इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता नीलम ग्रैंडी कहती हैं कि "प्राइमरी स्कूल बच्चों में शिक्षा की नींव रखते हैं. यहीं पर वे पहली बार किताबों, पेंसिल, कॉपी और रंगों से परिचित होते हैं. यह उम्र उनमें खेल-खेल में सीखने की होती है. लेकिन अगर स्कूल में शिक्षक की कमी होगी तो बच्चों की पढ़ाई पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक है. यहां नियुक्त एकमात्र शिक्षक को पढ़ाने के साथ-साथ प्रशासनिक कार्य भी करने पड़ते हैं. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई सही से नहीं हो पाती है. इस स्थिति के चलते आर्थिक रूप से संपन्न गांव के कई परिवार अब अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, ताकि वे बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकें. लेकिन यह सभी के लिए संभव नहीं है. गांव के अधिकतर अभिभावक आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं होते कि वे अपने बच्चों को गांव से बाहर पढ़ने भेज सकें. हालांकि गरुड़ की खंड शिक्षा अधिकारी कमलेश्वरी मेहता आश्वस्त करती हैं कि जल्द ही इस प्राथमिक विद्यालय में एक और शिक्षक की नियुक्ति होने वाली है. जिससे बच्चों की पढ़ाई में आने वाली सबसे बड़ी बाधा दूर हो जाएगी. शिक्षा विभाग की ओर से इस संबंध में प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है. बहरहाल, गनीगांव के लोग इस छोटे से स्कूल को एक बड़े सपनों की पाठशाला मानते हैं. उनका सपना है कि उनके बच्चे सही शिक्षा पाएं, आगे बढ़ें और अपने सपनों को पूरा करें. यह कहानी सिर्फ गनीगांव की नहीं, बल्कि हर उस गाँव की है जहाँ बच्चे हर सुबह एक नई उम्मीद के साथ स्कूल जाते हैं, सीखते हैं और एक दिन अपने सपनों को हकीकत में बदलने का सपना देखते हैं. शिक्षा की यह यात्रा यूँ ही चलती रहेगी, क्योंकि हर बच्चा के अंदर एक अनकही कहानी है - सीखने की, आगे बढ़ने की और सपनों की अनवरत उड़ान भरने की.
अंजली कबडोला
कंधार, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड
(चरखा फीचर्स)
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