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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

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आलेख : बायोलोजिकल क्लाक के संकेत से नियमित कर सकते हैं शारीरिक गतिविधियां

बदलती जीवनशैली और आधुनिकता की दौड़ में हम बायोलोजिकल क्लॉक के संकेतों को समझना ही भूल गए है। बायोलोजिकल क्लॉक यानी कि सर्केडियन रिदम को समझना इतना मुश्किल भी नहीं है अपितु यह कहा जाए कि बायोलोजिकल क्लॉक के संकेतों से हम वाकिफ होेेने के बावजूद उन्हें महत्व नहीं देते और इसी का कारण है कि हम तेजी से मोटापा, डायबिटिज, लिवरं, डिप्रेशन, अनिद्रा और यहां तक की मानसिक बीमारियों की चपेट में आसानी और तेजी से आते जा रहे हैं। यह भले ही आमआदमी के लिए आश्चर्यजनक हो पर जिस तरह से हमारी दिनचर्या घड़ी के हिसाब से चलती है ठीक उसी तरह से हमारे शरीर में प्रकृति द्वारा पहले से ही घड़ी बनाई होती है। बॉडी क्लॉक या सर्केडियन रिदम के संकेतों को हम समझने लगे तो स्वास्थ्य से संबंधित बहुत सी समस्याओं से आसानी से समय रहते बव सकते हैं। प्रकृति ने बॉडी क्लॉक में माध्यम से हमें पल पल में संकेत देती रहती है। सोते-जागते उसके संकेत हमें मिलने के बावजूद हम उन्हें जाने अनजाने उन संकेतों को समझने में भूल कर बैठते हैं। जिस तरह से हमारी दिनचर्या घड़ी के हिसाब से चलती है ठीक उसी तरह से हमारी दिनचर्या को जाने अनजाने में बॉडी लॉक नियंत्रित करने में प्रमुख भूमिका निभाती है। सोना-जागना, खाना-पीना, यहां तक कि शरीर का तापमान और शारीरिक गतिविधियों को बॉडी क्लॉक प्रभावित करती है। बायोलोजिकल क्लॉक यानी कि बॉडी क्लॉक हमारी मनोदशा को भी प्रभावित करती है। दरअसल हमारे शरीर को बायोलोजिकल आवश्यकताओं की जानकारी होती है। कब सोना है कब जागना है, कब खाना है कितना खाना है आदि आदि के संकेत स्पष्ट रुप से हमारी बॉडी देती है। होता यह है कि हम उस और ध्यान नहीं देते हैं और उसी के कारण अनेक बीमारियों की जकड़न में आ जाते हैं। यह कोई कपोल कल्पना ना होकर इसके महत्व को इसी से समझा जा सकता है कि 2017 में अमेरिका के तीन वैज्ञानिकों को उनके बॉडी क्लॉक के अध्ययन और निष्कर्ष पर नोबल पुरस्कार मिल चुका है।

       

यदि हम हमारी परंपरागत दिनचर्या को देखे तो साफ हो जाता है कि बॉडी क्लॉक के बारे में पूरी तरह से समझा जा सकता है। हमारी परंपरागत अधिकांश गतिविधियां बॉडी क्लॉक के अनुसार होती रही है। सुबह सूर्योदय से पहले उठने से लेकर रात को सोने तक की सभी गतिविधियां बॉडी क्लॉक के अनुसार निर्धारित रही है। माना जाता है कि शरीर का सबसे कम तापमान प्रातः 4 से 4.30 के लगभग रहता है। इसी तरह से प्रातः वर्कआउट के स्थान पर योग पर जोर रहता था। सुबह के पूजा पाठ में योग का अपना महत्व रहता था। प्राणायाम, ध्यान, मुद्राओं का प्रदर्षन आदि योग के ही अंग रहे हैं और सुबह के समय इसको प्राथमिकता दी जाती रही है। सुबह के समय कार्टिसोल का अधिक स्राव व अन्य कारणों से हार्ट अटैक की अधिक संभावनाएं रहती है। इसी तरह से बॉडी क्लॉक की माने तो प्रातः 10 बजे के आसपास का समय सबसे अधिक एक्टिव होता है तो तीन बजे से पांच बजे के आसपास का समय विचार विमर्श आदि के लिए उपयुक्त माना जाता रहा है। सायं 7 बजे के  आसपास शरीर का तापमान अधिक होता है ऐसे में शांत रहना चाहिए। शाम 6 साढ़े 6 बजे ब्लडप्रेशर अधिक होता है ऐसे में दिल के मरीजों को इस समय सतर्क रहना चाहिए। इसी तरह से रात 9 बजे नींद का प्रभाव आरंभ हो जाता है। माना जाता है रात 2 बजे गहरी नींद का समय होता है। शाम 5 साढ़े 5 बजे एक्सरसाइज के लिए उपयुक्त समय माना जाता है। समझने की कोशिश की जाए तो यह गोधूली बेला का समय होता है इसलिए भले ही इसे पोंगा पंथी माना जाए पर सूर्यास्त के समय को टालने पर जोर दिया जाता रहा है। इस समय में कुछ आगे पीछे हो सकता है पर यह साफ है कि बॉडी क्लॉक बड़े ही सिस्टेमेटिक तरीके से काम करते हुए संकेत देती है जिसे समझना और उसके अनुसार दिनचर्या को नियमित करने से बहुत सी शारीरिक मानसिक समस्याओं से बचा जा सकता है।

