अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 2 अप्रैल से भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू करने जा रहे हैं. इससे भारत को सालाना 61,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है. इससे टेक्सटाइल्स, केमिकल्स, मेटल प्रोडक्ट्स, ज्वेलरी, ऑटो सेक्टर और खाद्य उत्पादों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा. या यूं कहे भारत का निर्यात न सिर्फ महंगा हो जाएगा, बल्कि भारतीय कंपनियों की कमाई भी घटेगी। जबकि यदि भारत टैरिफ कम करता है तो अमेरिका से इम्पोर्ट होने वाले सामानों की कीमतों पर भी प्रभाव पड़ेगा। अमेरिका के इस कदम से दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव भी बढ़ सकता है, जिससे कारोबारी माहौल प्रभावित हो सकता है. ट्रंप के मुताबिक इसकी बड़ी वजह भारत द्वारा अमेरिका से सौ प्रतिशत से ज्यादा टैरिफ वसूली है। ट्रंप के इस निर्णय से भारत ही नहीं पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है
भारत से निर्यात की जाने वाली कारों में से अधिकांश सेडान और हैचबैक हैं. हुंडई वर्ना सेडान और मारुति बलेनो हैचबैक सबसे अधिक निर्यात की जाने वाली भारतीय कारें हैं. देखा जाएं तो भारत सरकार ने 2025 के बजट में हाई-एंड मोटरसाइकिलों और कारों पर लगने वाले आयात कर को कम करने का ऐलान किया है. इस फैसले के बाद अमेरिका के प्रमुख इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता टेस्ला का भारत में आने का रास्ता साफ हो गया है. अब जल्द ही टेस्ला भारत में नए शोरूम खोलने जा रही है. इसके अलावा हार्ले-डेविडसन, शेवरले और फोर्ड जैसी प्रमुख अमेरिकी कंपनियां भी भारत में वापसी की राहत तलाश रही हैं. टेस्ला का साइबर ट्रक अमेरिकी बाजार में करीब 90 लाख रुपए में बिकता है। अगर टैरिफ 100 फीसदी है तो भारत में इसकी कीमत करीब 2 करोड़ हो जाएगी। चीन के कुछ सामान अमेरिकी बाजार में 45 फीसदी तक टैरिफ का सामना करते हैं। इन सेक्टर्स में भारत उत्पादन बढ़ा सकता है और मौकों का फायदा उठा सकता है। भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है। इस समझौते के तहत चमड़ा, कपड़ा और आभूषण जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में आयात शुल्क में रियायत से अमेरिका को निर्यात बढ़ेगा। जानकारों का कहना है कि इसके बदले में अमेरिका पेट्रो रसायन उत्पादों, इलेक्ट्रॉनिक्स, चिकित्सा उपकरणों और बादाम तथा क्रैनबेरी जैसे कुछ कृषि वस्तुओं के लिए टैरिफ में कटौती की मांग कर सकता है। सेब और सोया जैसी कृषि वस्तुओं की संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए उनमें टैरिफ कटौती मुश्किल हो सकती है। हालांकि यदि अमेरिका प्रस्तावित समझौते के तहत टैरिफ में कटौती करता है तो भारत को वाहन कलपुर्जा, परिधान, फुटवियर, आभूषण, प्लास्टिक और स्मार्टफोन जैसे सेक्टर्स में लाभ हो सकता है। इन सेक्टर्स में भारतीय सामान अमेरिकी बाजार में चीन के साथ कंपटीशन कर सकते हैं, क्योंकि चीनी सामान अमेरिकी बाजार में उच्च टैरिफ का सामना कर रहे हैं। चीन के कुछ सामान अमेरिकी बाजार में 45 प्रतिशत तक टैरिफ का सामना करते हैं और इन क्षेत्रों में भारत उत्पादन बढ़ा सकता है और अवसरों का लाभ उठा सकता है।
