आगे कथावाचक डाॅ.रमेशाचार्य महाराज ने कहा- भरत ने अयोध्या के ऐश्वर्य और वैभव को राम प्रेम में तिनके के समान समझा।आज जहाँ थोड़े धन के लिए भाई भाई की हत्या करने पर उतारु हो जा रहा है वही भरत उस अपार सम्पदा से अपने को कोसों दूर रखकर एक संन्यासी सेवक की तरह वैभव नगरी अयोध्या से दूर नंदीग्राम में स्वयं को रखते हैं और राज सिंहासन पर राम जी के चरण पादुका को आसीन करते हैं।भरत का राम प्रेम दाम और काम से बड़ा है।भरत पूर्ण वैराग्य से ओतप्रोत हैं।उनके जीवन में धन का कोई महत्व न होकर राम नाम का महत्व परिलक्षित होता है। यह सच है कि भाई हो तो भरत जैसा। ज्ञात हो कि कल हनुमत् चरित ,रावण वध और रामराज्याभिषेक के साथ नौ दिवसीय कथा विराम ले लेगा।आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बौद्धिक प्रमुख सह मंच संचालक रामबाबू ठाकुर ने महाराज श्री का माल्यार्पण किया। उपप्रमुख प्रतिनिधि किशन ठाकुर ने मानस -पूजन किया।
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