लोहे के बर्तन बनाना लोहार समुदाय के लिए केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि उनकी पहचान और अस्तित्व का प्रतीक है. लेकिन बदलते समय के साथ उनके लिए रोज़ी रोटी चलाना मुश्किल होता जा रहा है. नयी तकनीक, सस्ते विकल्प और बदलते उपभोक्ता व्यवहार ने उनके पारंपरिक काम को संकट में डाल दिया है. कमला, आशा और केसर जैसे कई परिवार इसी उधेड़बुन में हैं कि उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा? बर्तनों की बिक्री उनके पेट भरने का एकमात्र साधन है. जब बर्तन बिकते हैं, तभी उनके घरों में चूल्हा जलता है, तभी बच्चों की पढ़ाई और परिवार का गुजारा संभव होता है. लेकिन बाजार में धुंधली होती उनकी पहचान ने उन्हें चिंता में डाल दिया है, लेकिन इस कठिन परिस्थिति में भी उनकी उम्मीदें कायम है. उनके हथौड़े की चोटें, उनकी मेहनत और संघर्ष की गूंज हमें यह एहसास दिलाती है कि मेहनतकश हाथ कभी हार नहीं मानते हैं. उनके लिए हर नया दिन एक नई उम्मीद लेकर आता है कि उनके बर्तन बिकते रहेंगे और परिवार का चूल्हा जलता रहेगा.
संतरा चौरठिया
अजमेर, राजस्थान
चरखा फीचर
लेखिका महिला जन अधिकार समिति, अजमेर से जुड़ी है
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