अरे समाज के लोगों मत सोचो,
इसमें लड़कियों का क्या दोष है,
लड़कियों ने पहने कपड़े छोटे नहीं है,
सोच छोटी तो तुम्हारी है,
नज़रों का दोष तुम्हारा है,
वह जीव है कोई निर्जीव प्राणी नहीं,
वह मानव नहीं क्या वस्तु है?
घर से बाहर वो क्यों न जाए?
क्या चारदीवारी में सड़ कर मर जाये?
क्यों रोकते हो आगे बढ़ने से उसको?
क्यों लगाते हो उस पर रोक तुम इतना?
कह नहीं पाती वह कुछ भी,
मगर पूछती है दोष क्या है मेरा?
पर आज तक समझ ना पाई वो,
इसमें लड़कियों का दोष कहां है॥
अंशु उपाध्याय
कक्षा- 9, उम्र-14
उत्तरौडा, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
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