       

हांलाकि बॉडी क्लॉक की रिदम व्यक्ति में अलग अलग हो सकती है। इसके साथ ही दिनचर्या के अनुसार उसमें बदलाव होता रहता है। हमारे सोने जागने और खाने पीने के समय आदि को बॉडी क्लॉक सर्वाधिक प्रभावित करती है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है तो नींद नहीं आना, डिप्रेशन, याददाश्त खोना, टेंशन, मानसिक समस्याएं, यहां तक आज की सबसे गंभीर बीमारी टाइप 2 डायबिटीज और मोटापा, दिल की बीमारी और कैंंसर तक को बॉडी क्लॉक के इशारों को नहीं समझने को माना जाता है। जिनकी दिनचर्या नियमित नहीं होती है उन्हें ही इन समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। शिफ्ट में काम करने वाले, किसी भी कारण से समय पर खाने-पीने या सोने-जागने आदि की चर्या नियमित नहीं होती उन्हें यह बीमारियां अधिक प्रभावित करती है।

       

पिछले दिनों साइंस पत्रिका मेें एक शोध प्रकाशित हुआ है। पेनसिल्वानिया के वैज्ञानिकों के इस अध्ययन के अनुसार शिफ्ट में काम करने वाले या सफर में रहने वालों की दिनचर्या के प्रभावित होने के परिणाम हमारे सामने होते हैं। इसी तरह से नींद पूरी और समय पर नहीं लेने से मानसिक बीमारियों की जकड़ में आ जाते हैं। मोटापा, मधुमेह, अनिद्रा और इससे जुड़ी बीमारियों से प्रभावित हो जाते हैं। बॉडी क्लॉक के अनुसार मस्तिष्क या शरीर से मिलने वाले संकेतों पर ध्यान नहीं देने के कारण बीमारियों की जकड़ में आ जाते हैं। संकेत को नहीं समझने के कारण ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल आदि बढ़ने का कारण भी होता है। सामान्यतः बॉडी क्लॉक 22 से 25 घंटे का होता है। यह लोगों में अलग अलग अवधि का हो सकता है। पर खास बात यह है कि यह पूरी दिनचर्या को नियंत्रित करने के संकेत देता है। समय पर नहीं सोना या भूख लगने पर भी नहीं खाना या गतिविधियों को नियमित नहीं करने से समस्याएं होने लगती है। जिस तरह से बुखार होते ही बीमारी का संकेत मिल जाता है ठीक उसी तरह से सर्केडियन रिदम अपने संकेत देती रहती है। शरीर की मांग को यह दर्शा देती है ऐसे में उसी अनुसार बदलाव करने से सुधार संभव हो पाता है। हमें बायोलोजिकल क्लॉक के संकेतों को समझना होगा। थोड़ा गंभीर होने पर हम हमारे शरीर की प्रकृति को भली प्रकार से समझ सकते हैं और उसके अनुसार जीवनचर्या को संचालित कर सकते हैं। यदि हम संकेतों को समझने में सफल हो जाते हैं और उनके अनुसार अपनी जीवनशैली में बदलाव लाते हैं तो कई स्वास्थ्य समस्याओं से बच सकते हैं।





Rajendra%20Sharma


डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

स्तंभकार

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