इसी नया बाजार के एक मोड़ पर 65 वर्षीय लाली फूलों की माला बेचती हैं. वह पिछले 30 वर्षों से यह काम कर रही हैं. आसपास छोटे बड़े कई मंदिर होने के कारण प्रतिदिन उनकी अच्छी खासी माला बिक जाती है. जिससे उन्हें 500 से 600 रुपए तक की आमदनी हो जाती है. वह रोज़ाना 6 बजे सुबह यहां अपनी फूलों की टोकड़ी लेकर बैठ जाती हैं और रात 9 बजे तक रहती हैं. लाली बताती हैं कि प्रत्येक मंगलवार के अतिरिक्त पर्व त्योहारों के दिनों में उनकी पूरी माला बिक जाती है. जिससे उन्हें काफी आमदनी होती है और आर्थिक रूप से भी काफी लाभ मिलता है. वह बताती हैं कि उनके 2 बेटे हैं और दोनों ही अलग अलग दुकानों पर काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. ऐसे में वह अपने बेटों पर बोझ नहीं बनना चाहती हैं. इसलिए इस काम को करने में उन्हें ख़ुशी महसूस होती है. वह कहती हैं कि आमदनी के साथ साथ वह इसे ईश्वर की सेवा भी समझती हैं. लाली बताती हैं कि पुरुष और महिलाएं सभी उनसे फूल खरीदने आते रहते हैं. उन्हें कभी किसी प्रकार की दिक्कत नहीं आई है. वह मदार गेट से रोज़ाना बीस किलो फूल खरीदती हैं. इसके लिए वह प्रतिदिन सुबह पांच बजे मदार गेट पहुंच जाती हैं. वह बताती हैं कि 30 वर्ष पूर्व जब उन्होंने फूल बेचने का काम शुरू किया था, तो उन्हें इसमें बहुत अधिक परेशानी नहीं आई लेकिन मंडी में उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता था. जहां केवल पुरुष ही आया करते थे. ऐसे में मोलभाव करने में उन्हें झिझक होती थी. लेकिन इतने वर्षों बाद अब उन्हें कोई परेशानी नहीं होती है. अब उन्हें प्रतिदिन बाजार भाव का पता रहता है. वह कहती हैं कि पुरुषवादी समाज में महिलाओं को अपनी जगह बनानी पड़ती है. इसके लिए उसे घर से लेकर बाहर तक दोहरा संघर्षों से गुज़रना पड़ता है. विशेषकर छोटी पूंजी वाले कामों में उन्हें कदम कदम पर संघर्षों का सामना रहता है. लेकिन पिछले तीन दशकों में काफी बदलाव आया है. अब महिलाएं किसी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं. वह घर की आमदनी में बराबर की हिस्सेदार हो चुकी है. जिसे पुरुष प्रधान समाज को भी स्वीकार करने की ज़रूरत है.
आशा नारंग
अजमेर, राजस्थान
चरखा फीचर
(लेखिका अलवर मेवात शिक्षा एवं विकास संस्थान से जुड़ी हैं)
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