कविता : खिलौना समझा है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

  
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 23 मार्च 2025

demo-image

कविता : खिलौना समझा है

हर दिन अखबार में शोषण की खबर आती,

मगर अपराधियों को न कोई शर्म आती,

एक नन्ही सी परी के पंख काट,

दूसरे की तलाश में रहते हैं,

चारों तरफ अपना आतंक बनाए रहते हैं,

दिन दिहाड़े लड़की को छेड़ा जाता है,

कोई आवाज उठाए तो उसको रोका जाता है,

ये क्या खेल लड़कियों पे खेला जा रहा है,

उसके कपड़ों पर बातें बनाई जा रही हैं,

कुछ लोग दिखावे की मुस्कान लिए फिरते हैं,

बाहर से देवता, अंदर से शैतान बने फिरते हैं,

बस हो या ट्रेन हर कही ज़ुल्म हो रहा है,

लड़कियो को खिलौना समझ,

उसकी इज्जत से खेला जा रहा है,

लड़कियों को गंदी नज़रों से देखा जा रहा है,

गालियों में भी मां बहन का नाम लिया जा रहा है,

कही कसर नहीं छोड़ी है, जिसकी कोई गलती न हो,

उसको भी इस दुनिया वालो ने खूब कोसी है॥



BHAWNA%20GADIYA


भावना गड़िया

कन्यालीकोट, कपकोट

बागेश्वर, उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

कोई टिप्पणी नहीं:

undefined

संपर्क फ़ॉर्म

नाम

ईमेल *

संदेश *