हर दिन अखबार में शोषण की खबर आती,
मगर अपराधियों को न कोई शर्म आती,
एक नन्ही सी परी के पंख काट,
दूसरे की तलाश में रहते हैं,
चारों तरफ अपना आतंक बनाए रहते हैं,
दिन दिहाड़े लड़की को छेड़ा जाता है,
कोई आवाज उठाए तो उसको रोका जाता है,
ये क्या खेल लड़कियों पे खेला जा रहा है,
उसके कपड़ों पर बातें बनाई जा रही हैं,
कुछ लोग दिखावे की मुस्कान लिए फिरते हैं,
बाहर से देवता, अंदर से शैतान बने फिरते हैं,
बस हो या ट्रेन हर कही ज़ुल्म हो रहा है,
लड़कियो को खिलौना समझ,
उसकी इज्जत से खेला जा रहा है,
लड़कियों को गंदी नज़रों से देखा जा रहा है,
गालियों में भी मां बहन का नाम लिया जा रहा है,
कही कसर नहीं छोड़ी है, जिसकी कोई गलती न हो,
उसको भी इस दुनिया वालो ने खूब कोसी है॥
भावना गड़िया
कन्यालीकोट, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें