पटना (रजनीश के झा)। बिहार के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में आर्द्रभूमि का बहुत बड़ा योगदान है | इसको देखते भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के निदेशक डॉ. अनुप दास के मार्गदर्शन में वैज्ञानिक डॉ. विवेकानंद भारती एवं डॉ. तारकेश्वर कुमार द्वारा कसरैया धार आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन किया जा रहा है | कसरैया बिहार के खगड़िया जिला का एक विशाल आर्द्रभूमि है, जो 300 एकड़ क्षेत्र में फैला है | इसके चारों तरफ 11 गाँवों में लगभग 10000 से अधिक आबादी रहती है, जो वर्षो से इस आर्द्रभूमि से लाभ उठा रही है| यहाँ की मछली अपने स्वाद के लिए पूरे जिला में प्रसिद्ध है| यहाँ 40 से अधिक प्रकार की मछलियों की प्रजातियां पाई जाती है| रोहू, रेवा, मृगल, सिंघी, चितल, कौआ मछली, पब्दा, गराई, पोठी, चितल, ग्रास कार्प, कतला, कोलिशा आदि मछलियाँ बहुत मात्रा में मिलती है| यहाँ से प्रतिदिन लगभग 40-50 किलो का उत्पादन हो रहा है, जो क्षेत्र के अनुसार काफी कम है, जिसका मुख्य कारण यहाँ की जलकुंभी है| इस आर्द्रभूमि का आधा से ज्यादा हिस्सा जलकुंभी से भरा है| जलकुंभी के कारण यहाँ के सहनी लोग (मछुआरे) इस आर्द्रभूमि में जाल नहीं लगा पाते हैं| इस आर्द्रभूमि के जल से सैंकडों एकड़ कृषि की सिंचाई हो रही है| इसके अलावा गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी और सुअर पालने में इस आर्द्रभूमि का उपयोग हो रहा है| यहाँ के लोग बताते हैं कि पुराने समय में इस क्षेत्र का जल काफी साफ होने के कारण इसका उपयोग खाना बनाने, पीने, स्नान करने में भी किया जाता था| लेकिन आसपास के गांव से घर का गंदे पानी, कचरा और जलकुंभी से दूषित होने के बाद यहाँ के जल का महत्व कम हो गया है| अतः यहाँ लोग पुनः जलकुंभी कम होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं| यहाँ समेकित मत्स्य पालन तथा जल पर्यटन की अपार संभावना है| यहाँ युवा भी समेकित मत्स्य पालन जैसे उद्यम शुरू करने के लिए काफी उत्सुक हैं, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होने कारण असमर्थ हो जाते है| अतः यहां के युवाओं को तकनीकी एवं आर्थिक सहायता देकर मत्स्य पालन के लिए प्रेरित कर रोजगार सृजन किया जा सकता है |
बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

पटना : कसरैया धार आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन
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