कविता : महिलाओं की हथकड़ियां - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

  
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

demo-image

कविता : महिलाओं की हथकड़ियां

जकड़ी हूं या सजी हूं, क्या राज़ हूं मैं,

दुनिया की नज़रों में आज क्या हूं मैं?

चूड़ी, कंगन और पायल क्या है?

ये मेरे शृंगार हैं या हथकड़ियां हैं?

मुझे है दुनिया से एक सवाल,

क्यों है ये श्रृंगार मेरे लिये आज?

दुनिया जिसे समझती है सुंदरता,

बन न जाए नारी के लिए बाधा आज,

श्रृंगार के नाम पर उस पर ज़ुल्म क्यों?

हथकड़ी तोड़ उठाती है वह आवाज़,

सुंदरता नहीं, दक्षता है उसका राज़,

अब नहीं करना है उसे कोई शृंगार॥




PRIYA


प्रिया

कक्षा-9

सुराग, गरुड़

उत्तराखंड

चरखा फीचर्स

कोई टिप्पणी नहीं:

undefined

संपर्क फ़ॉर्म

नाम

ईमेल *

संदेश *