कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पुलिस अधीक्षक द्वारा महिला हितों की रक्षा को लेकर जिले के सभी थानों में बनाए गए महिला हेल्प डेस्क, डायल 112, पुलिस बल में महिला पुलिस की भूमिका आदि पर विस्तृत प्रकाश डाला गया। उन्होंने महिला महोत्सव की उपादेयता पर समझ विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। इसके पूर्व पुलिस उपाधीक्षक रश्मि ने सरकार की महिला सशक्तिकरण योजनाओं पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि आज हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। महिला महोत्सव के अवसर पर जिलाधिकारी द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाली महिलाओं को सम्मानित भी किया गया। सेवानिधि फाउंडेशन मधुबनी की निधि राज,शिवगंगा बालिका उच्च विद्यालय मधुबनी की श्रुति कुमारी, महिला विकास मंच मधुबनी की दीप शिखा, सखी बहन मैथिली महिला संगठन की किया मिश्रा को सम्मानित किया गया वहीं तीन महिलाओं को विशिष्ट पुरस्कार भी दिया गया। शिवगंगा की बच्चियों को नायिका पुरस्कार से सम्मानित किया गया जिन्होंने स्कूल ड्रॉप आउट के क्षेत्र में काम किया है।इसके अतिरिक्त सभी सीडीपीओ को पोषण ट्रैक में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए भी सम्मानित किया गया। सभी परियोजना अंतर्गत दो प्रवेक्षिका, दो सेविकाओं तथा दो सहायिका को भी पुरस्कृत किया गया। जिलाधिकारी द्वारा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना अंतर्गत पौधारोपण अभियान के तहत वृक्षारोपण भी किया गया। उक्त अवसर पर पुलिस अधीक्षक योगेंद्र कुमार,प्रभारी डीडीसी नीरज कुमार,पुलिस उपाधीक्षक रश्मि, डीपीआरओ परिमल कुमार, श्रम अधीक्षक, आशुतोष झा,सहायक निर्देशक आशीष अमन, डीपीओ आईसीडीएस, सहित जिले के सभी प्रखंडों की सीडीपीओ आदि उपस्थित थी।
मधुबनी (रजनीश के झा)। जिलाधिकारी अरविन्द कुमार वर्मा एवं पुलिस अधीक्षक योगेंद्र कुमार ने गिरधारी नगर भवन में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलित कर किया। अपने संबोधन में सामाजिक कुरीतियों की चर्चा करते हुए जिलाधिकारी ने कहा कि बाल विवाह, भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा ने समाज में महिलाओं के स्थान को कमजोर किया है।उन्होंने कहा कि हालांकि इसके विरोध में कई सामाजिक सुधार आंदोलन हुए और सरकार की ओर से इसके लिए न सिर्फ कानून बनाए गए बल्कि लगातार जागरूकता कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है,परन्तु इन सामाजिक कुरीतियों को जड़ से समाप्त करने के लिए सभी की सहभागिता अत्यंत जरूरी है। महिला दिवस के आयोजन के महत्व को रेखांकित करते हुए जिलाधिकारी ने कहा इसका मकसद लोगों को जागरूक करना और जेंडर समानता के प्रति संवेदनशील बनाना है। उन्होंने कहा कि एक दिन ऐसा आएगा जब लैंगिक समानता का लक्ष्य पूरा हो जाएगा और फिर किसी भी प्रकार के महिला महोत्सव मनाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि ऐसा देखा जाता है लिंग परीक्षण करवाने में पुरुषों के साथ-साथ परिवार की महिलाएं भी शामिल होती हैं। यदि गर्भिणी माता इसका विरोध करें तो निश्चय ही लिंग परीक्षण पर रोक लगाई जा सकती है। इससे भ्रूण हत्या को रोका जा सकता है। आज बेटे की ललक के कारण बेटियों को कमतर आंका जाता है। दहेज प्रथा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि आज लड़कियां दहेज प्रथा के विरोध में विवाह करने से इंकार कर रही हैं। हम पाते हैं कि पहले बिना दहेज की शादी करने पर लोग लड़के के बारे में तरह-तरह की बातें करने लगते थे कि ऐसी कौन सी बात है, जो लड़के को दहेज नहीं मिल सका। परंतु, आज स्थितियां बदल रही हैं। बेटियों के जन्म के साथ ही उनकी शादी की चिंता छोड़ कर उनकी पढ़ाई लिखाई और व्यक्तित्व के विकास पर जोर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज में उत्पन्न स्वतःस्फुर्त चेतना के दम पर एक दिन महिलाओं के हितों की रक्षा की बात करने वाले दिवस मनाए जाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।
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