यह कोविड-काल की ही आपदा थी जिसे भारत ने अवसर में बदल दिया। अब भारत रूस-यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करवाने की दिशा में अपने प्रभाव और कूटनीति का इस्तेमाल कर वैश्विक स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बना सकता है।
निश्चित रूप से आपकी स्मृतियों में 24 मार्च 2020 की वो रात अब भी ताज़ा होगी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड (कोरोना) की वजह से पूरे भारत में ‘लोकडाउन’ की घोषणा की थी। यह युवा होती इक्कीसवीं शताब्दी का सबसे बड़ा संकट था, देश-दुनिया के सामने सबसे बड़ी विपदा थी; पर मानवीय साहस,धैर्य, सूझबूझ,अप्रतिम बौद्धिक कौशल से भारत ने सटीक प्रबंधन से इस आपदा का ऐसा सामना किया कि विश्व में भारत को एक अलग ही वैश्विक पहचान मिली। भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शुमार है जिसने अपने देश की अधिसंख्य आबादी को ‘ऑफलाइन’ से ‘ऑनलाइन’ और ‘फ़िज़िकल से डिजिटल’ होना सिखाया। यह कोविड-काल की ही आपदा थी जिसे भारत ने अवसर में बदल दिया। यह भी एक संयोग है कि एक बार फिर मार्च महीने में भारत के लिए एक वैश्विक शक्ति बनने, वैश्विक पहचान बनाने और दुनिया मे अपना राजनीतिक कौशल स्थापित करने का अवसर आया है। यह अवसर है जब पिछले तीन वर्षों से ज़्यादा समय से भीषण युद्ध के रक्तपात से त्रस्त यूक्रेन और रूस के बीच फ़िलहाल तीस दिनों का अस्थाई युद्धविराम हुआ है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मशक्कत से यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्दीमीर जेलेन्स्की और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आशंकाओं के बीच ही सही इस अस्थाई समझौते को माना तो है ही। यह छोटा-सा कालखंड ऐसा है जब भारत अपनी ओर से पहल करके दोनों देशों के मध्य स्थाई युद्धविराम करवा कर अपनी एक महत्वपूर्ण वैश्विक पहचान बना सकता है। युद्ध के एक साल बाद फ़रवरी 2023 प्रधानमंत्री मोदी ने जर्मनी चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ से बातचीत करते हुए इस संदर्भ में अपनी वैश्विक भूमिका का संकेत देते हुए कहा था कि “यूक्रेन और कोविड ने पूरी दुनिया पर असर डाला है..यह संकट मिल-जुल कर ख़त्म किया जा सकता है।” निश्चित ही भारत की ऐतिहासिक तटस्थता, कूटनीतिक संतुलन और उभरती हुई वैश्विक शक्ति की स्थिति का लाभ उठाकर दोनों पक्षों-रूस और यूक्रेन-के बीच संवाद को सुगम बना सकता है। प्रधानमंत्री मोदी इस युद्ध विराम को स्थायी शांति समझौते में बदलने के लिए बहुपक्षीय वार्ताओं की मेजबानी कर सकते हैं। भारत के पहले से ही रूस के साथ मजबूत संबंध हैं और पश्चिमी देशों के साथ बढ़ती साझेदारी का उपयोग करके भारत एक विश्वसनीय मध्यस्थ के रूप में उभर सकता है। मध्यस्थता के जरिए भारत यह साबित कर सकता है कि वह न केवल क्षेत्रीय, बल्कि वैश्विक शांति में योगदान देने में सक्षम है। भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम’ नीति अपनाकर कोविड-19 के दौरान वैक्सीन मैत्री पहल की तरह यूक्रेन में युद्ध से प्रभावित क्षेत्रों के लिए मानवीय सहायता भोजन, दवाइयां और अस्थाई आश्रय प्रदान करने के साथ इसके साथ ही युद्ध विराम के दौरान पुनर्निर्माण परियोजनाओं में तकनीकी और आर्थिक सहायता दे सकता है। इसके साथ ही रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच उससे तेल और गैस की खरीद जारी रख भारत वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति को संतुलित कर सकता है; इससे यूरोप और अन्य क्षेत्रों में मुद्रास्फीति का दबाव कम होगा। उधर, बीती बातें भुला कर (कारगिल युद्ध के दौरान यूक्रेन का पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति करना) यूक्रेन के साथ व्यापार कर उसे भी फ़िलहाल थोड़ी राहत देकर दुनिया को सकारात्मक संदेश दे सकता है। युद्ध विराम के दौरान भारत नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश को बढ़ावा देकर भी यूक्रेन के ऊर्जा क्षेत्र को सहायता दे सकता है। इस कालखंड में भारत बहुपक्षीय वैश्विक मंचों का उपयोग भी अपने हितार्थ कर सकता है, मसलन, भारत संयुक्त राष्ट्र, जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर इस युद्ध विराम को मजबूत करने और शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए प्रस्ताव पेश कर सकता है। यह भारत को वैश्विक स्तर पर एक अग्रणी आवाज के रूप में स्थापित करेगा, खासकर उन देशों के बीच जो पश्चिम और रूस के बीच फंसे हुए हैं। पूर्व विदेश सचिव निरूपमा राव का सुझाव भी गौरतलब है कि ऐसे समय में भारत स्वयं आगे बढ़कर संयुक्त राष्ट्र में सुझाव देकर युद्ध से संकटग्रस्त क्षेत्रों में अपने 5000 हज़ार सैनिकों को शांति रक्षक की भूमिका में भेजने चाहिएं जैसेकि 1953 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने कोरिया में एक हज़ार सैनिक भेज कर शांति-प्रक्रिया में भारत की पहचान बनाई थी। ये कुछ कदम है जो आपदा के इस कालखंड में भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन का अवसर भी दिला सकते हैं, क्योंकि यह वैश्विक शांति और स्थिरता में भारत की सक्रिय भूमिका का स्पष्ट संदेश होगा।
इन कदमों से भारत न केवल यूक्रेन-रूस युद्ध विराम को स्थाई बनाने की दिशा में योगदान दे सकता है, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी छवि को एक जिम्मेदार, संतुलित और मानवीय शक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है। भारत की यह भूमिका अंतरराष्ट्रीय पटल पर दीर्घकालिक कूटनीतिक लाभ, आर्थिक अवसर और वैश्विक शक्ति के रूप में पहचान भी दिला सकेगी। यही समय है जब मोदी दुनिया के आमने नॉर्मन श्वार्जकोफ के सूत्र वाक्य - “हम शांति में जितना पसीना बहाते है, युध्द में उतना ही कम खून बहता है।” को सामने रख रूस-यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करवा कर अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की धाक जमा सकते हैं।
हरीश शिवनानी
(वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार)
ईमेल : shivnaniharish@gmail.com
संपर्क : 9829210036
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