सन् 1947 में एडिशनल सब जज पटना टाइटल सूट 27/ 1 व 29 / 3 व 41/47 बाबू विलास सिंह व अन्य बनाम प्रोभिनेन्स बिहार एवं अन्य में प्रतिवादीगण का टाइटल बरकरार हुआ. सन् 1958 में पटना उच्च न्यायालय ने किसानों / रैयत के पक्ष में फैसला दिए जिसमें पटना कलेक्टर रेस्पोंडेंट नंबर 1 के साथ 227 किसान / रैयत रेस्पोंडेंट हैं. इस फैसला में पटना जिला के हजारों-हजार एकड़ असर्वेक्षित भूमि है. इसी प्रकार सन् 1940 से 1970 ई. के दरम्यान सदाकत आश्रम के सामने स्थित एल सी टी घाट के रैयत/ किसान के जमीन को गंगा नदी पर जहाज चलाने के लिए किसानों को मुआवजा देकर भूमि अधिग्रहण किया था जिसे आज पटना जिला प्रशासन बलपूर्वक कब्जा करने के लिए प्रयासरत है. इसी प्रकार प्रताड़ित रैयत / किसान /जमीन मालिक गोलघर (पटना) से दानापुर (पटना) के लाखों निवासी जो पीढ़ी दर पीढ़ी 1975 बाढ़ के बाद बने प्रोटेक्शन बांध के उत्तर निवास कर रहे हैं उन्हें नेशनल ग्रीन ट्रेबुनल का हवाला देकर स्थानीय निवासी से जमीन छीनने का प्रयास कर रही है.
ज्ञातव्य है की दीघा थाना नं 01 राजीव नगर के 1024.52 एकड़ भूभि के किसान को बिना कोई मुआवजा दिए 21 एकड़ भूमि पर अधिग्रहण कर सरकारी भवन के निर्माण के 10 वर्ष उपरान्त आज तक अधिग्रहित भूमि का मुआवजा नहीं दिए गए. यह पिछले बीस साल का जदयू-भाजपा सरकार का देश के सामने सरकारी काम में बाधा कानून के दुरुपयोग का सरलतम उदाहरण है जिसे कांग्रेस पार्टी को मजबूती के साथ उठाना चाहिए. पिछले 35 सालों में भाजपा ने इस मुद्दे पर राजनीति कर पटना के सांसद और विधायक बनते आ रहे हैं. 2005 एवं 2010 चुनाव में नीतीश कुमार ने इन इलाकों में कई कार्यक्रम पर इस मामले पर वोट हासिल किए. जब भी भाजपा विपक्ष में रहते हैं तो इन मुद्दों पर जोरदार विरोध प्रदर्शन आयोजित करता है. 15 फरवरी, 2025 को पटना उच्च न्यायालय द्वारा दीघा के किसानों एवं रैयतों के आग्रह पर बिहार सरकार के खिलाफ स्टेटस को लगाया गया लेकिन पटना जिला प्रशासन जबरन बिना अधिग्रहित भूमि का मुआवजा का प्रक्रिया किये बिना किसानों के भूमि कब्जा करने का काम कर रही है.
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