एक अन्य महत्वपूर्ण सुधार "उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ" प्रावधान को हटाना है, जो पहले संपत्तियों को दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर वक्फ के रूप में नामित करने की अनुमति देता था। इस प्रावधान के कारण कई मामले सामने आए थे जहां सरकारी स्वामित्व वाली संपत्तियों सहित अन्य कई संपत्तियों को गलत तरीके से वक्फ के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इस संशोधन के तहत, केवल औपचारिक वक्फ विलेख वाली संपत्तियों को ही वक्फ के रूप में मान्यता दी जाएगी, ताकि अनधिकृत दावों को रोका जा सके। हालांकि, "उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ" के तहत मौजूदा पंजीकृत वक्फ संपत्तियों को संरक्षित किया जाएगा, जब तक कि वे विवाद में न हों या सरकारी स्वामित्व वाली न हों, जिससे सामुदायिक हितों और सार्वजनिक संपत्ति अधिकारों के बीच संतुलन बना रहे। वक्फ बोर्डों द्वारा संपत्तियों के गलत तरीके से अधिग्रहण को रोकने के लिए विधेयक में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वक्फ के समान उद्देश्यों के लिए मुसलमानों द्वारा स्थापित लेकिन अन्य वैधानिक प्रावधानों के तहत विनियमित ट्रस्टों को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। यह स्पष्टीकरण स्वतंत्र मुस्लिम धर्मार्थ ट्रस्टों के प्रशासन में वक्फ बोर्डों द्वारा अनुचित हस्तक्षेप को रोकेगा।
यह विधेयक वक्फ बोर्डों के भीतर प्रशासनिक अक्षमताओं को भी दूर करता है। रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ करने और उन्हें वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम पोर्टल पर अपलोड करने में विफलता एक प्रमुख मुद्दा रहा है। संशोधन में कहा गया है कि सभी वक्फ संपत्तियों को छह महीने के भीतर ऑनलाइन पंजीकृत किया जाना चाहिए ताकि अधिक पारदर्शिता और सु्गमता सुनिश्चित हो सके। एक और मुख्य चिंता, गलत तरीके से सरकारी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित करने की है, जैसा कि दिल्ली में 123 वक्फ संपत्तियों और सूरत नगर निगम से जुड़े विवादों के मामलों में देखा गया है। इसका मुकाबला करने के लिए धारा 3सी में प्रावधान है कि पहले या वर्तमान में वक्फ के रूप में घोषित की गई कोई भी सरकारी संपत्ति तब तक वक्फ की नहीं मानी जाएगी जब तक कि किसी नामित अधिकारी द्वारा सत्यापित न हो। राज्य सरकार द्वारा नियुक्त यह अधिकारी जांच करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि सरकारी संपत्ति सुरक्षित है। विधेयक में लंबित वक्फ सर्वेक्षणों की जिम्मेदारी कलेक्टर के अधिकार क्षेत्र में स्थानांतरित करने का भी प्रस्ताव है, जो प्रक्रिया को पूरा करने के लिए राज्य के राजस्व कानूनों का पालन करेंगे। यह सुधार सुनिश्चित करेगा कि वक्फ संपत्ति सर्वेक्षण अधिक कुशलतापूर्वक और बिना किसी पक्षपात के किए जाएं।
जवाबदेही की कमी, शक्ति का दुरुपयोग और बाहरी पक्षों के साथ मिलीभगत के लिए राज्य वक्फ बोर्डों की आलोचना की गई है। इन मुद्दों के निराकरण के लिए, विधेयक में राज्य वक्फ बोर्डों को मासिक बैठकें आयोजित करने, नियमित निगरानी और निर्णय लेने का आदेश दिया गया है। इसके अतिरिक्त, वक्फ पंजीकरण के लिए कोई भी आवेदन सत्यापन के लिए कलेक्टर को भेजा जाएगा, जिससे प्रक्रिया में निष्पक्षता सुनिश्चित होगी और वक्फ बोर्डों द्वारा मनमाने निर्णय लेने से रोका जा सकेगा। इसके अलावा, विधेयक धारा 40 को हटाकर वक्फ बोर्डों की किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करने की विशेष शक्ति को तर्कसंगत बनाता है, जो पहले पूरी तरह से जांच के बिना ऐसी घोषणाओं की अनुमति देता था। वक्फ प्रबंधन की अखंडता के लिए, नए प्रावधानों में कदाचार में शामिल मुतवल्लियों (वक्फ संपत्तियों के संरक्षक) के लिए सख्त अयोग्यता मानदंड पेश किए गए हैं। हितधारकों के लिए बेहतर कानूनी सहारा प्रदान करने के लिए, विधेयक में धारा 83(9) के तहत एक अपीलीय तंत्र शामिल है, जो यह सुनिश्चित करता है कि न्यायाधिकरण के फैसलों को चुनौती दी जा सके जिससे विधिक उपाय मजबूत होंगे। इसके अलावा, वक्फ विवादों के लिए सीमा अधिनियम की प्रयोज्यता अनिश्चितकालीन मुकदमेबाजी को रोकेगी, जिससे विवादों का समय पर समाधान हो सकेगा।
अंत में, इस विधेयक में धारा 108ए को हटाने का प्रस्ताव है, जो पहले अन्य कानूनों पर अधिभावी अधिकार प्रदान करती थी। यह वक्फ शासन के लिए और अधिक समान और कानूनी रूप से सुदृढ़ दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है। कुल मिलाकर, वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने, अनधिकृत दावों को रोकने और वक्फ संपत्तियों के कुशल प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए बहुत जरूरी सुधारों को पेश करता है। पारदर्शिता, कानूनी स्वामित्व सत्यापन और प्रशासनिक जवाबदेही पर जोर देकर, विधेयक मुस्लिम समुदाय और बाकी जनता दोनों के हितों की रक्षा करते हुए वक्फ बोर्डों की विश्वसनीयता बहाल करना चाहता है।
हर्ष रंजन,
वरिष्ठ पत्रकार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें