प्रधान वैज्ञानिक सह आयोजन सचिव डॉ. शंकर दयाल ने बताया वैज्ञानिक तरीके से ब्लैक बंगाल बकरी पालन करने से किसानों को बहुत लाभ मिलेगा | यह कम चारे में भी अच्छी तरह पलती है और विभिन्न जलवायु में आसानी से अनुकूलित हो जाती है, जिससे पालन लागत कम आती है। कार्यशाला में डॉ. आशुतोष उपाध्याय (प्रमुख, भूमि एवं जल प्रबंधन), कमल शर्मा (विभागाध्यक्ष, पशुधन एवं मत्स्य प्रबंधन), डॉ. प्रदीप कुमार राय (वरिष्ठ वैज्ञानिक), डॉ. ज्योति कुमार (वरिष्ठ वैज्ञानिक) सहित अन्य विशेषज्ञों ने भाग लिया। विशेषज्ञों ने बकरी पालन की वैज्ञानिक विधियों, पोषण प्रबंधन, स्वास्थ्य देखभाल और व्यवसायिक संभावनाओं पर विस्तृत जानकारी दी। किसानों को बकरी पालन के आर्थिक लाभ, आधुनिक तकनीकों और सरकारी योजनाओं से अवगत कराया गया। कार्यशाला में बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया और अपने अनुभव साझा किए। कार्यक्रम में किसानों को फिट रखने के लिए स्टील ड्रम भी दिए गए | कार्यक्रम में पूर्वी चंपारण और जमुई जिले से लगभग 90 किसानों ने भाग लिया जिसमें लगभग 80% महिला किसान थीं |
पटना (रजनीश के झा)। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के पशुधन एवं मत्स्य प्रबंधन प्रभाग द्वारा "संसाधन-विहीन अनुसूचित जाति एवं जनजाति के किसानों के जीविकोपार्जन एवं क्षमता वृद्धि हेतु बकरी पालन" विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का आयोजन अखिल भारतीय बकरी सुधार समन्वित शोध परियोजना के अन्तर्गत किया गया था, जिसका लक्ष्य परियोजना के अंतर्गत बकरी पालन से जुड़े पूर्वी चंपारण एवं जमुई जिले के अनुसूचित जाति एवं जनजातीय किसानों की आजीविका को सशक्त बनाना था। मुख्य अतिथि प्रो (डॉ.) इंद्र मणि, माननीय कुलपति, वसंतराव नाइक मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ, परभण, महाराष्ट्र ने कहा कि विकास एक दिन में नहीं होगा, लेकिन एक दिन जरूर होगा | इसी विश्वास के साथ कार्य करते रहें और विकसित भारत @2047 के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अपना योगदान दें। डॉ. जे. के. प्रसाद, अधिष्ठाता, बिहार पशुचिकित्सा महाविद्यालय, पटना ने किसानों को प्रशिक्षण के दौरान प्राप्त जानकारी का अपने गांव में प्रचार प्रसार करना चाहिए, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग लाभान्वित हो सकें। संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास ने कहा कि बकरी पालन कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय है, जो दूध, मांस और खाद का अच्छा स्रोत है। बकरियाँ तेज़ी से प्रजनन करती हैं और सभी जलवायु में आसानी से पाली जा सकती हैं। इसकी बाजार में हमेशा अच्छी मांग रहती है, जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिलता है।
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