देखा जाए तो अमेरिका की छवि बीच चौराहे पर साथ छोड़ देने वाले देश की बनती जा रही है। कल तक रुस का धूर विरोधी अमेरिका रुस के साथ प्यार की पीगे बढ़ाता दिख रहा है तो दूसरी और यूक्रेन जोकि अमेरिका और अन्य देषों के भरोसे ही अदम्य साहस का परिचय देते हुए रुस को लोहे के चने चबवा रहा है उस यूक्रेन और यूक्रेन के नागरिकों के साहस को नमन करने के स्थान पर आज अमेरिका यूक्रेन को रुस के सामने झुकने को बाध्य करना चाहता है। दरअसल अमेरिका की नजर दुनिया के देशों और उनकी संपदाओं पर है। खासतौर से अब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प दुनिया के देशों को डंडे के जोर पर हांकना चाहते हैं। ट्रम्प चाहते हैं कि जो अमेरिका चाहे वही हो, यही कारण है कि एक और टैरिफ वार पर दुनिया के देशों को झोंक दिया है तो दूसरी ओर ग्रीन लैण्ड हड़पना चाहता है। कनाडा को 51 वां राज्य बनाना चाहता है। यूक्रेन के हजारों करोड़ डॉलर की खनिज संपदा पर नजर गड़ाये ट्रम्प यूक्रेन को 500 करोड़ डालर की खनिज संपदा पर समझौता करना चाहता हें यूक्रेन राष्ट्रप्रति देश के व्यापक हित में समझौता करने को तैयार होने के बावजूद जिस तरह से वार्ता के दौरान ट्रम्प ने तेवर दिखाएं उसे किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है। यही कारण है कि वार्ता के दौरान जिस तरह के तेवर जेलेंस्की ने दिखाया उसे सारी दुनिया ने इसलिए सराहा कि एक तानाशाह को कम से कम चुनौती देने वाला तो मिला। भले ही इसके परिणाम कुछ भी हो। यूक्रेेन को अमेरिका से समझौता करना पड़े पर एक बार अमेरिका और दुनिया के देशों को जेलेंस्की ने एक संदेश तो दे ही दिया। यहां तक कि रुस को भी इससे कम सबक नहीं मिला है। यूक्रेेन की नैतिक विजय इसी को माना जा सकता हे कि आज यूक्रेन की खनिज संपदा के समझौते को विफल करने के लिए रुस अपनी खनिज संपदा के अधिकार तक देने की पेशकश करने लगा है। यह यूक्रेन की अपने आप में बड़ी विजय के रुप में देखी जानी चाहिए।
देखा जाए तो ट्रम्प तानाशाही रवैया अपनाते हुए दुनिया के देशों को ड़राने धमकाने में लगे हुए हैं। हांलाकि चाहे टैरिफ नीति हो या उपनिवेशवादी सोच देर सबेर इसका खामियाजा अमेरिका को ही भुगतना पड़ेगा और व्हाईट हाउस में ट्रम्प और जेलेंस्की के बीच तीखी बहस और नोकझोंक से दुनिया के देशों में साहस का संचार हुआ है। व्हाईट हाउस की घटना का तात्कालिक परिणाम ही यह सामने आ गया है कि यूरोप के देश एक स्वर में यूक्रेन के साथ खड़े होने लगे है तो दूसरी और अपना नया नेता चुनने पर विचार करने लगे हैं। हांलाकि जेलेंस्की ने देश हित को पहली वरियता दी है और अमेरिका से अब भी खनिज संपदा के अधिकार देने पर सहमति समझौता करने को लगभग तैयार है। पर अमेरिका दबाव बनाकर और डरा धमकाकर समझौता करना चाहता है यही कारण है कि समझौते के प्रारुप पर चर्चा करने आये जेलेंस्की को ही रुस यूक्रेन युद्ध का जिम्मेदार बताते हुए तीखी नोंकझोंक तक हालात पहुंच गए और जेलेंस्की की हिम्मत की इसलिए सराहना करनी होगी कि अमेरिका के आगे नाक रगड़ने की जगह वार्ता छोड़कर यूरोपीय देशों की यात्रा पर आ गये। भविष्य में क्या होता है यह तो अलग बात हैं और उसके कारण इंटरनेशनल पालिटिक्स और रिलेेशंस तय करेंगे पर ट्रम्प को वार्ता की टेबल पर अपनी और देश की गरिमा बनाये रखकर दुनिया के देशों को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि चाहे कोई कितना भी ताकतबर हो हमें उसके गलत दबाव में नहीं आना चाहिए। यही कारण है कि मानों या ना मानों पर आज ट्रम्प से ज्यादा जेलेंस्की के साहस की सराहना हो रही है।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
विचारक
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