अमेरिका की मुख्य चिंता भारत के साथ व्यापार घाटे को संतुलित करना है और इसके लिए वे भारतीय बाजारों में अपने निर्यात को बढ़ाना चाहते हैं। मेडिसीन क्षेत्र के निर्यातकों का कहना है कि भारतीय दवा निर्यात पर जवाबी टैरिफ लगाने के अमेरिकी फैसले से मुख्य रूप से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर असर पड़ेगा। हालांकि, घरेलू उद्योग सतर्क रूप से आशावादी बने हुए हैं। शोध संस्थान जीटीआरआई ने सुझाव दिया कि भारत को अमेरिका के प्रस्तावित जवाबी टैरिफ के जवाब में ’शून्य के लिए शून्य’ शुल्क रणनीति की पेशकश करनी चाहिए। उसका कहना है कि ऐसा करना पूर्ण द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत करने से कम नुकसानदायक होगा। जीटीआरआई ने सरकार को सुझाव दिया है कि शून्य के लिए शून्य’ रणनीति के तहत ऐसी उत्पाद श्रेणियों की पहचान करनी चाहिए, जहां घरेलू उद्योगों और कृषि को नुकसान पहुंचाए बिना अमेरिकी आयातों के लिए आयात शुल्क खत्म किया जा सकता है। इसके बदले में, अमेरिका को भी समान संख्या में वस्तुओं पर शुल्क हटा देना चाहिए। टैरिफ ट्रम्प के इकोनॉमिक प्लान्स का हिस्सा हैं। उनका कहना है कि टैरिफ से अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार बढ़ेगा। टैक्स रेवेन्यू बढ़ेगा और इकोनॉमी बढ़ेगी। 2024 में अमेरिका में आयात का 40 फीसदी से अधिक हिस्सा चीन, मैक्सिको और कनाडा से आए सामानों का था। कम टैरिफ से अमेरिका को व्यापार घाटा हो रहा है। 2023 में अमेरिका को चीन से 30.2 फीसदी, मेक्सिको से 19 फीसदी और कनाडा से 14.5 फीसदी व्यापार घाटा हुआ। कुल मिलाकर ये तीनों देश 2023 में अमेरिका के 670 अरब डॉलर यानी करीब 40 लाख करोड़ रुपए के व्यापार घाटे के लिए जिम्मेदार हैं। ट्रम्प सरकार इसी घाटे को कम करना चाहती है। इसलिए 4 मार्च 2025 से मेक्सिको और कनाडा पर 25 फीसदी टैरिफ लागू हो गया है। चीन पर भी अतिरिक्त 10 फीसदी टैरिफ लागू हो गया है। 2 अप्रैल से भारत पर भी रेसिप्रोकल टैरिफ लगने जा रहा है। ट्रंप का कहना है कि टैरिफ से अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार बढ़ेगा.
जानकारों का कहना है कि अमेरिका के रेसिप्रोकल टैरिफ से बचने के लिए भारत 30 से अधिक वस्तुओं पर टैरिफ कम कर सकता है। इससे अमेरिकी सामान भारत में सस्ता हो सकता है। इसके अलावा अमेरिकी रक्षा और ऊर्जा उत्पादों की अपनी खरीद बढ़ा सकता है। बजट में, सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा और हाई-एंड मोटरसाइकिल समेत कई उत्पादों पर आयात शुल्क कम कर दिया था। अब, भारत ट्रेड रिलेशन्स को पहले की तरह बनाए रखने के लिए लग्जरी व्हीकल्स, सोलर सेल्स और कैमिकल्स पर टैरिफ में और कटौती पर विचार कर रहा है। अमेरिका ने 2024 में भारत को 42 बिलियन डॉलर (करीब 3.6 लाख करोड़ रुपए) का सामान बेचा है। इसमें भारत सरकार ने लकड़ी के उत्पादों और मशीनरी पर 7 फीसदी, फुटवियर और ट्रांसपोर्ट इक्विपमेंट्स पर 15 फीसदी से 20 फीसदी तक और फूड प्रोडक्ट्स पर 68 फीसदी तक टैरिफ वसूला है। अमेरिका का कृषि उत्पादों पर टैरिफ भारत के 39 फीसदी की तुलना में 5 फीसदी है। यदि अमेरिका कृषि उत्पादों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का फैसला लेता है, तो भारत के कृषि और फूड एक्सपोर्ट पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। यहां टैरिफ अंतर सबसे ज्यादा है, लेकिन ट्रेड वॉल्यूम कम है। हालांकि यदि चीन और भारत हाथ मिलाते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय मामलों में अधिक लोकतांत्रिक व्यवस्था और मजबूत ग्लोबल साउथ की संभावना में काफी सुधार होगा. ग्लोबल साउथ से तात्पर्य उन देशों से है जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित या अविकसित कहा जाता है और जो मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं. वैसे ट्रंप के बार-बार बदलते टैरिफ के खतरों ने वित्तीय बाजारों को हिला दिया है, उपभोक्ताओं के विश्वास को कम किया है। साथ ही कई व्यवसायों को एक अनिश्चित वातावरण में डाल दिया है। इससे भर्ती और निवेश में देरी हो सकती है।
