मेरे हाथों की चूड़ियों को हथकड़ी मत समझो,
पैरो की पायल को कोई जंजीर मत समझो,
ये तो है श्रृंगार मेरा, ये है अभिमान मेरा,
चांद तक जा चुकी हूं, मंगल पर भी जाना है,
मुझे मेरे अभिमान का अब परचम लहराना है,
वीरांगना लक्ष्मी बाई की तरह कलयुग में भी,
मैदान-ए-जंग में दुश्मनों पर तलवार लहराना है,
और सावित्री बाई फुले की तरह शिक्षा फैलाना है,
अब शिक्षा हो ऐसी जहां नारी का मतलब समझाना है
विकसित भारत में लड़कियों का भी स्थान बनाना है,
नारी शक्ति से विश्व मंच पर भारत का मान बढ़ाना है,
आगे बढ़कर कई जिम्मेदारी को अब निभाना है,
नई ऊर्जा और एक नया आकाश मिलेगा,
लड़कियों से देश को एक नई पहचान मिलेगी।।
अंशु कुमारी
कक्षा -11वी
गोरियारा, मुजफ्फरपुर
चरखा फीचर
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