिन राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान कर दिया जिससे नाराज होकर माता सती ने यज्ञ में समाहित हो गई। इसके बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए। उधर माता सती ने हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। तारकासुर नाम के एक असुर का उस समय आतंक था। देवतागण उससे भयभीत थे। तारकासुर को वरदान प्राप्त था कि उसका वध सिर्फ भगवान शिव की संतान ही कर सकती है। उस समय भी भगवान शिव अपनी तपस्या में लीन थे। तब सभी देवताओं ने मिलकर शिव और पार्वती के विवाह की योजना बनाई। भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव को भेजा गया लेकिन वह भस्म हो गए। देवताओं की विनती पर शिव जी पार्वती जी से विवाह करने के लिए राजी हुए। विवाह की बात तय होने के बाद भगवान शिव की बारात की तैयार हुई। इस बारात में देवता, दानव सभी लोग शामिल हुए। भगवान शिव की बारात में भूत पिशाच भी पहुंचे और ऐसी बारात को देखकर पार्वती जी की मां बहुत डर गईं और कहा कि वे ऐसे वर को अपनी पुत्री को नहीं सौंप सकती हैं। तब देवताओं ने भगवान शिव को परंपरा के अनुसार तैयार किया, सुंदर तरीके से श्रृंगार किया इसके बाद दोनों का विवाह संपन्न हो गया। 

कोई टिप्पणी नहीं: