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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

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आलेख : काल के गाल में समाते मासूम, उचित नहीं सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना

राजथान सहित कई राज्यों के गांवों में हर साल अनेक मासूम बच्चे अनजाने में खुले बोरवेल में गिर कर अपनी जान गवां देते हैं। ऐसे हादसों को टालने के लिए सुप्रीम कोर्ट करीब दो दशक पहले से ही गाइडलाइन जारी कर चुका है पर आज भी उसकी क्रियान्विति नहीं हो रही।

पिछले कुछ वर्षों से देश के विभिन राज्यों की तरह राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में भी एक त्रासदी कहर ढा रही है। देश के सबसे बड़े प्रदेश के अनेक गांवों में खुले बोरवेल मासूमों के लिए काल का गाल बन गए हैं। फरवरी के अंतिम सप्ताह में हाड़ौती के झालावाड़ के पाडला गांव में पाँच साल का प्रह्लाद खेलते-खेलते खेत में खुदे डेढ़ सौ फीट गहरे बोरवेल में जा गिरा और काल के गाल में समा गया। पिछले साल दिसम्बर में कोटपूतली में बोरवेल में गिरी तीन साल की मासूम चेतना 220 घंटे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद भी बचाई नहीं जा सकी। यह घटना पूरे राजस्थान और देश को झकझोरने वाली थी। जुलाई 2006 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र के हल्देहड़ी के प्रिंस का मामला देशभर में चर्चा का विषय बना था। इसके बावजूद बोरवेल के गड्ढों में गिरने का सिलसिला थम नहीं रहा। राजस्थान समेत अन्य राज्यों में बार-बार ऐसे हादसे होते हैं और उनमें लाखों रुपये रेस्क्यू ऑपरेशन में खर्च हो जाते हैं। इन रेस्क्यू ऑपरेशन में स्थानीय पुलिस, प्रशासन और एसडीआरएफ के साथ एनडीआरएफ यानी केंद्र,राज्य सरकारों की आपदा राहत की रेस्क्यू टीमें जुटती हैं। हरसंभव संसाधन झोंक दिए जाते हैं, फिर भी सफलता की गारंटी नहीं होती है।  राजस्थान में पिछले कुछ सालों में ही कई हादसे हो चुके हैं।


जालोर जिले के लाछड़ी गांव में 6 मई 2021 को अनिल देवासी खेत में बने बोरवेल में जा गिरा। दौसा के बांदीकुई में 15 सिंतबर 2022 को दो साल की अंकिता 200 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई। जयपुर के जोबनेर के भोजपुरा गांव में 20 मई 2023 को ननिहाल आया नौ साल का लक्की 200 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था। अलवर के कनवाडा गांव में 25 मई 24 को पाँच वर्षीय गोलू खेत के बोरवले में करीब 20-25 फीट गहराई में फंस गया था। बांदीकुई के ही गांव जोधपुरिया में 18 सितंबर 24 को ढाई साल की मासूम नीरू गुर्जर गिर कर 30 फीट गहराई पर अटक गई थी। बाड़मेर के गुड़ामालानी में 20 नवंबर 24 को चार साल का मासूम खेलते खेलते हुए डेढ़ सौ फीट गहरे बोरवेल में गिरा और करीब 100 फीट की गहराई पर अटक कर मौत के मुँह समा गया।  दौसा के कालीखाड़ गांव में 9 दिसंबर 24 को 150 फीट गहरे बोरवेल में गिरे वर्षीय बच्चे आर्यन को 55 घंटे से अधिक लंबे ऑपरेशन के बाद भी नहीं बचाया जा सका। निरंतर होते ऐसे दर्दनाक हादसों को लेकर गंभीर सवाल यही है कि मासूम बच्चों की कब्रगाह बनते इन बोरवेल हादसों के प्रति सरकार, प्रशासन और समाज कब चेतेगा ? एनडीआरएफ की रिपोर्ट के मुताबिक बोरवेल में गिरे बच्चों को बचाने में करीब सत्तर फीसद बचाव अभियान नाकाम रहे। ग्रामीण क्षेत्र किसान पानी के लिए अस्सी फीसदी से भी ज्यादा बोरवेल पर ही निर्भर हैं, पर खेतों में बोरवेल खोदने वाले किसान पानी खत्म होने पर पाइप और पंप तो निकाल लेते हैं लेकिन गड्ढे को भरने या ढकने के खर्च से बचने के लिए इसे खुला छोड़ देते हैं। यह लापरवाही मासूमों की जान ले लेती है।   


 देश में बढ़ते बोरवेल-हादसों को रोकने के लिए 18 साल पहले 6 अगस्त 2010 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया, जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने एक गाइडलाइन के रूप के दिशानिर्देश दिए जो पूरे देश के लिए थे, लेकिन इनका सही क्रियान्वन आज तक नहीं हुआ है। गाइडलाइन में साफ कहा था कि बोरवेल के हादसे के लिए जिला कलक्टर जिम्मेदार होंगे, लेकिन करीब दो दशकों बाद भी ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि किसी कलक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई हो। इन दिशानिर्देशों में निर्माण के दौरान कुएं के चारों ओर कंटीले तारों की बाड़ लगाना, कुएं के ऊपर स्टील प्लेट कवर का उपयोग करना और बोरवेल को नीचे से लेकर ऊपर तक भरने के साथ ही भूमि या परिसर के मालिक को बोरवेल बनाने से पहले संबंधित अधिकारियों-जिला कलेक्टर या सरपंच- या भूजल या सार्वजनिक स्वास्थ्य, नगर निगमों के विभाग के अधिकारियों को कम से कम 15 दिन पहले लिखित रूप से सूचित करने का निर्देश दिया गया था। निर्माण या पंप की मरम्मत के मामले में बोरवेल खुला नहीं छोड़ने और काम पूरा होने के बाद मिट्टी के गड्ढों और चैनलों को भर देने के भी निर्देश थे। 


सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की पालना और निगरानी के लिए इसी साल जनवरी में राजस्थान के पंचायतीराज विभाग ने विस्तृत गाइडलाइन जारी की। इसके मुताबिक राजस्थान की 11 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतों में स्थित बोरवेल और कुओं का डेटाबेस तैयार किया जाएगा। अब ग्रामीण क्षेत्र में बोरवेल खुले रहने पर ग्राम पंचायत और इससे जुड़े ब्लॉक और जिला स्तर के अधिकारी जिम्मेदार होंगे। बोरवेल के निरीक्षण के दौरान सर्वोच्च कोर्ट के निर्देशों की पालना नहीं करने पर जिला कलक्टर की ओर से बोरवेल की एनओसी रद्द करने और बोरवेल को सील करने के साथ जुर्माना लगाया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार के स्तर पर नियम-कायदे बना देने बाद अब जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन पर ही है, उसी को सख्ती से नियमों की पालना करवानी होगी। पालना न करने वालों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई भी होनी चाहिए। सरकार के साथ-साथ पंचों-सरपंचों, प्रधानों, विधायक और सांसद अपने क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाने होंगे और सबसे बढ़कर स्वयं बोरेरल के मालिकों, किसानों और ग्रामीणों को भी सचेत रहना होगा तभी मासूमों को असमय काल के गाल में समाने पर अंकुश लगाया जा सकता है।






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हरीश शिवनानी

(वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार, राजनीतिक-आर्थिक, सामाजिक-साहित्यिक विषयों पर लेखन)

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