भारत के रसायन उद्योग को फायदा होने वाला है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि टैरिफ लागू होने के बाद अमेरिका को भारत की ओर से होने वाले रसायन निर्यात में वृद्धि हो सकती है। रिपोर्ट में टैरिफ से भारत को होने वाले फायदे का कारण बताते हुए कहा गया है कि अमेरिकी कंपनियां चीन से रसायन का निर्यात करने वाले वेंडर्स को बदलने के लिए वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश कर रही हैं। जिससे कनाडा, मैक्सिको और चीन पर सख्त टैरिफ लगाने से भारतीय रसायन कंपनियों को अमेरिकी बाजार में लाभ हो सकता है। अमेरिका ने चीन से आने वाले रसायनों पर 20 प्रतिशत टैरिफ लगाने का एलान किया है। भारतीय कंपनियां अधिक आकर्षक विकल्प बन गई हैं। चूंकि भारत को अब तक के एलानों के अनुसार केवल 10 प्रतिशत प्रतिशोधी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा, ऐसे में अमेरिकी कंपनियों को चीन की तुलना में भारत से रासायन खरीदने पर लागत में 10 प्रतिशत का लाभ मिल सकता है। इससे भारत के रसायन निर्यात में काफी वृद्धि हो सकती है। यह वृद्धि विशेष रूप से रंगों, कृषि रसायन, अकार्बनिक और कार्बनिक रसायन जैसे क्षेत्रों में देखने को मिल सकती है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा रसायन आयातक है। देश के कुल रसायन निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 14 प्रतिशत है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत ने अमेरिका को 3.85 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रसायनों का निर्यात किया। हालांकि, थ्ल्24 में निर्यात में 26 प्रतिशत की गिरावट आई। इसके बावजूद अमेरिका अब भी भारतीय रसायनों के निर्यात के मामले में शीर्ष गंतव्य बना हुआ है। रिपोर्ट में 2018 के अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का उदाहरण दिया गया था, जिससे भारत को भी लाभ हुआ था। उस अवधि में, अमेरिकी कंपनियों ने चीन से अपना सोर्सिंग हटाकर भारत का रुख कर लिया था, जिससे अमेरिका को भारत से होने वाला कुल निर्यात 57 अरब डॉलर से बढ़कर 73 अरब डॉलर हो गया। इस बार भी ऐसा ही होने का अनुमान है।
भारत 175 से अधिक देशों को रसायनों का निर्यात करता है, जिसमें चीन, अमेरिका, ब्राजील, नीदरलैंड, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, यूएई, जापान और जर्मनी जैसे प्रमुख बाजार शामिल हैं। चीन पर अमेरिका की ओर से बढ़ाया गया टैरिफ अमेरिका में भारतीय निर्यातकों को नए अवसर दे सकता है। हालांकि, रिपोर्ट में इस बात की भी चेतावनी दी गई कि वर्तमान परिस्थितियों में भारत और अन्य गैर-अमेरिकी बाजारों में बड़े पैमाने पर चीन से होने वाला सस्ता रासायनिक आयात बढ़ सकता है, क्योंकि चीन भी टैरिफ लागू होने के बाद वैकल्पिक खरीदारों की तलाश कर रहा है। अमेरिका चीन पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहा है, ऐसे में भारतीय रसायन निर्यातकों के पास वैश्विक बाजार में अपनी मौजूदगी बढ़ाने का यह एक सुनहरा मौका है। आने वाले महीने यह निर्धारित करेंगे कि भारतीय कंपनियां इस बदलते व्यापारिक परिदृश्य का कितना लाभ उठातीं हैं। सरकार के अनुसार, भारत का दुनिया को नेट इलेक्ट्रॉनिक निर्यात 30 बिलियन है. इसका लगभग 60 फीसदी हिस्सा स्मार्टफोन से आता है. पिछले साल अंतरिम केंद्रीय बजट में सरकार ने स्मार्टफोन पर इंपोर्ट टैरिफ 20 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी कर दिया था. इसका मतलब यह है कि अमेरिका में बनाए गए डिवाइसेज को घरेलू र पर बेचे जाने से पहले अतिरिक्त 15 फीसदी टैक्स देना होगा. इस दौरान स्मार्टवॉच पर फिलहाल 20 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगती है. इलेक्ट्रॉनिक के अलग-अलग कंपोनेंट्स पर भी कई तरह के इंपोर्ट टैक्स लगते हैं, क्योंकि भारत स्थानीय स्तर पर ज्यादा कम्पोनेंट्स की मैन्युफैरिंग पर जोर दे रहा है. यह अलग बात है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत पर टैरिफ लगाने की चेतावनी के बाद पहली बार वित्तमंत्री ने इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़ी है. उन्होंने दो टूक कहा कि भारत की ओर से लगाए जा रहे टैरिफ का पूरी तरह कानून के अनुरूप हैं. उन्होंने अमेरिका के उत्पादों पर 100 फीसदी तक व्यापार शुल्क लगाने का भी बचाव किया और कहा कि भारत का यह कदम विश्व व्यापार संगठन के कानून के तहत पूरी तरह सही है. ऐसा शुल्क देश के विकास और घरेलू उद्योगों को समर्थन देने के लिए लगाया जाता है.
वित्तमंत्री ने कहा कि जब आप विकास के उस चरण में होते हैं, जब आपके अपने उद्योग को बढ़ना होता है, तो डब्ल्यूटीओ मानदंडों के अनुसार आप जो भी व्यापार शुल्क लगा सकते हैं. वित्तमंत्री ने यहां बजट के बाद एक बातचीत में कहा कि इसलिए यह इसी मकसद से हो रहा है और जैसा कि मैंने कहा यह डब्ल्यूटीओ के अनुरूप है. लिहाजा अमेरिका पर लगाए जा रहे आयात शुल्क कतई गैर वाजिब नहीं हैं. उन्होंने कहा कि आज प्रचलित व्यापार शुल्क कई उद्देश्यों को पूरा करते हैं और यह सुरक्षा आगे भी जारी रहेगी. उन्होंने निर्यात और नए बाजारों तक पहुंचने की संभावना पर भी जोर दिया. भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका अपने हितों का ख्याल रखेगा, जबकि भारत अपने हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देगा. पहले ही भारत आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, विनिर्माण क्षेत्र की विकास दर चिंताजनक दौर से गुजर रही है। ऐसे में जिन वस्तुओं के लिए अमेरिका में बड़ा बाजार था और उन पर भारत को न्यूनतम शुल्क देना पड़ता था, उन क्षेत्रों की रफ्तार कैसी रह पाएगी, दावा करना मुश्किल है। वस्तुओं पर शुल्क निर्धारण के लिए विश्व व्यापार संगठन के नियम तय हैं। गरीब देश अमीर देशों पर इसलिए ऊंचा शुल्क लगा सकते हैं कि उससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। अमीर देशों से इसीलिए ऊंचा शुल्क देने की अपेक्षा की गई कि वे गरीब मुल्कों की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने में मददगार होंगे। माना गया था कि इस तरह दुनिया में तेजी से आर्थिक विकास हो सकेगा। मगर डोनाल्ड ट्रंप ने उस नियम को नजरअंदाज कर दिया। इससे विश्व व्यापार संगठन की स्थिति भी अजीब हो गई है। मगर ऐसा नहीं कि पारस्परिक शुल्क नीति से अमेरिका को कोई बड़ा लाभ मिलने वाला है। अमेरिका खुद महंगाई से पार पाने की चुनौती से जूझ रहा है। उसमें अगले महीने से पारस्परिक शुल्क लगने से जब दूसरे देशों से वस्तुएं महंगी दरों पर वहां पहुंचेंगी, तो महंगाई और बढ़ेगी ही। अमेरिका दवा और बहुत सारी चीजों के कच्चे माल के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है। इसलिए माना जा रहा है कि वह अपने इस फैसले पर ज्यादा समय तक टिका नहीं रह पाएगा। भारत भी इसीलिए फूंक-फूंक कर कदम उठा रहा है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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